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बलि विधान का अर्थ

 श्रीराम । यह बिषय संवेदनशील है। यह प्रकृति त्रिगुणात्मक है। सत्व रज व तम। जिस जीव के अन्दर जिस गुण की अधिकता रहती है, उसका स्वभाव , संस्कार व आचरण भी वैसा होता है ।   त्रिगुणानुसार पूजन विधि भी अलग है, निगम व आगम । बलि शब्द का अर्थ बिशिष्ट पूजा के लिए है। निगम व आगम दोनो मे बलि विधान है, किन्तु निगम मे बलि का अर्थ किसी जीव की हत्या करना नही है। मूलत: शब्दो के अर्थ न समझ पाने के कारण वैदिक भी ऐसा करने लगे है। अब वेदिक व वाममार्गी दोनो की पद्धति में भिन्नता को देखते है। देशकाल, परिस्थिति के अनुसार उपलब्धता के अनुसार भोज्य पदार्थ का निर्णय भक्ष्य य अभक्ष्य के रुप मे होता है। सारी सृष्टि मे जितने भी चर, अचर है, सभी जीव है। व सभी जीव अन्नरुप है। चूकि यह बिषय लम्बा है अतः इसे छोड़कर आगे बढ़ते है। जीवबलि  वाममार्गी पूजन पद्धति मे विहित है इसलिए वाममार्ग को निन्दित कहा है, । देवी भगवती युद्धक्षेत्र मे  क्रोधयुक्त होकर शत्रुओ का मांसभक्षण करती है रक्तपान करती है, अतः वाममार्गी साधक इसी को आधार मानकर रक्तबलि चढा़ते है। उनका ऐसा मानना है कि इससे देवी शीघ्र प्रसन्न होती है। दुर...