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संपुर्ण बजरंग बाण

 पवित्र होकर हनुमानजी का पूजन करे। ध्यान करे। हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् सकल गुण निधानं वानराणामधीशं, रघुपति प्रियभक्त वातजातं नमामि ।।  बंजरंगबाण निश्चय प्रेम प्रतीत ते. विनय करें सनमान तेहि के कारज सकल शुभ सिद्ध करें हनुमान।। जय हनुमंत संत हितकारी सुन लीजै प्रभु अरज हमारी जन के काज विलंब न कीजें आतुर दौर महासुख दीजै ।। जैसे कूदि सिंधु के पारा , सुरसा बदन पैठि विस्तारा।  आगे जाय लंकिनी रोका मारेहु लात गई सुरलोका।।  जाय विभीषण को सुख दीन्हा सीता निरखि परम पद लीन्हा। बाग उजारि सिंधु मह बोरा अति आतुर यमकातर तोरा ।। अक्षय कुमार मार संहारा , लुमि लपेटि लंक को जारा।।  लाह समान लंक जरि गई , जय-जय धुनि सुरपुर नभ भई। अब बिलंब केहि कारण स्वामी कृपा करहु प्रभु अन्तरयामी,  जय-जय लक्ष्मण प्राण के दाता आतुर होइ दुःख करहू निपाता। जय गिरधर जय-जय सुख सागर सुर समूह समरथ भटनागर ।। ॐ हनु हनु हनुमंत हठीले बैरिहिं मारू वज्र के कीले ।। गदा व्रज लै बैरहिं मारौ महाराज निज दास उबारौ।। सुनि हुंकार हुंकार दै धावो वज्र गदा हनु विलंब न लावौ।। ॐ ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपी...

घर का द्वार मुख्यद्वार कहॉ किस दिशा मे होना चाहिए

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 मुख्य द्वार (१) वास्तुचक्रको चारों दिशाओं में कुल बत्तीस देवता स्थित हैं। किस देवता के स्थान में मुख्य द्वार बनानेसे क्या शुभाशुभ फल होता है, इसे बताया जाता है पूर्व १. शिखी- इस स्थानपर द्वार बनाने दुःख, हानि और असे भय होता है।  २. पर्जन्य- इस स्थानपर द्वार बनानेसे परिवार में कन्याओंकी वृद्धि, निर्धनता तथा शोक होता है। ३. जयन्त- इस स्थानपर द्वार बनानेसे धनको प्राप्ति होती है। ४. इन्द्र-इस स्थानपर द्वार बनाने राज-सम्मान प्राप्त होता है।  ५. सूर्य इस स्थानपर द्वार बनानेसे धन प्राप्त होता है। (मतान्तरसे इस स्थानपर द्वार बनानेसे क्रोधको अधिकता ६. सत्य- इस स्थानपर द्वार बनानेसे चोरी कन्याओ की वृद्धि तथा असत्यभाषणकी अधिकता होती है।  ७भृश- इस स्थानपर द्वार बनाने से क्रूरता अति क्रोध तथा अपुत्रता होती है।  ८. अन्तरिक्ष- इस स्थानपर द्वार बनानेसे चोरीका भय तथा हानि होती है। दक्षिण ९. अनिल- इस स्थानपर द्वार बनानेसे सन्तानकी कमी तथा मृत्यु होती है। १०. पूषा - इस स्थानपर द्वार बनानेसे दासत्व तथा बन्धनकी प्राप्ति होती है। ११. वितथ- इस स्थानपर द्वार बनानेसे नीचता तथा भयकी प्र...

