Showing posts with label Astrology. Show all posts
Showing posts with label Astrology. Show all posts

शनि की सिद्धि, शनि की साढेसाती लघु कल्याणी ढैय्या व शांति के उपाय की संपुर्ण जानकारी

ग्रहो का परिधि पथ पर चलना मार्गी कहलाता है और परिगमन पथ से पीछे की ओर लौटना ग्रह की वक्री गति कही जाती है। राहू केतु को छोडकर सूर्य और चंद्र के अतिरिक्त सभी ग्रह वक्री व मार्गी दोनो होते हैं ।जबकि राहू केतु सदैव वक्री होते हैं ।शनि जिस स्थान पर होता है वह तीसरे सातवे और दसवें स्थान पर देखता है। जब शनि वक्री होकर अपनी तीसरी सातवी और दसवी दृष्टि से जिस भाव को देखता है वह उसपर शनि की दृष्टि वक्री दृष्टि कही जाती है। सातवी और दसवी दृष्टि की अपेक्षा तीसरी दृष्टि अधिक कष्टदायक होती है।

 शनि दण्डाधिकारी है, जो पुर्वजन्मकृत कर्मो के फल को प्रदान करने वाले है। शनि एक राशि में पूरे ढाई वर्ष तक रहता है। कुण्डली में चन्द्रमा जिस राशि में स्थित है उस राशि से चतुर्थ भाव और अष्टम भाव में जब शनि का गोचर होता है तब उसे शनि की ढ़ैय्या कहती है। एक राशि में ढाई वर्ष रहने के कारण इसे ढ़ैय्या का नाम दिया गया है। इस ढैय्या को ही लघु कलानी भी कहा जाता है।

शनि की ढैय्या: - शनि ग्रह प्रत्ति एक राशि मे ढाई साल तक रहती है। जन्मकुंडली के बारह भाव मे शनि ग्रह को एक चक्र पूरा करने में पूरे तीस साल लग जाते हैं। इस चक्र के दौरान कुंडली में चन्द्रमा जिस राशि में स्थित है उस राशि से या उस भाव से एक घर पहले से शनि का गोचर आरंभ होता है।

साढे़साती का अर्थ है - साढे की सात वर्ष चन्द्रमा जिस राशि में स्थित है उस राशि से एक राशि पहले शनि की साढे़साती का पहला चरण आरम्भ हो जाता है। इसमें शनि ढाई वर्ष तक रहता है। उसके बाद साढे़साती का दूसरा चरण शुरू होता है जिसमें शनि का गोचर चन्द्रमा के ऊपर से होता है। यहां भी शनि ढाई वर्ष तक रहता है। इसके बाद शनि चन्द्रमा से अगली राशि में प्रवेश करता है और यह अंतिम व तृष्णा चरण होता है। इसमें भी शनि ढाई वर्ष तक रहता है। इस प्रकार चन्द्रमा से एक राशि पहले और एक राशि बाद तक शनि का ढाई ढाई वर्ष के गोचर को एक साथ जोडकर साढे़साती कहा जाता है।शनि कीगति चुंकि मंद होती है अत: एक राशि को पार करने में यह वर्ष का समयलगता है ’(?) उदाहरण के तौर पर देखें तो मेष राशि में जब शनि प्रवेश करेगा तब क्रमशः: वृष और मिथुन तीन राशियों से गुजरेगा और अपना समय चक्र पूरा करेगा। शनि गोचर में जन्म राशि से बारहवेंराशि में प्रवेश करता है तब साढ़े साती की दशा शुरू हो जाती है और जब शनि जन्म से दूसरे स्थान को पार कर जाता है तब इसकी दशा से मुक्ति मिल जाती है। लोग यह सोच कर ही घबरा जाते हैं कि शनि की साढ़े साती आज से शुरू हो गयी तो आज से भी कष्ट और परेशानियों की शुरूआत होने लगी है। जो लोग ऐसा सोचते हैं वेअकारण ही भयभीत होते हैं वास्तव में अलग अलग राशियों के व्यक्तियों पर शनि का प्रभाव अलग होता है। कुछ व्यक्तियों को साढ़े साती शुरू होने से कुछ समय पहले ही इसके संकेत मिल जाते हैं और साढ़े साती समाप्त होने से पूर्व ही तिलों से मुक्ति मिल जाती है और कुछ लोगों को देर से शनि का प्रभावशाली देखने को मिलता है और साढ़े साती समाप्त होन के कुछ समय बाद। तकइसके प्रभाव से दो चार होना पड़ता है अत: आपको इस विषय में घबराने कीआव परिवर्तनता नहीं है। 

लक्षण-शनि की साढ़े साती के समय कुछ विशेष प्रकार की घटनाएं होती हैं जिनसे संकेत मिलता है कि साढ़े साती चल रही है। शनि की साढ़े साती के समय आमतौर पर इस प्रकार की घटनाएं होती है जैसे घर  का कोई भाग अचानक गिर जाता है। घर के अधिकांश सदस्य बीमार रहते हैं, घर में अचानक अाग लग जाती है, आपको बार-बार अपमानित होना पड़ता है। घर की महिलाएं अक्सर बीमार रहती हैं, एक परेशानी से आप जैसे ही निकलते हैं दूसरी परेशानी सिर उठाए खड़ी रहती है। व्यापार एवं व्यवसाय में असफलता और नुकसान होता है। घर में मांसाहार एवं मादक पदार्थों के प्रति लोगों का रूझान काफी बढ़ जाता है। घर में आये दिन कलह होने लगता है। अकारण ही आपके ऊपर कलंक या इल्ज़ाम लगता है। आंख व कान में तकलीफ महसूस होती है एवं आपके घर से चप्पल जूते गायब होने लगते हैं।

आपके जीवन में जब उपरोक्त घटनाएं दिखने लगे तो आपको समझ लेना चाहिए कि आप साढ़े साती से पीड़ित हैं। 

साढ़े साती शुभ भी:-शनि की ढईया और साढ़े साती का नाम सुनकर बड़े बड़े पराक्रमी और धनवानों केचेहरे की रंगत उड़ जाती है। लोगों के मन में बैठे शनि देव के भय का कई ठगज्योतिषी नाज़ायज लाभ उठाते हैं। विद्वान ज्योतिषशास्त्रियों की मानें तोशनि सभी व्यक्ति के लिए कष्टकारी नहीं होते हैं। शनि की दशा के दौरान बहुतसे लोगों को अपेक्षा से बढ़कर लाभसम्मान व वैभव की प्राप्ति होती है। 

