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Showing posts from April, 2020

ज्वालामुखी योग, मुहुर्त व ज्योतिष्य

श्रीराम! भारतीय ज्योतिष्य मे अनेक शुभ अशुभ मुहुर्त है किन्तु इन सबमे सबसे भयानक योग है "ज्वालामुखी योग"। कहा जाता है कि- *" जन्मे तो जीवे नही बसै तो ऊजड होय।" कामनी पहने चूडियॉ, निश्चय विधवा होय।।""* *"कुऐ नीर झॉके नही, खाट पडो न उठन्त। ज्योतिषी जो जाने नही, ज्योतिष कहता ग्रंथ।।"*  इसमे जन्म ले तो जीवे नही, घर मे बसे तो उजड जाय, सुहगिन चुडी पहने तो विधवा होय, कुऑ, बोरिंग आरंभ करे तो पानी न आये, बीमार पडे तो बीमारी ठीक न हो।    यदि भूलवश भी इस योग में कोई कार्य आरंभ हो जाए तब वह सफल नहीं होता या बार-बार विघ्न-बाधाएँ व्यक्ति के समक्ष आती रहती हैं जिससे वह कार्य पूरी तरह से सिद्ध नहीं हो पाता. इसलिए इस योग में कोई भी शुभ कार्य आरंभ नहीं करना चाहिए । यह योग, तिथि और नक्षत्र के संयोग से बनता है, जैसे – प्रतिपदा तिथि के दिन मूल नक्षत्र हो, पंचमी तिथि को भरणी नक्षत्र हो, अष्टमी तिथि के दिन कृतिका नक्षत्र, नवमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र और दशमी तिथि को आश्लेषा नक्षत्र पड़ रहा हो तब ज्वालामुखी योग बनता है.  2020 में बनने वाले अगामी ज्वालामुखी ...

छुआछूत व जातिवाद का जन्म

श्रीराम!! शंका-सनातन धर्म मे जो चार वर्ण, ब्राह्मण 'क्षत्रिय, वैश्य, और शुद्र उनके सभी के जनक ब्रह्मा जी है फिर यह जातिवाद की परम्परा और छुवा छूत का जन्म कैसे हुआ है ?? यह सब वेद शास्त्र मे वर्णित है या फिर इंसान के दिमाग की उपज है "इस सत्यता पर प्रकाश डाले" समाधान- श्रीमद्भागवत गीता मे श्रीकृष्ण जी ने कहा है- चातुवर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश:।  कुछ लोग इसका शाब्दिक अर्थ अल्पबुद्धि से करते है, कि चारो वर्ण की उत्पत्ति गुण कर्म के अनुसार मैने ही की है। उत्पति और निश्चित करना दोनो मे भेद है कि नही? श्रीकृष्ण ने यह नही कहा- चातुवर्ण्यं त्वं निश्चिनु गुणकर्मविभागश: । बल्कि यह कहा है कि- चातुवर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश; । अर्थात- प्रत्येक व्यक्ति को उसके पूर्वजन्मके गुणो व कर्मो के अनुसार जिस वर्ण मे अगले जन्म मे उत्पन्न होने की योग्यता प्राप्त होती है, उसी मे श्रीभगवान उस् अगला जन्म दिया करते है। और इस प्रकार जन्म से ही अर्थात माता पिता के रक्त से ही जाति का निर्धारण किया गया है। * पुरुष सूक्त* मे- *ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्य: कृत:। उरु तदस्य यद्वैश्य...