वास्तु सिद्धि, वास्तुदोष दूर करने के 51 सरल उपाय

संभवतः वास्तुदोष अनेकानेक घरो मे होता ही है, जिसके कारण विविध प्रकार की समस्याये आती रहती है। इस लेख के माध्यम से वास्तुदोष का निराकरण बताया जा रहा है। कुछ ऐसे उपाय जिन्हे अपनाकर आप सरलता से वास्तुदोष दूर कर सकते है। सामान्यत: गृह से दक्षिण जाने का स्पष्ट निषेध है, इससे धन जन की हानि हेती है। ऐसा प्रत्यक्ष उदाहरण अनेको देखने भी मिले है।  १-अत्यंत आवश्यक होने पर शांति विधान कर लेना चाहिए। २- जिस जातक का मंगल उच्च का हो, य शुभग्रहे से दृष्ट होकर शुभभाव मे अपनी अथवा अपने मित्र की राशि मे मार्गी होकर बैठा हो ,  उनको दक्षिण दिशा मे निवास करना उत्तम माना गया है।   1 घर में अखंडित रूप से 9 बार श्री रामचरितमानस का पाठ य की अखंड कीर्तन करने से वास्तुदोष का निवारण होता है। 2 स्कंदपुराण के अनुसार, हाटकेश्वर-क्षेत्र में शेरुपद नामक तीर्थ के दर्शन मात्र से ही वास्तुजनित दोषों का निवारण होता है 3 मुख्य द्धार के उपर सिंदूर से नौ अंगुल लंबा और नौ अंगुल चौडा स्वास्तिक का प्रतीक बनाये और जहाँ -२ भी वास्तु दोष है वहाँ इस चिन्ह का निर्माण करें तो वास्तुदोष का निवारण हो जाता है। 4 रसोई घर गलत...

त्रिपिण्डी श्राद्ध सामाग्री सूची

 बैठने के लिये कुशा आसन- य कम्बल,  दिया मिट्टी का-४०,  मिट्टी का कलश -३, मिट्टी की हंडिया-१, मिट्टी की परई य कोशा-३,  पंचपञ्लव-( पीपल, पाकड़, आम, बरगद, गूलर),   पलाश पत्तल २०, पलाश का दोनियॉ,२०,  नया पीढा़-१, लाल पताका छोटी-१, सफेद पताका छोटी -१, काली पताका छोटी-१, तीन डंडा पताका के लिये,  फल -२४ (केला छोड़कर कोई भी),  सफेद पेडा. ५०० ग्रा, बताशा छोटा,१०० ग्रा, कुश, दूब,तुलसी, फूल (सफेद, लाल, नीला), फूलमाला ५, पानपत्ता १०, घी ५००ग्रा, दूध ५०० ग्रा, दही १००ग्रा, चावल- १ किलो, तिल काला २५० ग्रा, तिल सफेद, ५० ग्रा, तिल लाल,५० ग्रा, जौ २५० ग्रा, रुई, कच्चा सूत,  जौ का आटा २५० ग्रा, चावल का आटा २५० ग्रा, सफेद तिल का आटा २५० ग्रा, माचिस,   खजूर ५० ग्रा, कागजी नींबू १, बिजौरा नींबू १, रोरी, लंवग, इलाईची,  सफेद चंदन, कुमकुम, मधु, ईत्र, मौली, जनेउ २० जोडी़, धूपबत्ती, सप्तधान्य, सर्वौषधि, सप्तमृतिका, पंचरत्न, सुपाडी़ १५, पीली सरसो ५० ग्रा, नारियल य गरी गोला ३,  तिल का तेल १००ग्रा,    विष्णु प्रतिमा स्वर्ण की १, ब्रह्मा...

नारायणबलि की सामाग्री

 बैठने के लिये कुशा आसन- य कम्बल, पलाश (ढाक) की दोनिया य दिया मिट्टी का-६० मिट्टी का कलश -६,  मिट्टी की हंडिया-४ ढक्कन सहित, मिट्टी की परई २, पंचपञ्लव-( पीपल, पाकड़, आम, बरगद, गूलर),   पलाश पत्तल २०,  नया पीढा़ य छोटीचौकी-१, फल -५० (केला छोड़कर कोई भी),  सफेद पेडा य मिश्री. ५० नग, बताशा छोटा,५० नगा, कुश, दूब,तुलसी, फूल (सफेद,, फूलमाला ५, पानपत्ता ५०, घी ५००ग्रा, दूध सवा किलो० ग्रा, दही १००ग्रा, जौ का आटा य चावल- सवा किलो, तिल काला ७५० ग्रा, , जौ २५० ग्रा, रुई, कच्चा सूत,, माचिस,    रोरी १० ग्रा, लंवग२०, इलाईची,२०,   सफेद चंदन२५ग्रा,  कुमकुम१०ग्रा,  मधु ५०ग्रा, ईत्र, मौली, जनेउ २० जोडी़, धूपबत्ती, सप्तधान्य५००ग्रा,  सर्वौषधि १० ग्रा, सप्तमृतिका६ पुडिया,  पंचरत्न६ पुडिया, सुपाडी़ ५०नग,  पीली सरसो ५० ग्रा, नारियल य गरी गोला ६नग,   तिल का तेल २००ग्रा, कपूर १० ग्रा, रुई १० ग्रा, सत्येश की स्वर्ण प्रतिमा १,   विष्णु प्रतिमा स्वर्ण की १, ब्रह्मा प्रतिमा चॉदी की,१, रुद्र प्रतिमा तॉबे की १, प्रेत प्रतिमा रा...