साढ़े साती केप्रभाव के लिए कुण्डली में लग्न व लग्नेश की स्थिति के साथ ही शनि और चन्द्र की स्थिति पर भी विचार किया जाता है। शनि की दशा के समय चन्द्रमाकी स्थिति बहुत मायने रखती है। चन्द्रमा अगर उच्च राशि में होता है तो आपमें अधिक सहन शक्ति आ जाती है और आपकी कार्य क्षमता बढ़ जाती है जबकि कमज़ोर व नीच का चन्द्र आपकी सहनशीलता को कम कर देता है व आपका मन काम मेंनहीं लगता है जिससे आपकी परेशानी और बढ़ जाती है। जन्म कुण्डलीमें चन्द्रमा की स्थिति का आंकलन करने के साथ ही शनि की स्थिति का आंकलनभी जरूरी होता है। शनिअगर लग्न कुण्डली व चन्द्र कुण्डली दोनों में शुभ कारक है तो आपके लिएकिसी भी तरह शनि कष्टकारी नहीं होता है

ढैय्या: -कल्याणी प्रददति वै रावसुता राशेश्चतुर्थताष्टमी।

ढैय्या का मतलब होता है ढाई साल। वैसे तो शनिदेव प्रत्येक राशि में ही ढाई वर्ष रहते हैं। लेकिन ढैय्या का विचार चंद्र राशि से केवल चतुर्थ और अष्टम भाव से ही किया जाता है |

जब शनिदेव चंद्र लग्न (जन्म राशि) के अनुसार चतुर्थ व अष्टम भाव से गोचर करते हैं तो जातक को ढैय्या देते हैं। शनि का प्रभाव जन्म कुंडली में शनि की स्थिति और दशंतर्दशा पर निर्भर करता है। शनि का अशुभ प्रभाव जातक की जन्म कुंडली और नवांश कुंडली में शनि की अशुभकारी स्थिति से होता है। ज्योतिष के सामान्य सिद्घान्तों के अनुसार शनि जब अपनी उच्चा राशि, मित्र राशि या अपने नवांश में और वर्गोत्तम होने की स्थिति में शुभफल देता है। शनि जन्म कुंडली के शनि से 3, 6, 10, 11 भावो में भी शुभफल देता है। जन्म कुंडली के

चन्द्रमा से भी शनि 3, 6, 11 भाव में अशुभ फल नहीं देता है। जिस ग्रह के साथ शनि का संबंध सम रहता है उसकी राशि से गोचर करने के समय भी अशुभ फल नहीं देता है।

शनिदेव प्रत्येक भाव में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के अनुसार फल देते हैं।

चतुर्थ और अष्टम भाव मोक्ष के भाव हैं। ज्योतिष का नियम है कि शनिदेव जिस भाव से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के लिए गोचर करे, उसी के अनुरूप व्यक्ति को कार्य करना चाहिए। जो व्यक्ति ढैय्या में तीर्थ यात्रा, समुद्र स्नान और धर्म के कार्य दान-पुण्य इत्यादि करते हैं, उन्हें ढैय्या में भी शुभ फल की प्राप्ति होती है। लेकिन जो उस अवधि में इन कामों से दूर रहते हैं, उन्हें अपने ही पूर्वकृत अशुभ कर्मों के फलस्वरूप शारीरिक-मानसिक परेशानी और कारोबार में हानि होती है।

चतुर्थ भाव की ढैय्या :-शनि जन्म कालीन चंद्र से चतुर्थ में जाए तो कंटक शनि होता है।शनि की लघु कल्याणी ढैय्या के नाम से भी जाना जाता है| चतुर्थ भाव से शनिदेव छठे भाव को, दशम भाव को तथा लग्न को देखते हैं। अर्थात् जब शनिदेव चतुर्थ भाव से गोचर करते हैं तो जातक के निजकृत पूर्व के अशुभ कर्मों के फलस्वरूप उसके भौतिक सुखों यानी मकान व वाहन आदि में परेशानी पैदा होती है जिसका संकेत कुण्डली में शनिदेव की स्थिति दिया करती है। जिसकी वजह से उसके कारोबार में फर्क पड़ता है। उसकी परेशानी बढ़ जाती है। परेशानियों के बढ़ने से जातक को शारीरिक कष्ट की भी प्राप्ति होती है। अर्थात् चतुर्थ भाव की ढैय्या में मकान खरीदना या बेचना नहीं चाहिए। साथ ही अपने व्यवसाय में भी कोई विशेष परिवर्तन नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति अधिकतर शांत रहते हैं और धार्मिक कार्यों में संलग्न रहते हैं, ऐसे व्यक्तियों को चतुर्थ ढैय्या में किसी भी प्रकार की परेशानी पैदा नहीं होती है। और जो व्यक्ति नया कार्य करते हैं, उन्हें परेशानी पैदा होती है।

अष्टम भाव की ढैय्या: जब शनिदेव जन्मकुंडली में चंद्र से अष्टम भाव से गोचर करते हैं तो ढैय्या देते हैं, अष्टम ढैय्या चतुर्थ की ढैय्या से ज्यादा अशुभ फलों का संकेत देती है।अष्टम भाव आयु या मृत्यु का भाव माना गया है|

अष्टम ढैय्या जातक से नया कार्य शुरू कराकर बीच में ही धोखा दे जाती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अष्टम ढैय्या में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। क्योंकि अष्टम भाव से शनिदेव तीसरी दृष्टि से दशम भाव को सप्तम दृष्टि से द्वितीय भाव को और दशम दृष्टि से पंचम भाव को देखते हैं। अष्टम ढैय्या सबसे पहले कारोबार में परेशानी पैदा करती है। जिसकी वजह से जातक के निजी कुटुंब और धन पर बुरा असर पड़ता हैं तथा धन की वजह से जातक के संतान के ऊपर भी कुप्रभाव पड़ता है। अत: जातक को अष्टम ढैय्या में कोई भी नया कार्य, यानी बैंक आदि से कर्ज या जमीन-जायदाद का खरीदना-बेचना या पिता की संपत्ति को बांटना नुकसानदायक होता है। अत: इस ढैय्या के दौरान ये कार्य नहीं करने चाहिए। अष्टम ढैय्या में जो व्यक्ति धार्मिक कार्य, समुद्र स्नान व तीर्थ यात्रा आदि करता है और ईमानदारी पूर्वक, निश्छल-सहृदय, सादा जीवन जीता है, तो उस व्यक्ति को अष्टम ढैय्या में किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होती है।याद रहे कि प्रतिकूल परिस्तिथियों के पीछे भी जातक के पूर्वकृत अशुभ कर्म ही रहते हैं।

