नवरात्रि 2020 संपुर्ण जानकारी, Navratri puja vidhi

नवीन शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्र आरंभ है।

१७ अक्टूबर- मां शैलपुत्री पूजा, घटस्थापना, चंदन लेप व त्रिफला और कंघीप्रिंट।

१ अक्टूबर- मां ब्रह्मचारिणी पूजन, रेशमी वस्त्रपंदन

१ ९ अक्टूबर- मां चंद्रघंटा पूजा, दर्पण सिन्दूर और आलताप्रदर्शन

२० अक्टूबर- मां कुष्मांडा पूजा, मधुपर्क, तिलक और काजल काप्रिंटन

२१ अक्टूबर- मां स्कंदमाता पूजा, अंगराग (शरीर मे वगने सोग्य द्रव्य) और शक्ति उपदर्शन

२२ अक्टूबर- षष्ठी मां कात्यायनी पूजा, सायकाल मे बेलवृक्ष पर देवी का आवाहन पूजन

२३ अक्टूबर- मां कालरात्रि पूजा, प्रातःकाल घर पर बेल लाकर पूजन करना चाहिए, बलि और सरस्वती पूजन, निशीथकाल मे महानिशापुजन और बलिदान 

२४ अक्टूबर- मां महागौरी दुर्गा पूजा, यथाशक्ति विविध हर्ष से पूजन, 

२५ अक्टूबर- मां सिद्धिदात्री पूजा, हवन, व्रतपारण

२६ अक्टूबर - विजयादशमी

१-१०-२०२० को, काशी समय के अनुसार, ११: ३ १ से १२:२३ तक अभिजित मुहुर्त मे कलश स्थापन होगा। आप अपने स्थानीय समय को इस समय के अनुसार संशोधित कर ले।

२५ अक्टूबर को नवमी मे हवन, तुपुरांत नवरात व्रत पारणा व दुर्गा विसर्जन।

 देवी आगमन निर्णय के लिए दो विधि है।

 प्रतिपदा से गृहस्थ स्थापना करने वालो के लिए।

  सप्तमी से पूजा पंडाल के लिए।

नवरात्र में भगवती का आगमन व गमन चार सवारियों पर होता है। इसमें हाथी, घोड़ा, पालकी और नाव की सवारी शामिल हैं |

भगवती के आगमन व गमन का फल

नवरात्र के पहले दिन भगवती का आगमन और दशमी को गमन दिनों के अनुसार वर्ष का शुभ और अशुभ का ज्ञान करते हैं यथा-

भगवती का आगमन दिन:

शशि सूर्य गजरुढा शनि भूमाता तुरंगमे।

गुरौशुक्रेच दोलायन्स बुधे नौकाप्रकीर्तिता च (देवपुराण)

रविवार और सोमवार को भगवती हाथी पर आते हैं,

शनि और मंगल वार को घोड़े पर,

बृहस्पति और शुक्रवार को डोला पर,

बुधवार को ड्रा पर आते हैं।

गजेश जलदा देवी क्षत्रभंग तुरंगमे।

नौशतं कार्यसिद्धिस्यत् दोलां मरणधु्रवम् िद्ध

अर्थात् दुर्गा हाथी पर आने से अच्छी वर्षा होती है,, 

घोड़े पर आने से राजाओं में युद्ध होता है। 

ड्रा पर आने से सभी कार्यों में अनुक्रम मिलते हैं और 

यदि डोले पर आता है तो उस वर्ष में कई कारणों से बहुत लोगों की मृत्यु होती है।

राहु के चमत्कारी उपाय  इस लिंक पर पढि़ये

गमन (विचार): -

शशि सूर्य दिने • सा विजया महिषगम्ने रहज शोककरा,

शनि भौमदिने • सा विजया चरणायुध यानि करी विकला।

दयाशुक्र दिने • सा विजया गजवाहन गा शुभ वृश्चिकरा,

सुरराजगुरौ • सा विजया नरवाहन गा शुभ सौनिक करें यदि

भगवती रविवार और सोमवार को महिषा (भैंसा) की सवारी से जाती है जिससे देश में रोग और शोक की वृद्धि होती है। 

शनि और मंगल को पैदल चलते हैं जिससे विकलता की वृद्धि होती है। 

बुध और शुक्र दिन में भगवती हाथी पर जाते हैं। इससे वृद्धी होती है।

 बृहस्पति वार को भगवती मनुष्य की सवारी से जाते हैं। जो खुशी और सौख्य की वृद्धि करता है। 

इस प्रकार भगवती का आना जाना शुभ और अशुभ फल सूचक हैं। 

इस फल का प्रभाव यजमान पर ही नहीं, पूरे राष्ट्र पर पड़ता हैं।

  पं.राजेश मिश्र "कण"

No comments:

Post a Comment

जीवित श्राद्ध प्रमाण संग्रह,

  प्रमाण-संग्रह (१) जीवच्छ्राद्धकी परिभाषा अपनी जीवितावस्थामें ही स्वयंके कल्याणके उद्देश्यसे किया जानेवाला श्राद्ध जीवच्छ्राद्ध कहलाता है- ...