दुर्गासप्तशती के सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का बृहद स्वरुप, पुर्ण कुंजिका स्तोत्र

 दुर्गाशप्तशती मे दी गई कुंजिका स्तोत्र लघुरुप मे है। रुद्रामल के गौरीतंत्र मे इसका पुरा विवरण दिया गया है। यह परम दुर्लभ व गोपनीय है। विनियोग :   ॐ  अस्य श्री कुन्जिका स्त्रोत्र मंत्रस्य  सदाशिव ऋषि: । अनुष्टुपूछंदः । श्रीत्रिगुणात्मिका  देवता । ॐ ऐं बीजं । ॐ ह्रीं शक्ति: । ॐ क्लीं कीलकं । मम सर्वाभीष्टसिध्यर्थे जपे विनयोग: ।   ऋष्यादि न्यास:   श्री सदाशिव ऋषये नमः शिरसि । अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे । त्रिगुणात्मक देवतायै नमः हृदि । ऐं बीजं नमः नाभौ । ह्रीं शक्तयो नमः पादौ । क्लीं कीलकं नमः सर्वांगे । सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः नमः अंजलौ। करन्यास:   ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः । ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा । क्लीं मध्यमाभ्यां वषट । चामुण्डायै अनामिकाभ्यां हुं । विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां वौषट । ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकर प्रष्ठाभ्यां फट । हृदयादिन्यास:   ऐं हृदयाय नमः । ह्रीं शिरसे स्वाहा । क्लीं शिखायै वषट । चामुण्डायै कवचाय हुं । विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट । ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकरप्रष्ठाभ्यां फट ।   ध्यानं: सिंहवाहिन...

राहु का भावफल, दशाफल, गोचर फल

  राहु का भाव फल- जन्म कुंडली में राहु का विभिन्न भावों में स्थित होने का फल इस प्रकार है: - लग्न में स्थित राहु से जातक शत्रु विजयी, अपना काम निकाल लेने वाला, कामी, शिरो वेदना से युक्त, आलसी, क्रूर, दयाहीन, साहसी, अपने सम्बन्धियों को ही ठगने वाला, राक्षस स्वभाव का, वातरोगी होता है। द्वितीय धन भाव में स्थित राहु से जातक असत्य बोलने वाला, नष्ट कुटुंब वाला, अप्रिय भाषण कर्ता, निर्धन, परदेस में धनी, कार्यों में बाधाएं, मुख्य व नेत्र रोगी, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन करने वाला होता है। तृतीय पराक्रम भाव में स्थित राहु से जातक स्रक्रमी, सब से मैत्री पाने वाला, शत्रु को दबा कर रखने वाला, कीर्तिमान, धनी, निरोग होता है | निर्बल और पाप योजनाओं से युक्त या दृष्ट होने पर छोटे भाई के सुख में कमी करता है | चतुर्थ सुख भाव में स्थित राहु से जातक की माता को कष्ट रहता है | मानसिक चिंता बनी हुई है | प्रवासी और अपने ही लोगों से झगड़ता रहता है | पंचम संतान भाव में स्थित राहु से संतान चिंता, उदर रोग, शिक्षा में बाधा, वहम का शिकार होता है छठवे शत्रु भाव में स्थित राहु से जातक रोग और शत्रु को नष्ट करने वा...