लघु कल्याणी ढैय्या व साढेसाती के उपाय:-

ढैय्या में व्यक्ति को धैर्य से काम लेना चाहिए क्योंकि ढैय्या में व्यक्ति को अपने सगे संबंधियों की भी मदद कम से कम मिलती है। इसलिए स्वयं सभी कार्य करने पड़ते हैं।

ढैय्या के अशुभ फलों के प्रभावों को कम करने के लिए, लाल किताब के उपाय:- जातक: प्रात:काल चिड़ियों को दाना डालें,

आँगन या छत पर उनके लिए पानी रखें।

आटा शक्कर का मिश्रण बना कर चींटियों को डालें

प्रतिदिन सुबह जल्दी उठ कर स्नान आदि से निवृत होकर सूर्यदेव को प्रतिदिन जल दें।

बुरे कार्यों से बचें।

ढैय्या में सफलता प्राप्त होगी। यहॉ पढिए राहू के चमत्कारी उपाय

आप साढ़े साती के दुष्प्रभाव से बचने क लिए जिन उपायों को आज़मा सकते हैं वे निम्न हैं:

शनिदेव भगवान शिव के शिष्य हैं, शिवजी की जिनके ऊपर कृपा होती है उन्हें शनि हानि नहीं पहुंचाते अत: नियमित रूप से शिवलिंग की पूजा व अराधना करनी चाहिए। पीपल में सभी देवताओं का निवास कहा गया है इस हेतु पीपल को आर्घ देने अर्थात जल देने से शनि देव प्रसन्न होते हैं। अनुराधा नक्षत्र में जिस दिन अमावस्या हो और शनिवार का दिन हो उस दिन आप तेल, तिल सहित विधि पूर्वक पीपल वृक्ष की पूजा करें तो शनि के कोप से आपको मुक्ति मिलती है। शनिदेव की प्रसन्नता हेतु शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए।शनि के कोप से बचने हेतु आप हनुमान जी की आराधाना कर सकते हैं, क्योंकि शास्त्रों में हनुमान जी को रूद्रावतार कहा गया है। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करे। आप साढ़े साती से मुक्ति हेतु शनिवार को बंदरों को केला व चना खिला सकते हैं। नाव के तले में लगी कील और काले घोड़े का नाल भी शनि की साढ़े साती के कुप्रभाव से आपको बचा सकता है अगर आप इनकी अंगूठी बनवाकर धारण करते हैं। लोहे से बने बर्तन, काला कपड़ा, सरसों का तेल चमड़े के जूते, काला सुरमा, काले चने, काले तिल, उड़द की साबूत दाल ये तमाम चीज़ें शनि ग्रह से सम्बन्धित वस्तुएं हैं, शनिवार के दिन इन वस्तुओं का दान करने से एवं काले वस्त्र एवं काली वस्तुओं का उपयोग करने से शनि की प्रसन्नता प्राप्त होती है।

बिशेष उपाय हेतु इसी ब्लाग पर मुख्य मेनु से शनि राहू केतु ग्रह की शांति के उपाय पढि़ये।
 इस ब्लाग को फालो करे और अपने मित्रो मे शेयर करे। Follwo बटन को मेनु से चुने और फार्म को भरिए।


ज्वालामुखी योग, मुहुर्त व ज्योतिष्य

श्रीराम!
भारतीय ज्योतिष्य मे अनेक शुभ अशुभ मुहुर्त है किन्तु इन सबमे सबसे भयानक योग है "ज्वालामुखी योग"। कहा जाता है कि-
*" जन्मे तो जीवे नही बसै तो ऊजड होय।"
कामनी पहने चूडियॉ, निश्चय विधवा होय।।""*
*"कुऐ नीर झॉके नही, खाट पडो न उठन्त।
ज्योतिषी जो जाने नही, ज्योतिष कहता ग्रंथ।।"*
 इसमे जन्म ले तो जीवे नही, घर मे बसे तो उजड जाय, सुहगिन चुडी पहने तो विधवा होय, कुऑ, बोरिंग आरंभ करे तो पानी न आये, बीमार पडे तो बीमारी ठीक न हो।
 
 यदि भूलवश भी इस योग में कोई कार्य आरंभ हो जाए तब वह सफल नहीं होता या बार-बार विघ्न-बाधाएँ व्यक्ति के समक्ष आती रहती हैं जिससे वह कार्य पूरी तरह से सिद्ध नहीं हो पाता. इसलिए इस योग में कोई भी शुभ कार्य आरंभ नहीं करना चाहिए ।

यह योग, तिथि और नक्षत्र के संयोग से बनता है, जैसे – प्रतिपदा तिथि के दिन मूल नक्षत्र हो, पंचमी तिथि को भरणी नक्षत्र हो, अष्टमी तिथि के दिन कृतिका नक्षत्र, नवमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र और दशमी तिथि को आश्लेषा नक्षत्र पड़ रहा हो तब ज्वालामुखी योग बनता है. 



