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Showing posts from September, 2023

शम्बूक वध क्यो आवश्यक था ?

भगवान राम ने शम्बूक का वध क्यों किया था?  ‘ श्राीराम का आचरण इतना शुद्ध, निष्ठापूर्ण और धर्मानुसार था कि उनकी प्रजा को दुख, दरिद्रता, रोग, आलस़्य, असमय मृत्यु जैसे कष्ट छू भी नहीं पाते थे।। अतः इसी अनुसार रामराज्य की अवधारणा बनी है। इसी कारण सभी लोग रामराज्य की कामना करते है।    एक दिन अचानक एक ब्राह्मण रोता-बिलखता उनके  राजदरबार में आ पहुंचा। श्रीराम ने ब्राह्मण से जब उसके रोने का कारण पूछा तो उसने बताया कि उसके तेरह वर्ष के पुत्र की असमय मृत्यु हो गई। यह राम के राज्य में अनोखी और असंभव-सी घटना थी क्योंकि ‘राम-राज्य’ में तो इस तरह का कष्ट किसी को नहीं हो सकता था। दुखी ब्राह्मण ने श्रीराम पर आरोप लगाया कि उनके राज्य में धर्म की हानि हुई है और उसी के चलते उसके पुत्र की असमय मृत्यु हो गई। ब्राह्मण कहता है कि राज्य में धर्म की उपेक्षा और अधर्म का प्रसार होने का फल प्रजा को भुगतना पड़ रहा है और उस पाप का छठा भाग राजा के हिस्से में आता है। इसलिए राज्य में होने वाले पाप के लिए राजा राम उत्तरदायी हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से यह आरोप सहन नही होता। वह देवर्षि नारद समेत क...

शिलान्यास विधि Shilanyas Vidhi

  || शिलान्यासविधिः || शिला स्थापन करने वाला यजमान निर्माणाधीन भूमि के आग्नेय दिशा में खोदे गये भूमि के पश्चिम की ओर बैठकर आचमन प्राणायाम आदि करे। तदनन्तर स्वस्ति वाचन आदि करते हुए संकल्प करे। देशकालौ संकीर्त्य अमुकगोत्रोऽमुकशाऽहं करिष्यमाणस्यास्य वास्तोः शुभतासिद्धयर्थं निर्विघ्नता गृह-(प्रासाद)-सिद्धयर्थमायुरारोग्यैश्वाभिवृद्ध्यर्थ च वास्तोस्तस्य भूमिपूजनं शिलान्यासञ्च करिष्ये तदङ्गभूतं श्रीगणपत्यादिपूजनञ्च करिष्ये। गणेश, षोडशमातृका, नवग्रह आदि का पूजन करे। इसके बाद आचार्य ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमिसंस्थिताः ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ।।99 इस मंत्र से पीली सरसों चारों ओर छींटकर पंचगव्य से भूमि को पवित्र कर वायुकोण में पांच शिलाओं को स्थापित करे। इसके बाद सर्पाकार वास्तु का आवाहन कर ध्यान:- ॐ वास्तोष्पते प्रतिजानीह्यस्मान्स्वावेशोऽदमीवो भवा नः।। यत्वेमहे प्रति तन्नो जुषस्व शन्नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे ।। षोडशोपचार से पूजा कर दही और भात का बलि दे पुनः नाग की पूजा करे- ध्‍यान- ॐ वासुकि धृतराष्ट्रञ्च कर्कोटकधनञ्जयौ । तक्षकैरावतौ चैव कालेयमणिभद्रकौ ।। इससे आठों ...