शिलान्यास विधि Shilanyas Vidhi

 




|| शिलान्यासविधिः ||


शिला स्थापन करने वाला यजमान निर्माणाधीन भूमि के आग्नेय दिशा में खोदे गये भूमि के पश्चिम की ओर बैठकर आचमन प्राणायाम आदि करे। तदनन्तर स्वस्ति वाचन आदि करते हुए संकल्प करे।


देशकालौ संकीर्त्य अमुकगोत्रोऽमुकशाऽहं करिष्यमाणस्यास्य वास्तोः शुभतासिद्धयर्थं निर्विघ्नता गृह-(प्रासाद)-सिद्धयर्थमायुरारोग्यैश्वाभिवृद्ध्यर्थ च वास्तोस्तस्य भूमिपूजनं शिलान्यासञ्च करिष्ये तदङ्गभूतं श्रीगणपत्यादिपूजनञ्च करिष्ये।


गणेश, षोडशमातृका, नवग्रह आदि का पूजन करे।


इसके बाद आचार्य


ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमिसंस्थिताः


ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ।।99


इस मंत्र से पीली सरसों चारों ओर छींटकर पंचगव्य से भूमि को पवित्र कर वायुकोण में पांच शिलाओं को स्थापित करे। इसके बाद सर्पाकार वास्तु का आवाहन कर

ध्यान:-

ॐ वास्तोष्पते प्रतिजानीह्यस्मान्स्वावेशोऽदमीवो भवा नः।।


यत्वेमहे प्रति तन्नो जुषस्व शन्नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे ।।



षोडशोपचार से पूजा कर दही और भात का बलि दे पुनः नाग की पूजा करे-

ध्‍यान-

ॐ वासुकि धृतराष्ट्रञ्च कर्कोटकधनञ्जयौ ।


तक्षकैरावतौ चैव कालेयमणिभद्रकौ ।।


इससे आठों नागों के लिए पृथक्-पृथक् अथवा एक ही साथ नाम मंत्रों से आवाहन पूजन करें। पुनः धर्म रूप वृष का आवाहन पूजन कर हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-

ध्यान-:

ॐ धर्मोसि धर्मदैवत्यवृषरूप नमोस्तु ते ।


सुखं देहि धनं देहि देहि 7 ।।


गृहे गृहे निधिं देहि वृषरूप नमोस्तु ते ।


आयुर्वृद्धिं च धान्यं च आरोग्यं देहि गेहयोः।।


आरोग्यं मम भार्याया पितृमातृसुखं सदा ।


भ्रातृणां परमं सौख्यं पुत्राणां सौख्यमेव च ।।


सर्वस्वं देहि मे विष्णो! गृहे संविशतां प्रभो!।


नवग्रहयुतां भूमिं पालयस्व वरप्रद! ।।


पुनः पञ्चशिलाओं को-


ॐ आपः शुद्धा ब्रह्मरूपाः पावयन्ति जगत्त्रयम् ।


चाभिरद्भिः शिला स्नाप्य स्थापयामि शुभे स्थले ।


यह पढ़कर शुद्ध जल से धो दें। पुनः


ॐ गजाश्वरथ्यावल्मीकसद्भिर्मुद्भिः शिलेष्टकान्


प्रक्षालयामि शद्ध्यर्थं गृहनिर्माणकर्मणि ।।


इसे पढ़कर सप्तमृतिका से प्रक्षालन करें।


पुनः पञ्चगव्य, दही और तीर्थ के जल से धोकर शुद्ध वस्त्र से पोंछ दें और उन शिलाओं का कुंकुम चन्दन से लेपन कर स्वस्तिक चिह्न बनाकर वस्त्र से ढककर मन्त्र पढ़ें-


ॐ नन्दायै नमः

ॐ भद्रायै नमः

ॐ जयायै नमः

ॐ रिक्तायै नमः

ॐ पूर्णायै नमः

उन शिलाओं के आगे इन पांचों कुम्भों (घड़ा) की स्थापना करे-


ॐ पद्माय नमः

ॐ महापद्माय नमः

ॐ शंखाय नमः

ॐ मकराय नमः

ॐ समुद्राय नमः

उसके बाद आचार्य गड्डे की भूमि को लेपकर कछुआ के पीठ के ऊपर स्थित श्वेत वर्ण वाले चार भुजाओं में पद्म, शंख, चक्र और शूल धारण किये भूमि का ध्यान करे।


कूर्माय नमः इति कूर्ममम्

ॐ अनन्ताय नमः इति अनन्तम्

ॐ वराहाय नमः इति वराहम्

इस प्रकार आवाहन, पूजन कर दोनों घुटनों से पृथ्वी का स्पर्श कर जल, दूध, तिल, अक्षत जौ, सरसों और पुष्प अर्घ्य पात्र में रखकर भूमि के के निमित्त मंत्र से अर्घ्य दें-


ॐ हिरण्यगर्भे वसुधे शेषस्योपरि शायिनि ।


उद्धृतासि वराहेण सशैलवनकानना ।।

प्रासादं (गृहं वा) कारयाम्यद्य त्वदूर्ध्न शुभलक्षणम् ।।

गृहाणार्घ्य मया दत्तं प्रसन्ना शुभदा भव ।।;

