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हनुमान बाहुक

  श्रीगणेशाय नमः श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीमद्-गोस्वामी-तुलसीदास-कृत     छप्पय सिंधु-तरन, सिय-सोच-हरन, रबि-बाल-बरन तनु । भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु ।। गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव । जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव ।। कह तुलसिदास सेवत सुलभ सेवक हित सन्तत निकट । गुन-गनत, नमत, सुमिरत, जपत समन सकल-संकट-विकट ।।१।।     स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन-तेज-घन । उर बिसाल भुज-दंड चंड नख-बज्र बज्र-तन ।। पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन । कपिस केस, करकस लँगूर, खल-दल बल भानन ।। कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट । संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट ।।२।।     झूलना पंचमुख-छमुख-भृगु मुख्य भट असुर सुर, सर्व-सरि-समर समरत्थ सूरो । बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो ।। जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासुबल, बिपुल-जल-भरित जग-जलधि झूरो । दुवन-दल-दमनको कौन तुलसीस है, पवन को पूत रजपूत रुरो ।।३।।   घनाक्षरी भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन-अनुमानि सिसु-केलि कियो फेरफार सो । पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन, क्रम को न भ्रम, कपि बालक...

यज्ञोपवीत दीक्षा के बाद भी गुरु दीक्षा आवश्यक है

 श्रीराम । एक जिज्ञासा:-विप्र को यज्ञोपवित संस्कार के समय गुरुदीक्षा हो जाती है।तो क्या बाद में भी वैष्णव परंपरा आदि संतों से दीक्षित होना चाहिए??कृपया शास्त्र सम्वत आज्ञा से जिज्ञासा शांत करने की कृपा करें। एक जिज्ञासु🙏🏻🙏🏻 पं.राजेश मिश्र 'कण' का उत्तर *यथा सिंहम द्रष्टवा भीतो याति वने गजः अधिक्षीतो अर्चये लिंग तथा भीतो महेश्वरी ।।* जिस प्रकार हाथी  वन में सिंह को देखकर भय भीत होता है। उसी प्रकार अदिक्षित व्यक्ति भवअरण्य में भय से कांपता है यानि गुरु के बगैर शिष्य का भव भय मुक्त होना असंभव है।    दीयते च शिव ज्ञानम क्षीयते पाश बंधनम स्मादातः समाख्याता दिक्षेतियंम विचक्षणैः ।  दीक्षा का अर्थ है :- दीयते लिंग समधः क्षीयते मलत्रयम दीयते क्षीयते तस्मात् सा दिक्षेती निगद्यते ।।  अगर हम दीक्षा शब्द को देखें तो इसमें दो व्यंजन और दो स्वर मिले हुए हैं। -  "द' 'ई' "क्ष" "आ" द का अर्थ- "द" का अर्थ है दमन है।  इन्द्रियों का निग्रह मन का निग्रह का नाम दमन है। ई का अर्थ- "ई" का अर्थ ईश्वर उपासना है। विषयातीत मानसिक बुद्धि को गुरु ...

नाड़ी दोष संपुर्ण शास्त्रीय चिन्तन

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नाड़ी दोष संपुर्ण शास्त्रीय चिन्तन पं.राजेश मिश्र "कण" भास्कर ज्योतिष्य अनुसंधान केन्द्र बरईपुर आजमगढ़। भारतीय सनातन परम्परामे विवाह चतुर्पुरुषार्थ सिद्धि के लिए अनिवार्य व्यवस्था है।  विवाह पूर्व वर एवं बधू के जन्मनक्षत्रों का ज्योतिषीय विधि से विविध प्रकार का परीक्षण किया जाता है जिसे हम मेलापक, आनुकूल्य या प्रीति कहते हैं। विवाह मेलापक में विविध स्थानो पर क्षेत्रिय व्यवस्था के अनुसार  विविध प्रकार के कूटों का अनुप्रयोग किया जाता है जिनकी संख्या 8, 10, 12, 18, 20, 23 अब तक के व्यक्तिगत शोध अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है कि विवाह में समवेत रूप से अधिकतम 23 प्रकार के मेलापक का विचार विवाह पूर्व वर एवं वधू में किया जाता है किन्तु इन सबका प्रयोग सम्बन्धित क्षेत्रों तक ही सीमित है तथा विशेष परिस्थितियों में इनका प्रयोग किया जाता है। जिसमे 4 मेलापक राशि से, 1 मेलापक ग्रह से, 16 मेलापक नक्षत्रों से, तथा आयु एवं शक्ति (प्रेम मेलापक से करते हैं। प्रश्नमार्ग में है - *चत्वारिभिर्भपेनैकं सक्त्या च वयसोडुभिः । शोडषेत्यनुकूलानां त्रयोविंशतिरीरिता ।।* इन विविध कूटों के होते हुये भी सम्पूर्ण ज्...

फंसा धन वापस पाने का उपाय

 यदि आपने किसी को उधार दिया हो और वह वापस न कर रहा हो। आपका धन भूमि वाहन मकान आदि का विवाद चल रहा हो । तो इन सभी के शीघ्र समाधान के लिए कार्तवीर्य अर्जुन स्तोत्र का नियमित 108 पाठ करे। य 16000 का अनुष्ठान करे। साधक लाल रंग के वस्त्र धारण करे। किसी भी शुभ दिन से आरंभ कर सकते है। पाठ शुद्ध करे। यदि स्वंय शुद्ध पाठ न कर सके तो किसी विद्वान ब्राह्मण से करायें। ।। श्री कार्तवीर्यार्जुन स्त्रोत ||  Shri Kartavirya Arjuna Stotram || Kartavirya Arjuna Stotra कार्तवीर्यार्जुनॊनाम राजाबाहुसहस्रवान्। तस्यस्मरण मात्रॆण गतम् नष्टम् च लभ्यतॆ॥ कार्तवीर्यह:खलद्वॆशीकृत वीर्यॊसुतॊबली। सहस्र बाहु:शत्रुघ्नॊ रक्तवास धनुर्धर:॥ रक्तगन्थॊ रक्तमाल्यॊ राजास्मर्तुरभीश्टद:। द्वादशैतानि नामानि कातवीर्यस्य य: पठॆत्॥ सम्पदस्तत्र जायन्तॆ जनस्तत्रवशन्गतह:। आनयत्याशु दूर्स्थम् क्षॆम लाभयुतम् प्रियम्॥ सहस्रबाहुम् महितम् सशरम् सचापम्। रक्ताम्बरम् विविध रक्तकिरीट भूषम्॥ चॊरादि दुष्ट भयनाशन मिश्टदन्तम्। ध्यायॆनामहाबलविजृम्भित कार्तवीर्यम्॥ यस्य स्मरण मात्रॆण सर्वदु:खक्षयॊ भवॆत्। यन्नामानि महावीरस्चार्जुनह:कृतवीर्य...