2020 में बनने वाले अगामी ज्वालामुखी योग

  प्रारंभ काल          समाप्ति काल

तिथि  समय             तिथि   समय

6 जून 15:12,           6 जून 22:33,
11 अगस्त 24:57,      12 अगस्त 11:17,
 13 अगस्त 3:26,      13 अगस्त 12:59,
 7 सितंबर 05:24,       7 सितंबर 21:39,
 12 अक्तूबर 01:19,     12 अक्तूबर 16:39
 14 दिसंबर 23:26,       15 दिसंबर 19:07


पं. राजेश मिश्र "कण"
  भास्कर ज्योतिष्य व तंत्र मंत्र अनुसंधान केन्द्र, आजमगढ़।

महिलाऐ, यात्रा, शुक्रदोष व गोत्र प्रभाव विचार

"शुक्रदोष विचार"
जिस दिशा में 'शुक्र "सम्मुख एवं जिस दिशा में दक्षिण हो ,उन दिशाओं में बालक ,गर्भवती स्त्री तथा नूतन विवाहिता स्त्री को यात्रा नहीं करनी चाहिए ?
    यदि बालक यात्रा करे तो विपत्ति पड़ती है। नूतन विवाहिता स्त्री यात्रा करे तो सन्तान को दिक्कत होती है।गर्भवती स्त्री यात्रा करे तो गर्भपात होने का भय होता है ।यदि पिता के घर कन्या आये तथा रजो दर्शन होने लगे तो सम्मुख "शुक्र "का दोष नहीं लगता है ।
भृगु ,अंगीरा ,वत्स ,वशिष्ठ ,भारद्वाज -गोत्र वालों को सम्मुख "शुक्र "का दोष नहीं लगता है ।
    सम्मुख "शुक्र "तीन प्रकार का होता है-१जिस दिशा में शुक्र का उदय हो।
२उत्तर दक्षिण गोल -भ्रमण वशात जिस दिशा शुक्र रहे।
३अथवा --कृतिका आदि नक्षत्रों के वश जिस दिशा में हो,उस दिशा में जाने वालों को शुक्र सम्मुख होगा ।
जिस दिशा मे उदय हो -उस दिशा में यात्रा न करें
१-जब गुरु अथवा शुक्र अस्त हो गये हों -अथवा सिंहस्त गुरु हो ,कन्या का रजो दर्शन पिता के घर में होने लगा हो ,अच्छा मुहूर्त न मिले तो --दीपावली के दिन कन्या पति के घर जा सकती है ।
२-यदि पश्चिम में उदय हो -तो पूर्व एवं उत्तर दिशाओं तथा ईशान ,वायव्य विदिशाओं में जाना शुभ रहेगा

३-यदि पूर्व में शुक्र का उदय हो -तो पश्चिम और दक्षिण दिशाओं तथा नैरित्य तथा अग्निकोण विदिशाओं को जाना शुभ होगा । ।
४-गुरु उपचय में हो ,शुक्र केंद्र में हो एवं लग्न शुभ हो तथा शुभ ग्रह से युक्त हो --तब स्त्री पति के घर की यात्रा करे।
५-जब चन्द्र रेवती से लेकर कृतिका नक्षत्र के प्रथम चरण के बीच में रहता है --तब तक शुक्र अन्धा हो जाता है --इसमें सम्मुख अथवा दक्षिण शुक्र का दोष नहीं लगता है ।
६-एक ही ग्राम या एक ही नगर में ,राज्य परिवर्तन के समय -विवाह तथा तीर्थयात्रा के समय शुक्र का दोष नहीं लगता है।
(मुहुर्तचिंतामणि,ज्योत्तिषार)
       पं.राजेश मिश्र"कण"

शनि, राहू और केतु शांति के विस्तृत उपाय

ग्रहो की स्थित जन्मकुंडली मे जो भाव मे होता है, उस भावपर अन्य ग्रहो की दृष्टि, युति, कारक, भाव आदि की स्थिति, से ग्रह शुभ अशुभ प्रभाव देने मे सक्षम होते है। अतः जब ग्रह अशुभकारक हो, तो उनका उपाय करने से ग्रहो का कोप शांत होकर शुभफल प्राप्त होता है।
इस लेख के माध्ययम से एक एक कर प्रत्येक ग्रह के बारे में जानकारी दी गयी है। अतिरिक्त जानकारी के लिए नि: शुल्क परामर्श के लिए, follwo और coment का प्रयोग करें।
ग्रहदोष सूर्य चंद्र मंगल ग्रह गुरु  शुक्र ग्रह की शांति के बिषय मे पुर्दन के लिए इस सूची को देखा।

ज्योतिष विज्ञान में शनि उपासना
शनि गंभीर और क्रुर प्रकृति के ग्रह है। ये कालकार, तमोगुणी और पाप ग्रह है। कुटनीति, छल, कपट, क्रोध, मोह, क्षण, राजदण्ड, सन्यास आदि शनि के स्वभाव में है।
इसी कारण से आमजन में यह धारणा है कि शनि सदैव अनिष्टकारी ही होते हैं। जो कि पूर्ण सत्य नहीं है। शनि सदैव अनिर्वचनीय नहीं होते हैं। ये तो मनुष्यों के पूर्व संचित कर्मो के अनुसार अच्छा या बुरा फल देते है। शुभ कर्म वालों को खुशी, समृद्धि और उन्नति देते हैं तो अशुभ कर्म वालों को दुःख, दरिद्रता, और सम्मान देते हैं।
शनि राजा को रंक और रंक को राजा बनाने का सामर्थ्य रखना है। इसी कारण से इन्हे भाग्य विधाता भी कहा जा सकता है।
अतः शनि को प्रसन्न कर शुभ फल प्राप्त करने और अशुभ पैरों से बचने के लिए निम्न उपाय किए जा सकते है।

मंत्र जाप :- शनि के मंत्रों के विधिवत जप करने से शनि जनित बाधाओं का निवारण होता है। & शनि शुभ फल प्रदान करते है। शनि की ढैया और साढ़े साती में मंत्र जप योग्य और शीघ्र फलदाय होते हैं। मंत्र जप स्वयं या किसी योग्य पंडित से विधिवत कराने चाहिए।
शनि को प्रसन्न के मंत्र और जप संस्था :-

1. वैदिक मंत्र :- नीलाजं समाभासं रविपुत्रम् यमग्रजम्।
छाया मार्तण्ड सम्भूतम् तम् नमामि शनैस्कृतम् ।।
(जप संख्या 92 हजार)

2. ऊँ शन्नो देवी रबिष्टय भवआप अभिषेक।
प्रतये शंयूर्यभि स्त्रवन्तुनः ।। (जप संख्या २३ हजार)

३. ऊँ स्वः भुवः। स सः खौं खीं खं ऊँ शनिश्चतु नमः ।। (जप संख्या २३ हजार)
४. ऊँ ऐं हनीं स्त्रीं शनैश्चराय नमः। (जप संख्या २३ हजार)
५. ऊँ शं शनये नम: ।। (जप संख्या २३ हजार)

तांत्रिक मंत्र
6. ऊँ खँचुं खूँ सः ।। (19 हजार)
7. ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: ।। (२३ हजार जप)
शनि गायत्री मंत्र

