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वास्तु सिद्धि, वास्तुदोष दूर करने के 51 सरल उपाय

संभवतः वास्तुदोष अनेकानेक घरो मे होता ही है, जिसके कारण विविध प्रकार की समस्याये आती रहती है। इस लेख के माध्यम से वास्तुदोष का निराकरण बताया जा रहा है। कुछ ऐसे उपाय जिन्हे अपनाकर आप सरलता से वास्तुदोष दूर कर सकते है। सामान्यत: गृह से दक्षिण जाने का स्पष्ट निषेध है, इससे धन जन की हानि हेती है। ऐसा प्रत्यक्ष उदाहरण अनेको देखने भी मिले है।  १-अत्यंत आवश्यक होने पर शांति विधान कर लेना चाहिए। २- जिस जातक का मंगल उच्च का हो, य शुभग्रहे से दृष्ट होकर शुभभाव मे अपनी अथवा अपने मित्र की राशि मे मार्गी होकर बैठा हो ,  उनको दक्षिण दिशा मे निवास करना उत्तम माना गया है।   1 घर में अखंडित रूप से 9 बार श्री रामचरितमानस का पाठ य की अखंड कीर्तन करने से वास्तुदोष का निवारण होता है। 2 स्कंदपुराण के अनुसार, हाटकेश्वर-क्षेत्र में शेरुपद नामक तीर्थ के दर्शन मात्र से ही वास्तुजनित दोषों का निवारण होता है 3 मुख्य द्धार के उपर सिंदूर से नौ अंगुल लंबा और नौ अंगुल चौडा स्वास्तिक का प्रतीक बनाये और जहाँ -२ भी वास्तु दोष है वहाँ इस चिन्ह का निर्माण करें तो वास्तुदोष का निवारण हो जाता है। 4 रसोई घर गलत...

त्रिपिण्डी श्राद्ध सामाग्री सूची

 बैठने के लिये कुशा आसन- य कम्बल,  दिया मिट्टी का-४०,  मिट्टी का कलश -३, मिट्टी की हंडिया-१, मिट्टी की परई य कोशा-३,  पंचपञ्लव-( पीपल, पाकड़, आम, बरगद, गूलर),   पलाश पत्तल २०, पलाश का दोनियॉ,२०,  नया पीढा़-१, लाल पताका छोटी-१, सफेद पताका छोटी -१, काली पताका छोटी-१, तीन डंडा पताका के लिये,  फल -२४ (केला छोड़कर कोई भी),  सफेद पेडा. ५०० ग्रा, बताशा छोटा,१०० ग्रा, कुश, दूब,तुलसी, फूल (सफेद, लाल, नीला), फूलमाला ५, पानपत्ता १०, घी ५००ग्रा, दूध ५०० ग्रा, दही १००ग्रा, चावल- १ किलो, तिल काला २५० ग्रा, तिल सफेद, ५० ग्रा, तिल लाल,५० ग्रा, जौ २५० ग्रा, रुई, कच्चा सूत,  जौ का आटा २५० ग्रा, चावल का आटा २५० ग्रा, सफेद तिल का आटा २५० ग्रा, माचिस,   खजूर ५० ग्रा, कागजी नींबू १, बिजौरा नींबू १, रोरी, लंवग, इलाईची,  सफेद चंदन, कुमकुम, मधु, ईत्र, मौली, जनेउ २० जोडी़, धूपबत्ती, सप्तधान्य, सर्वौषधि, सप्तमृतिका, पंचरत्न, सुपाडी़ १५, पीली सरसो ५० ग्रा, नारियल य गरी गोला ३,  तिल का तेल १००ग्रा,    विष्णु प्रतिमा स्वर्ण की १, ब्रह्मा...

