अक्षय तृतीया पुणयफल पितृदोष कालसर्प दोष निवारण
श्राीराम ।
अक्षय तृतीया के दिन किये गये कार्य का फल अक्षय होता है। पुण्यार्जन के लिए अपनी शक्ति अनुसार दान करना चाहिए।
अक्षय तृतीया एक खगोलीय/ ज्योतिषीय योग है, जिसमे सूर्य अपनी उच्च राशि मेष, तथा चन्द्रमा अपनी उच्चराशि वृष मे स्थित होते है। यह अत्यंत ही प्रभावशाली योग माना गया है।
रम्भा तृतीया को छोड़कर अन्य, तृतीया तिथि का निर्णय करते हुए ब्रह्मवैवर्त मे, माधव व अन्य मत से भी चतुर्थीयुक्त तृतीया ही ग्रहण करनी चाहिये। ( निर्णय- सिन्धु)
काशी विश्वनाथ पंचांग के अनुसार अक्षय तृतीया -
तृतीया तिथि प्रारंभ – ३ मई २०२२ को अहोरात्र है।
इस दिन किये हुये सभी पुण्य शुभकर्म अक्षय हो जाते है। सभी मांगलिक कार्य बिशेष लाभदायी होते है। जलपूरित कुंभ व पंखा का दान बिशेष पुण्यदायी है। नवीन शैय्या का प्रयोग, नवीन वस्त्राभूषण स्वर्ण, रत्न, धारण करना, खरीदना, बनवाना, बागवानी, व्यापार आदि बिशेष लाभदायी है। वेदपाठी, नित्य सन्ध्याकर्म रत विद्वान विनम्र ब्राह्मण को अन्न वस्त्र धन भोजन मिष्टान आदि देने का बिशेष पुण्य प्राप्त होता है।
“न माधव समो मासो न कृतेन युगं समम्।
न च वेद समं शास्त्रं न तीर्थ गंगयां समम्।।”
वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं हैं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। उसी तरह अक्षय तृतीया के समान कोई तिथि नहीं है।
जिस जातक की जन्मपत्रिका मे कालसर्पदाेंष हो वह अष्टनाग के निमित्त घर का बना मिष्ठान व एक मटकी में शुद्ध जल रखें। पीपल के नीचे धूप-दीप प्रज्ज्वलित कर अष्टनाग की संतुष्टि के लिए प्रार्थना करें।
अथवा
जिस जातक की कुण्डली मे 'पितृ-दोष' है वे अपने पितर के निमित्त 'अक्षय-तृतीया' के दिन प्रात:बेला मे किसी पीपल की जड के ऊपर, पितृगणों के निमित्त घर का बना मिष्ठान व एक मटकी में शुद्ध जल रखें। पीपल के नीचे धूप-दीप प्रज्ज्वलित कर अपने पितृगणों की संतुष्टि के लिए प्रार्थना करें।
तत्पश्चात् बिना पीछे देखे सीधे अपने घर लौट आएं, ध्यान रखें इस प्रयोग को करते समय अन्य किसी व्यक्ति की दृष्टि ना पड़ें। इस प्रयोग को करने से अष्टनाग व पितृगण शीघ्र ही संतुष्ट होकर अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
यदि नौकरी, व्यवसाय में बाधाएं आ रही हों या पदोन्नति में रुकावट हो तो 'अक्षय-तृतीया' के दिन शिवालय में शिवलिंग पर ११ गोमती चक्र अपनी मनोकामना का स्मरण करते हुए अर्पित करने से लाभ होता है।
भाग्योदय हेतु 'अक्षय-तृतीया' के दिन प्रात:काल उठते ही सर्वप्रथम ७ गोमती चक्रों को पीसकर उनका चूर्ण बना लें, फिर इस चूर्ण को अपने घर के मुख्य द्वार के सामने अपने ईष्ट देव का स्मरण करते हुए बिखेर दें। इस प्रयोग से कुछ ही दिनों में साधक का दुर्भाग्य समाप्त होकर भाग्योदय होता है।
आप सभी को अक्षय तृतीया की हार्दिक शुभकामना। जय जय सीताराम ।
भास्कर ज्योतिष व तंत्र अनुसंधान केन्द्र
पं.राजेश मिश्र "कण"
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