भ ऊँ भगभाय विद्मये मृत्युरूपाय धीमहि
तन्नो शौरि: प्रचोदयात्। (23 हजार जप)
पौराणिक मंत्र

9. ऊँ शं शनैश्चराय नम: ।। (23 हजार जप)

स्त्रोत पाठ द्वारा :- शनि देव का संपूर्ण कष्ट निवारण हेतु ऋषि पिलाप्पद द्वारा रचित स्त्रोत का नित्य प्रात: उठते ही बिस्तर में बैठे-बैठे करना चाहिए।
स्त्रो स्त्र- कोणस्थः पिंगलो भैरुः कृष्णो रौद्रो-न्तको यमः।
सौरि: शनैश्चरौ मन्दः पिप्लादेन संज्ञाः ।।
एतानि दस नामामि पातरूत्थाय यः पठेत्।
शनैश्चर कृतांतर नूर
जिनकी कुंडली में शनि कमज़ोर हैं या शनि पीड़ित हैं उन्हें काले गाय का दान करना चाहिए। काला वस्त्र, उड़द की दाल, काला तिल, चमड़े का जूता, नमक, सरसों का तेल, लोहा, खेती योग्य भूमि, बर्तन और अनाज का दान। शनि से संबंधित रत्न का दान भी श्रेष्ठ होता है। शनि ग्रह की शांति के लिए दान देते समय ध्यान रखें कि संध्या काल हो और शनिवार का दिन हो और दान प्राप्त करने वाला व्यक्ति ग़रीब और वृद्ध हो।शनि के कोप से बचने के लिए व्यक्ति को शनिवार के दिन और शुक्रवार के दिन व्रत रखना चाहिए। लोहे के बर्तन में दही चावल और नमक सहित भिखारियों और कौओं को देना चाहिए। रोटी पर नमक और सरसों का तेल लगाकर कौआ को देना चाहिए। तिल और चावल पक्कर ब्राह्मण को खिलाना चाहिए। अपने भोजन में से काए के लिए एक हिस्सा निकालकर उसे दें। शनि ग्रह से पीड़ित व्यक्ति के लिए हनुमान चालीसा का पाठ, महामृत्युंजय मंत्र का जाप और शनिस्तोत्रम का पाठ भी बहुत लाभदायक होता है। शनि ग्रह के प्रभाव से बचाव के लिए कष्टदायक, वृद्ध और हानिकारकियो के प्रति अच्छा व्यवहार रखें। मोर पंख धारण करने से भी शनि के प्रभाव में कमी आती है।
शनिवार के दिन पीपल वृक्ष की जड़ पर तिल्ली के तेल का दीपक जलाएं।
शनिवार के दिन लोहा, चमड़ा, लकड़ी की वस्तुओं और किसी भी प्रकार का तेल नहीं खरीदना चाहिए।
शनिवार के दिन बाल एवं दाढ़ी-मूँछ नहीं कटवाने चाहिए।
भड्डरी को कड़वे तेल का दान करना चाहिए।
भिखारी को उड़द की दाल की कचौरी खिलानी चाहिए।
किसी दुःखी व्यक्ति के आँसू अपने हाथों से पोंछने चाहिए।
घर में काले पत्थर लगवाना चाहिए।
शनि के प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों के लिए शनिवार का दिन, शनि के नक्षत्र (पुष्य, अनुराधा, उत्तरा-भाद्रपद) और शनि की होरा में अधिक शुभ फल देता है।
क्या न?