नारायणबलि की सामाग्री

 बैठने के लिये कुशा आसन- य कम्बल, पलाश (ढाक) की दोनिया य दिया मिट्टी का-६० मिट्टी का कलश -६,  मिट्टी की हंडिया-४ ढक्कन सहित, मिट्टी की परई २, पंचपञ्लव-( पीपल, पाकड़, आम, बरगद, गूलर),   पलाश पत्तल २०,  नया पीढा़ य छोटीचौकी-१, फल -५० (केला छोड़कर कोई भी),  सफेद पेडा य मिश्री. ५० नग, बताशा छोटा,५० नगा, कुश, दूब,तुलसी, फूल (सफेद,, फूलमाला ५, पानपत्ता ५०, घी ५००ग्रा, दूध सवा किलो० ग्रा, दही १००ग्रा, जौ का आटा य चावल- सवा किलो, तिल काला ७५० ग्रा, , जौ २५० ग्रा, रुई, कच्चा सूत,, माचिस,    रोरी १० ग्रा, लंवग२०, इलाईची,२०,   सफेद चंदन२५ग्रा,  कुमकुम१०ग्रा,  मधु ५०ग्रा, ईत्र, मौली, जनेउ २० जोडी़, धूपबत्ती, सप्तधान्य५००ग्रा,  सर्वौषधि १० ग्रा, सप्तमृतिका६ पुडिया,  पंचरत्न६ पुडिया, सुपाडी़ ५०नग,  पीली सरसो ५० ग्रा, नारियल य गरी गोला ६नग,   तिल का तेल २००ग्रा, कपूर १० ग्रा, रुई १० ग्रा, सत्येश की स्वर्ण प्रतिमा १,   विष्णु प्रतिमा स्वर्ण की १, ब्रह्मा प्रतिमा चॉदी की,१, रुद्र प्रतिमा तॉबे की १, प्रेत प्रतिमा रा...

दुर्गासप्तशती के सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का बृहद स्वरुप, पुर्ण कुंजिका स्तोत्र

 दुर्गाशप्तशती मे दी गई कुंजिका स्तोत्र लघुरुप मे है। रुद्रामल के गौरीतंत्र मे इसका पुरा विवरण दिया गया है। यह परम दुर्लभ व गोपनीय है। विनियोग :   ॐ  अस्य श्री कुन्जिका स्त्रोत्र मंत्रस्य  सदाशिव ऋषि: । अनुष्टुपूछंदः । श्रीत्रिगुणात्मिका  देवता । ॐ ऐं बीजं । ॐ ह्रीं शक्ति: । ॐ क्लीं कीलकं । मम सर्वाभीष्टसिध्यर्थे जपे विनयोग: ।   ऋष्यादि न्यास:   श्री सदाशिव ऋषये नमः शिरसि । अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे । त्रिगुणात्मक देवतायै नमः हृदि । ऐं बीजं नमः नाभौ । ह्रीं शक्तयो नमः पादौ । क्लीं कीलकं नमः सर्वांगे । सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः नमः अंजलौ। करन्यास:   ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः । ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा । क्लीं मध्यमाभ्यां वषट । चामुण्डायै अनामिकाभ्यां हुं । विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां वौषट । ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकर प्रष्ठाभ्यां फट । हृदयादिन्यास:   ऐं हृदयाय नमः । ह्रीं शिरसे स्वाहा । क्लीं शिखायै वषट । चामुण्डायै कवचाय हुं । विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट । ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकरप्रष्ठाभ्यां फट ।   ध्यानं: सिंहवाहिन...

राहु का भावफल, दशाफल, गोचर फल

  राहु का भाव फल- जन्म कुंडली में राहु का विभिन्न भावों में स्थित होने का फल इस प्रकार है: - लग्न में स्थित राहु से जातक शत्रु विजयी, अपना काम निकाल लेने वाला, कामी, शिरो वेदना से युक्त, आलसी, क्रूर, दयाहीन, साहसी, अपने सम्बन्धियों को ही ठगने वाला, राक्षस स्वभाव का, वातरोगी होता है। द्वितीय धन भाव में स्थित राहु से जातक असत्य बोलने वाला, नष्ट कुटुंब वाला, अप्रिय भाषण कर्ता, निर्धन, परदेस में धनी, कार्यों में बाधाएं, मुख्य व नेत्र रोगी, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन करने वाला होता है। तृतीय पराक्रम भाव में स्थित राहु से जातक स्रक्रमी, सब से मैत्री पाने वाला, शत्रु को दबा कर रखने वाला, कीर्तिमान, धनी, निरोग होता है | निर्बल और पाप योजनाओं से युक्त या दृष्ट होने पर छोटे भाई के सुख में कमी करता है | चतुर्थ सुख भाव में स्थित राहु से जातक की माता को कष्ट रहता है | मानसिक चिंता बनी हुई है | प्रवासी और अपने ही लोगों से झगड़ता रहता है | पंचम संतान भाव में स्थित राहु से संतान चिंता, उदर रोग, शिक्षा में बाधा, वहम का शिकार होता है छठवे शत्रु भाव में स्थित राहु से जातक रोग और शत्रु को नष्ट करने वा...