भूम्यै नमः इदमर्घ्य समर्पयामि ।


पुनः आम्र या पलाश के पत्ते के ऊपर दीपक सहित घी और भात की बलि देकर प्रार्थना करे-

ॐ समुद्रमेखले देवि पर्वतस्तनमण्डले ।

विष्णु-पलि नमस्तुभ्यं शस्त्रपातं क्षमस्व मे ।।

इष्टं मेत्वं प्रयच्छेष्टं त्वामहं शरणं गतः।


पुत्रदारधनायुष्य-धर्मवृद्धिकरी भव ।।


पुनः गड्ढे में तेल डालकर उसके ऊपर सफेद सरसों छोड़े।मन्त्र-


ॐ भूतप्रेतपिशाचाद्या अपक्रामन्तु राक्षसाः।


स्थानादस्माद्वजन्त्वन्यत्स्वीकरोमि भूवं त्विमाम्।।


उसके ऊपर दही लिपटा चावल उड़द की बलि देकर उसके ऊपर 7 पत्ते स्थापित कर एवं उसके ऊपर बारह अंगुलि लोहे की कील गाड़ दे। 

मन्त्र-

ॐ विशन्तु भूतले नागाः लोकपालाश्च सर्वतः।

अस्मिन् स्थानेऽवतिष्ठन्तु आयुर्बलकराः सदा ।।

उसके ऊपर मधु, घी, पारद, सुवर्ण (अथवा रुपया) ढके हुए मुख वाले ताम्र आदि से निर्मित पद्म नामक कुम्भ में पञ्चरत्न रख, चन्दन लगाकर वस्त्र लिपटाकर मध्य में रख दे तथा उस पर नारियल भी रख दे।


इसी प्रकार पूर्व आदि दिशाओं में चार घड़ा स्थापित करे।



पूर्वादि के क्रम से महापद्म 2, शंख 6, मकर 4, समुद्र 5, की पूजा कर कुम्भ के बराबर मिट्टी देकर अक्षत छोड़े। पुनः अच्छे मुहूर्त में सुपूजित ‘पूर्णा’ नामक ईंट स्थापित करे।

मन्त्र-

पूर्णे त्वं सर्वदा भद्रे! सर्वसन्दोहलक्षणे ।

सर्व सम्पूर्णमेवात्र कुरुष्वाङ्गिरसः सुते ।।

तदनन्तर पूर्व दिशा में-

ॐ नन्दे त्वं नन्दिनी पुंसां त्वामत्र स्थापयाम्यहम् ।

अस्मिन् रक्षा त्वया कार्या प्रासाद यत्नतो मम ।।

तदनन्तर दक्षिण दिशा में-

ॐ भद्रे! त्वं सर्वदा भद्रं लोकानां कुरु काश्यपि ।

आयुर्दा कामदा देवि ! सुखदा च सदा भव ।।


पश्चिम दिशा में-

ॐ जये ! त्वं सर्वदा देवि तिष्ठ त्वं स्थापिता मया ।

नित्यं जयाय भूत्यै च स्वामिनो! भव भार्गवि!।।


उत्तर दिशा में-

रिक्ते त्वरिक्तेदोषघ्ने सिद्धिवृद्धिप्रदे शुभे!।

सर्वदा सर्वदोषने तिष्ठास्मिन्मम मन्दिरे ।।


इस मंत्र से स्थापित कर पूर्णादि नाम मन्त्रों से गन्धादि द्वारा पूजा करें।


पुन: चारों ओर दिक्पालों की पूजा कर दीपक के साथ दही, उड़द एवं भात की बलि दे।


विश्वकर्मणे नमः


इस प्रकार आयुध की पूजा कर प्रार्थना करे-


ॐ अज्ञानाज्ज्ञानतो वापि दोषाः स्युश्च यदुद्भवाः।


नाशयन्त्वहितान्सर्वान् विश्वकर्मन्नमोऽस्तु ते ।।


उसके बाद फावड़े की पूजा कर प्रार्थना करे-


ॐ त्वष्ट्रा त्वं निर्मितः पूर्व लोकानां हितकाम्यया ।


पूजितोऽसि खनित्र ! त्वं सिद्धिदो भव नो ध्रुवम् ।।


वाष्पोष्पति, मृत्युञ्जय आदि देवताओं के जप हेतु प्रतिज्ञा संकल्प करे


अद्येत्याधुक्त्वा अनवधिवर्षावच्छिन्नबहुकालपर्यन्तं पुत्रकलत्रारोग्यधनादिसमृद्धिप्राप्तिकामो गृहनिर्माणार्थ कर्त्तव्यशिलास्थापनाङ्गत्वेन वास्तुदेवतामृत्युञ्जयादिप्रसादलाभाय यथासंख्यापरिमितं ब्राह्मणद्वारा जपमहं कारयिष्ये।


वरण सामग्री लेकर-


अद्येत्यादि गृहनिर्माणार्थ कर्तव्यशिलास्थापनांगभूतब्राह्मणद्वारावास्तोष्पतिमृत्युंजयजपं कारयितुमेभिर्वरणद्रव्यैरमुकामुकगोत्रान् अमुकामुकशर्मणः ब्राह्मणान् जापकत्वेन युष्मानहं वृणे ।


तदनन्तर मिष्ठान वितरण करे।


इति शिलान्यासविधिः।



agama tantra yantra vigyan totka  shaber mantra


Agori tantra kaali tantra kali tantra ravan tantra uddish tantra rahasya

Comments

Popular posts from this blog

रावण द्वारा शिवजी से प्राप्त सर्वसिद्धिप्रद काली कवच

सर्वसिद्धिप्रद कालिका मंत्र

जब गंगा जी भागीरथ द्वारा पृथ्वी पर लायी गयी तो राजा हरिश्चंद्र के समय काशी मे गंगा जी नही थी?