जो व्यक्ति शनि ग्रह से पीड़ित हैं उन्हें गरीबों, वृद्धों और नौकरों के प्रति अपमान जनक व्यवहार नहीं करना चाहिए। नमक और नमकीन पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए, सरसों तेल से बने पदार्थ, तिल और मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। शनिवार के दिन सेविंग नहीं करना चाहिए और जमीन पर नहीं सोना चाहिए। शशि से पीड़ित व्यक्ति के लिए काले घोड़े की नाल और नाव की कांटी से बनी अंगूठी भी काफी सस्ती होती है, लेकिन इसे किसी अच्छे पंडित से सलाह और पूजा के पश्चात ही धारण करते हैं। चाहिए।
~~~
कैसे करें राहु ग्रह की शांति
कई बार किसी समय-विशेष में कोई ग्रह अशुभ फल देती है, ऐसे में उसकी शांति शांति होती है। गृह शांति के लिए कुछ शास्त्रीय उपाय प्रस्तुत किए गए हैं। इनमें से किसी एक को भी करने से अशुभ पैरों में कमी आती है और शुभ पैरों में वृद्धि होती है।
योजनाओं के मंत्र की जप संख्या, द्रव्य दान की सूची आदि सभी जानकारी एकसाथ दी जा रही है। मंत्र जप स्वयं करें या किसी कर्मनिष्ठ ब्राह्मण से कराएं।

दान द्रव्य सूची में पदार्थोंदिए पदार्थ को दान करने के अतिरिक्त उसमें लिखित रत्न-उपरत्न के अभाव में जड़ी को विधिवत स्वयं धारण करें, शांति होगी।
राहु के लिए: समय रात्रिकाल
भैरव पूजन या शिवपूजन करें। काल भैरव अष्टक का पाठ करें।
राहु मूल मंत्र का जप रात्रि में 18,000 बार 40 दिन में करें।
मंत्र: ': भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:'।
दान-द्रव्य: गोमेद, सोना, सीसा, तिल, सरसों का तेल, नीला कपड़ा, काला फूल, तलवार, कंबल, घोड़ा, सूप।
शनिवार का व्रत करना चाहिए। भैरव, शिव या पूजा की पूजा करें। 8 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। 

कुंडली में केतु के अशुभ प्रभाव में होने पर चर्म रोग, मानसिक तनाव, आर्थिक नुक्सान, स्वयं को ले कर मूर्फहमी, आपसी तालमेल में कमी, बात बात पर आपा खोना, वाणी का कठोर होना व युवती बोलना, जोड़ों का रोग या मूत्र और किडनी संबंधित बीमारी हो जाती है। संतान को पीड़ा होती है। वाहन दुर्घटना, उदर कस्ट, मस्तिस्क में दर्द आथवा दर्द रहना, अपयश की प्राप्ति, सम्बन्ध ख़राब होना, दिमागी संतुलन ठीक नहीं रहता है, शत्रुओं से मुश्किलें बढ़ने की संभावना बनी रहती है।

उपाय: दुर्गा, शिव व हनुमान की आराधना करे | तिल, जौ किसी हनुमान मंदिर में या किसी यज्ञ स्थान पर दान करे | कान पसवाएँ। सोते समय सर के पास किसी पत्र में जल भरने कर रक्खे और सुबह किसी पेड़ में दाल दे, यह प्रयोग 43 दिन का होता है इसके साथ हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुप्टष्टक, हनुमान बाहुक, सुंदरकांड का पाठ और का कें केतवे नमः का १०८ बार नित्य जाप करना लाभकारी होता है। अपने खाने में से कुत्ते, कौव्वे को भाग दें। तिल व कपिला गाय दान में दें। पक्षिंस कोलेट दे | चिटिओं के लिए भोजन की व्यस्त करना अति महत्व्यपूर्ण है |

कभी भी किसी भी उपाय को 43 दिन करना चहिए तब ही फल प्राप्ति संभव होती है। मंत्रो के जाप के लिए रुद्राक्ष की माला सबसे उचित मानी गई है | इन उपायों का गोचरवश प्रयोग करके कुंडली में अशुभ प्रभाव में स्थित योजनाओं को शुभ प्रभाव में लाया जा सकता है। सम्बंधित ग्रह के देवता की आराधना और उनके जाप, दान उनकी होरा, उनके नक्षत्र में अत्यधिक स्वास्थ्य होते हैं |
नि: शुल्क परामर्श के लिए, चैनल को फॉलो करें और टिप्पणियाँ मे अपना परामर्श लें जो आप जानना चाहते हैं, लिखित है।
बिशेष जानकारी िश टिप्पणियाँ मे संपर्क करे!
य ईमेल करेक्ट! पं।
राजेश मिश्र
भास्कर ज्योतिषी एंव तन्त्र अनुसंधान केन्द्र बरईपुर आजमगढ।

ग्रहदोष व शांति के उपाय, सूर्य, चंद्र,मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र

आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक, व्यापारिक परेशानीयो का कारण ग्रहजनित पीडा होती है। इससे राहत के लिये विभिन्न ग्रहो की शांति के उपाय दिये जा रहे है।
सूर्य ग्रह की शांति के सरल उपाय
जिस व्यक्ति की कुण्डली मे सूर्य २,७,१०,१२ भाव मे हो विशेश कर उनके लिये
कई बार किसी समय-विशेष में कोई ग्रह अशुभ फल देता है, ऐसे में उसकी शांति आवश्यक होती है। गृह शांति के लिए कुछ शास्त्रीय उपाय प्रस्तुत हैं। इनमें से किसी एक को भी करने से अशुभ फलों में कमी आती है और शुभ फलों में वृद्धि होती है।
ग्रहों के मंत्र की जप संख्या, द्रव्य दान की सूची आदि सभी जानकारी एकसाथ दी जा रही है। मंत्र जप स्वयं करें या किसी कर्मनिष्ठ ब्राह्मण से कराएं। दान द्रव्य सूची में ‍दिए पदार्थों को दान करने के अतिरिक्त उसमें लिखे रत्न-उपरत्न के अभाव में जड़ी को विधिवत् स्वयं धारण करें, शांति होगी।
सूर्य के ‍लिए : समय सूर्योदय
भगवान शिव की पूजा-अर्चना करें। आदित्य स्तोत्र या गायत्री मंत्र का प्रतिदिन पाठ करें। सूर्य के मूल मंत्र का जप करें।
मंत्र : 'ॐ ह्रां ह्रीं ह्रों सूर्याय नम:।'
40 दिन में 7,000 मंत्र का जप होना चाहिए। जप सूर्योदय काल में करें।
दान-द्रव्य : माणिक, सोना, तांबा, गेहूं, गुड़, घी, लाल कपड़ा, लाल फूल, केशर, मूंगा, लाल गाय, लाल चंदन।
दान का समय : सूर्योदय होना चाहिए। रविवार का व्रत करना चाहिए। रुद्राभिषेक करना चाहिए। एकमुखी या बारहमुखी रुद्राक्ष धारण करें।
चन्द्र ग्रह की शान्ति के उपाय-
~~~~~~~~~~~~~~
जिनकी कुण्डली मे चन्द्र कमजोर  नीच पाप ग्रह से युत दुःस्थान य किसी प्रकार से अनिष्टकारी हो
चन्द्र के लिए : समय संध्याकाल
शिव एवं पार्वती माता की पूजा करें। अन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ करें।
चंद्र के मूल मंत्र का11,000  जाप करें।
मंत्र : 'ॐ श्रां श्रीं श्रोक्तं चंद्रमसे नम:'।
दान द्रव्य : मोती, सोना, चांदी, चावल, मिश्री, दही, सफेद कपड़ा, सफेद फूल, शंख, कपूर, सफेद बैल, सफेद चंदन।
सोमवार का व्रत करें।सोमवार को देवी पूजन करें।
दोमुखी रुद्राक्ष धारण करें।
मंगल पीडा निवारण
~~~~~~~~~~

जिसकी कुण्डली मे मंगल अशुभ भाव (1,4,5,8,9,12 मे मंगल अमंगलकारी) हो, उसे मंगल की शान्ति हेतू निम्न उपाय करने चाहिये
 दान - मूंगा.सोना, तॉबा,मसूर, गुड, घी, लालवस्त्र,केशर ,कस्तुरी,लाल चन्दन (दान अपनी सामर्थ्य के अनसार ही करना चाहिये)
अन्नत मूल(सारिवा) की जड शरीर पर धारण करने से मंगलजनित दोष की शान्ति होती है|
मंगल मंत्र का 10,000 जप किया जाय तो शान्ति होती है  मंगल मंत्र-
एकाक्षरी बीजमंत्र- ऊँ अं अंगारकाय नमः|
तांत्रिक मंत्र- ऊँ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः |
मंगल जाप करनेवाले  जातक को चाहिये की वह अपनी सामर्थ्य अनुसार 4 से8 रत्ती मूगा की अंगूठी प्राणप्रतिष्ठा पूर्वक बनवा अपनी अनामिका उगली मे धारण करे और सामर्थ्य अनुसार सोने य ताबे पर निर्मित भौम यंत्र एवंभौम मूर्ति की स्थापना कर उत्तराभिमुख सूर्योदय के 1 घंटे बाद तक जप करे | जप की समाप्ति पर खैर की लकडी से हवन करे|
 मंगल का व्रत करे- मंगल को नमक न खाये।
बुध ग्रह कीशान्ति के लिये
~~~~~~~~~~~~~
जिन मनुष्यो के जन्मपत्रमे बुध लग्न से ६,८,१२ भाव मे  से किसी मे हो नीच अस्त य नीचास्त होकर पीडित करता हो उन्हे निम्न उपाय करने से अवश्य ही लाभ होगा |
दान- पन्ना, सोना ,कांसा,घी,मूंग,हरावस्त्र, पंचरंग के फूल, हाथी दॉत, कपूर, शश्त्र और फल|
 बुध देवता स्वर्णदान से शीघ्र प्रसन्न होते है , दान अपनी सामर्थ्य अनुसार ही करना चाहिये , कर्ज लेकर नही |
बुध की शान्ति हेतू विधारा वृक्ष की जड बुधवार के दिन जबशुभ नक्षत्र हो अपने घर लाकर विधिपूर्वक पूजन करके धारण करे तो निश्चय ही बुध जनित पीडा से राहत मिलेगी|
बुध मंत्र का जाप 9000 करना चाहिये
विनियोग- उदबुध्य ईति मन्त्रस्य परमेष्ठी ऋषिः बुधे देवता त्रिष्टुपछन्दःसौम्यमंत्रजपे विनियोगः
एकाक्षरी बीज मंत्र-ॐ बुं बुधाय नमः|
 तांत्रिक बुध मंत्र- ॐ ब्रां ब्रीं, ब्रौं ,सः बुधाय नमः|