नवरात्रि 2020 संपुर्ण जानकारी, Navratri puja vidhi

नवीन शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्र आरंभ है। १७ अक्टूबर- मां शैलपुत्री पूजा, घटस्थापना, चंदन लेप व त्रिफला और कंघीप्रिंट। १ अक्टूबर- मां ब्रह्मचारिणी पूजन, रेशमी वस्त्रपंदन १ ९ अक्टूबर- मां चंद्रघंटा पूजा, दर्पण सिन्दूर और आलताप्रदर्शन २० अक्टूबर- मां कुष्मांडा पूजा, मधुपर्क, तिलक और काजल काप्रिंटन २१ अक्टूबर- मां स्कंदमाता पूजा, अंगराग (शरीर मे वगने सोग्य द्रव्य) और शक्ति उपदर्शन २२ अक्टूबर- षष्ठी मां कात्यायनी पूजा, सायकाल मे बेलवृक्ष पर देवी का आवाहन पूजन २३ अक्टूबर- मां कालरात्रि पूजा, प्रातःकाल घर पर बेल लाकर पूजन करना चाहिए, बलि और सरस्वती पूजन, निशीथकाल मे महानिशापुजन और बलिदान  २४ अक्टूबर- मां महागौरी दुर्गा पूजा, यथाशक्ति विविध हर्ष से पूजन,  २५ अक्टूबर- मां सिद्धिदात्री पूजा, हवन, व्रतपारण २६ अक्टूबर - विजयादशमी १-१०-२०२० को, काशी समय के अनुसार, ११: ३ १ से १२:२३ तक अभिजित मुहुर्त मे कलश स्थापन होगा। आप अपने स्थानीय समय को इस समय के अनुसार संशोधित कर ले। २५ अक्टूबर को नवमी मे हवन, तुपुरांत नवरात व्रत पारणा व दुर्गा विसर्जन।  देवी आगमन निर्णय के लिए दो विधि...

राहु के चमत्कारी सिद्ध उपाय

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 राहु-केतु की कथा: -पुराणों और ज्योतिष शास्त्र में-  श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार महर्षि कश्यप की पत्नी दनु से विप्रचित्ति नामक पुत्र हुआ जिसका विवाह हिरण्यकशिपु की बहन सिंहिका से हुआ | राहु का जन्म सिंहिका के गर्भ से हुआ इसीलिए राहू का एक नाम सिंहिकेय भी है | जब भगवान विष्णु की प्रेरणा से देव दानवों ने क्षीर सागर का मंथन किया तो उसमें से अन्य रत्नों के अतिरिक्त अमृत की प्राप्ति हुई। भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके देवों व दैतों को मोह लिया और अमृत बाँटने का कार्य स्वयम ले लिया और पहले देवताओं को अमृत पान करने वाले अर्भ कर दिया | राहु को संदेह हो गया और वह भगवान का वेश धारण करके सूर्य देव और चन्द्र देव के निकट बैठ गया | विष्णुजी जैसे ही राहु को अमृत पान प्रदान करने वाले सूर्य और चन्द्र ने जो राहु को पहचान लिया था विष्णुजी को उनके बारे में सूचित कर दिया था। भगवान विष्णु ने उसी समय सुदर्शन चक्र द्वारा राहु के मस्तक को धड से अलग कर दिया | पर इस से पहले अमृत की कुछ बूंदें राहु के गले में गयी थी जैसे राहु व केतु को ग्रहत्व की प्राप्ति- राहु और केतु सूर्य व चन्द्र से प्रतिशोध ल...