कॉसे के बर्तन मे देशी घी कपूर और शक्कर डालकर पानी मे बहा दे, बर्तन घर ले आये
कुमारी कन्याओ का पूजन करे
जन्मकुडंली मे स्थित गुरु भाव व दृष्टि के अनुसार शुभ व अशुभ फल का तीव्र कारक होता है शुभ भाव मे तो शुभ कारक है किन्तु अशुभ भाव मे होने पर शनि एवं मंगल से भी अधिक कष्टकर होता है, यह मेरा निजी अनुभव है|प्रायः गुरु लग्न व गोचर मे ३,६,८,१२ भावो मे अशुभ होता है|
 जिनकी कुन्डली मे गुरु ३,८,९,१२ भाव मे बैठा हो उन्हे गुरु को प्रसन्न करने का उपाय करना चाहिये|
गुरु प्रतिदान-पुखराज, सोना,चने की दाल,घी, पीला वस्त्र, हल्दी,. गीता की पुस्तक,पीले फल|
 धारण- पुखराज सोने मे य केले की जड,  य सारंगी की जड पीले कपडा य धागा मे|
गुरु स्तुति-
 देवमन्त्री विशालाक्षः सदा लोकहिते स्तः |
 अनेक शिवयैः सम्पूर्णः पीडा दहतु मे गुरुः||
 विनियोग
अस्य श्री वृहस्पतिमन्त्रस्यं गृत्समदऋषि ब्रह्मा देवता त्रिष्टुपछन्द बृहस्पति- मन्त्रजपे विनियोगः
सवीज वैदिक मन्त्र-ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः ॐ भूर्भुवः स्वः| ॐ बृहस्पतेअ्अतियर्ययो् अहदियुमद्विभाति वक्रतमज्जनेषु| यददीदयच्छवसअ्ॠतप्प्रजातु तदस्मासु द्रविणन्धेहि चित्रम् ॐ स्वः भूवः भूः ॐ सः ह्रौ, ह्री, ह्रां ॐ बृहस्पतये नमः|
एकाक्षरी बीज मन्त्र- ॐ बॄं बृहस्पतये नमः|
 तान्त्रिक गुरु मन्त्र- ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः|
 जपसंख्या- 19000
~~~~~~~~
जन्मकुडंली मे स्थित शुक्र भाव व दृष्टि के अनुसार शुभ व अशुभ दोनो फल का तीव्र कारक होता है शुभ भाव मे तो शुभ कारक है किन्तु अशुभ भाव मे धनहानि  व कलहप्रदायक है प्रायः शुक्र लग्न व गोचर मे ३,६,७,८,१२ भावो मे अशुभ होता है|
 जिनकी कुन्डली मे शुक्र ३,६,७,८,१२ भाव मे बैठा हो नीच अस्त य शत्रुक्षेत्री हो उन्हे शुक्र को प्रसन्न करने का उपाय करना चाहिये|
शुक्रप्रतिदान-हीरा, चॉदी,सोना, चावल,दूध सफेद वस्त्र, कपूर,कस्तुरी,सफेद चन्दन,सफेद मिठाई|
 धारण- हीरा सोने य चादी मे सरपुंखा (झोंझरु) की जड सफेद कपडा य धागा मे|
शुक्र स्तुति-
 दैत्यमन्त्री गुरुस्तेषां प्राणदश्च महाशुतिः |
 प्रभुस्ताराग्रहाणां च पीडां दहतु मे भृगुः||
 विनियोग
अन्नात्परिस्रुत इति मन्त्रस्य प्रजापति ऋषिः अश्विसरस्वतीन्द्रा देवता जगतीछन्दः शुक्र मन्त्रजपे विनियोगः|
सवीज वैदिक मन्त्र-ॐ  द्रां द्रीं द्रौं सः ॐ भूर्भुवः स्वः| ॐ अन्नात्परिस्रूतो रसम्ब्रह्मणा व्यपिवत्क्षत्रम्पयः सोमम्प्रजापतिः| ऋतेन सप्तमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्धसअ्इन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पयोमृतम्मधु ॐ स्वः भूवः भूः ॐ सः द्रौ, द्री, द्रां ॐ शुक्राय नमः|
एकाक्षरी बीज मन्त्र- ॐ शुं शुक्राय नमः|
 तान्त्रिक शुक्र मंत्र- द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः|
 जपसंख्या- 16000

कृपया यह लेख आपको कैसा लगा, अपने सुधाव य शिकायत कमेमट करे। हमारी साईट को फालो करे।
धन्यवाद।

अपने नाम व शहर ग्राम के नाम से, निवास योग्य स्थान, भूमि परीक्षा, आय व्यय, द्वार दिशा निर्देश

ज्योतिष्य शाश्त्र मे वास्तु विद्या द्वारा रहने के स्थान, गृह निर्माण की विधि व स्थान के फल का निर्णय करते है।
हम जिस शहर/ नगर य ग्राम मे रहते है, वह स्थान हमारे लिये लाभप्रद है य नही। किस प्रकार का मकान उत्तम होता है ? किस दिशा का द्वार किसके लिये उत्तम है ? भूमि की परीक्षा कैसे करे ? घर के समीप कौन सा वृक्ष क्या फल देता है? आदि प्रश्नो के उत्तर इस लेख मे दिये जा रहे है।
  सर्व प्रथम जिस शहर य ग्राम मे निवास करते है य करना चाहते है, वह आय देने वाला है, य व्यय कराने वाला है। यह जानने के लिये संलग्न चित्र की सहायता लेते है।
चित्र मे अपने नाम का प्रथम अक्षर किस वर्ग मे है, यह देखे तथा जिस शहर य ग्राम मे रहना चाहते है उस शहर य ग्राम के नाम का प्रथम अक्षर किस वर्ग मे है यह देखे। जिस ग्राम य दिशा मे घर बनाना हो वह साध्य तथा जो बनवाने य रहने वाला है वह साधक कहा जाता है।
साध्य अंक के बाए साधक अंक लिखकर 8 से भाग देने पर शेष लाभ कहा जाता है तथा साधक अंक के बाए साध्य अंक लिखकर 8 से भाग देने पर शेष व्यय कहलाता है। यदि व्यय से लाभ अधिक हो तो वहॉ रहना लाभप्रद होता है, यदि लाभ से व्यय अधिक हो तो हानि होती है।
उदाहरण: मान लिजिए राजेश को बरईपुर ग्राम मे रहना है तो, साधक राजेश के प्रथम नाम का अक्षर  र  यवर्ग मे पड़ता है जिसकी संख्या 7 है, तथा साध्य बरईपुर का प्रथम अक्षर ब  पवर्ग मे पड़ता है, जो कि 6 अंक सूचित करता है।( देखिये संलग्न चित्र ) 
 अतः सूत्रानुसार :
साधक साध्य÷ 8 =  शेष लाभ
76÷8= 4 शेष
साध्य साधक÷8=शेष व्यय
67÷8=3 शेष
यहॉ व्यय से लाभ अधिक होने से यह स्थान लाभदायक है।
नोट- यदि भाग देने पर शून्य आये तो उसे 8 ही समझे।
इस तालिका के अनुसार अपने वर्ग से पॉचवा वर्ग बैरी होता है, अतः इसमे निवास उपयुक्त नही होता।
दूसरी विधि: 
~~~~~~ अपनी नाम राशि से नगर य ग्राम की राशि दूसरी, पॉचवी, नवी, दसवी, य ग्यारहवी हो तो  वह नगर / ग्राम निवास के लिये शुभ होती है। तथा यदि एक, य सातवी हो तो शत्रुता होती है।तीसरी य छठी हो तो हानि होती है। चौथी आठवी य बारहवी हो तो रोग होता है।
अब जिस भूमि पर मकान का निर्माण करना है, उसके लिये भूमि की परीक्षा की विधि कहते है। सांयकाल गृह स्वामी के हाथ से, एक हाथ लम्बा एक हाथ चौडा तथा एक हाथ गहरा गड्ढा खोदकर पानी से भरवा दे। पुनः प्रातःकाल उठकर देखें, गड्ढे मे पानी दिखाई दे तो वृद्धिप्रद, केवल कीचड़ बचे तो मध्यम, तथा यदि दरार दिखाई दे तो अशुभ समझना चाहिये।
मकान की लम्बाई दक्षिण से उत्तर शुभ होती है।
  किस राशि के लिये किस दिशा का द्वार शुभ होता है, अब उसे कहते है।
कर्क, वृश्चिक, मीन-- पूर्व दिशा मे।
कन्या, मकर, मिथुन -- दक्षिण दिशा मे।
तुला, कुम्भ, वृष -- पश्चिम दिशा मे।
मेष, सिंह, धनु -- उत्तर दिशा मे।

अब घर के समीप स्थित वृक्ष का वास्तु जनित प्रभाव बताते है।
घर के समीपस्थ वृक्ष का वास्तुजनित प्रभाव- अश्वत्थं च कदम्बं च कदलीबीजपूरकम्|
गृहे यस्य प्ररोहन्ति स गृही न प्ररोहति||
पीपल कदम्ब केला बीजू नींबू ये जिस घर मे होते है, उसमे रहनेवाले की वंशवृद्धि नही होती| घर मे कॉटे वाले वृक्ष शत्रुका भय दूधवाले वृक्ष धन का नाश और फलवाले वृक्ष संतान का नाश करते है

अशोक, शमी, मौलसिरी,  चम्पा, अर्जुन , कटहल, केतकी, चमेली, नारियल, महुआ, वट, सेमल, बकुल , शाल आदि वृक्ष गृह व गौशाला के  समीप शुभ है|
 यदि निम्न क्रम से वृक्ष लगाये जाय तो अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे- पूर्व मे बरगद, दक्षिण मे गूलर, दक्षिण व नैऋत्य मे जामुन कदम्ब, पश्चिम मे पीपल, वायव्य मे बेल, आग्नेय मे अनार, उत्तर मे पाकड़, ईशान मे अॉवला, ईशान पूर्व मे कटहल व आम|
 उपरोक्तदिशा मे परिवर्तन से हानिकर है, वृक्षरोपण करते समय निम्न मंत्र पढे़- ॐ वसुधेति शीतेतिपुण्यदेति धरेति च| नमस्ते शुभगे देवि द्रुमोऽयं त्वयि रोप्यते||
 शुभ मुहुर्त मे लगाये|| शंका समाधान हेतु टिप्पणी मे संपर्क करे।
- नारद पुराण व अग्नि पुराण
 जय श्रीराम||

जीवित श्राद्ध प्रमाण संग्रह,

  प्रमाण-संग्रह (१) जीवच्छ्राद्धकी परिभाषा अपनी जीवितावस्थामें ही स्वयंके कल्याणके उद्देश्यसे किया जानेवाला श्राद्ध जीवच्छ्राद्ध कहलाता है- ...