हवन मे ब्रहमा को दक्षिण क्यो? स्रुवा कैसे पकडे
हवन मे ब्रह्मा को दक्षिण दिशा में क्यो रखा जाता है?
स्रुवा कैसे पकड़ते है?
अग्नि का मुख किधर होता है?
मेखला कितनी होती है?
हवन के लिए कैसी भूमि चाहिए?
उत्तरे सर्वपात्राणि उत्तरे सर्व देवता ।
उत्तरेपाम्प्रणयनम् किम् अर्थम् ब्रह्म दक्षिणे ।।
सभी विद्वानों के लिए जानने योग्य बात है ।
अर्थ- इस श्लोक का अर्थ है उत्तर में सारे पात्रों को स्थापित करते हैं यज्ञ में और उत्तर में ही सारे देवी देवताओं का आवाहन होता है पूजन होता है और इस श्लोक में एक प्रश्न छुपा हुआ है वह प्रश्न यह है कि ब्रह्मा जी को दक्षिण दिशा में क्यों स्थापित करते हैं यज्ञ में?
: दक्षिणे दानवा: प्रोक्ता:पिशाचोरगराक्षसा:।तेषांसंरक्षणार्थाय ब्रम्हा:तिष्ठति दक्षिणे ।।
दक्षिण दिशा में पिशाच सर्प, राक्षस आदि रहते है उनसे रक्षा के लिए ब्रह्मा को दक्षिण दिशा में स्थापना करते है।
[6/25, 1:06 PM] राजेश मिश्र 'कण': श्रीराम ।
👌🚩
अन्य:-
श्लोक
यमोवैवस्वतोराजा वस्ते दक्षिणाम् दिशी ।।
तस्यसंरक्षरणार्थाय ब्रह्मतिष्ठति दक्षिणे ।।
॥
४. स्रुवधारणार्थकारिका । प्रश्नः - अग्रे धृत्वाऽर्थनाशाय मध्ये चैव मृतप्रजाः ॥ मूले च म्रियते होता स्रुवस्थानं कथं भवेत् ? ।। उत्तरम् - अग्रमध्याच्च यन्मध्यं मूलमध्याच्च मध्यतः । स्रुवं धारयते विद्वान् ज्ञातव्यं च सदा बुधैः ॥ तर्जनी च बहिः कृत्वा कनिष्ठां च बहिस्तथा । मध्यमाऽनामिकांगुष्ठैः श्रुवं धारयते द्विजः ।। आस्यान्तर्जुहुयादग्नेर्विपश्चित् सर्वकर्मसु । कर्महोमेर्भवेद् व्याधिर्नेत्रेऽन्धत्वमुदाहृतम् । नासिकायां मनः पीड़ा मस्तके
[6/25, 1:38 PM] Sanjay Panday: 🙏
अधोमुख उर्द्धवपाद:प्राङ् मुखो हब्य वाहन:।तिष्ठत्येन स्वभावेन् आहुति कुत्र दीयते ।।🙏
[6/25, 8:19 PM] राजेश मिश्र 'कण': श्रीराम ।
सपवित्राम्बुहस्तेन यः कुर्यात प्रदक्षिणाम् । हव्यवाट् सलिलं दृष्ट्वा विभेति सन्मुखीभवेत् ॥
विधान यह है कि ब्रह्मा ( यज्ञ के लिए वरण किये ब्राह्मण द्वारा हाथ मे कुश लेकर) अग्नि की प्रदक्षिणा करने से अग्नि का मुख सामने हो जाता है। यदि वरण के लिए अतिरिक्त ब्राह्मण न हो तो यजमान के हाथ से 256 मुट्ठी चावल लेकर पुर्णपात्र ब्रह्मा का निर्माण करके पुर्णपात्र को अग्नि की परिक्रमा करायें।
[6/25, 8:26 PM] राजेश मिश्र 'कण': सपवित्रः +अम्बु(गतौ)+ हस्तेन य: कुर्यात प्रदक्षिणाम्। हव्यवाट् (हव्यं वहतीति । वह + अण् । ) अग्निः । सलिलं( धारा, अग्निशिखा) दृष्ट्वा विभेति( विभज्य ) सन्मुखीभवेत्।।
अतः अग्निशिखा पर आहूति देनी चाहिए।
हवन की भूमि कैसी होनी चाहिए?
हवन की भूमि.का चयन इस प्रकार करे।
हवन करने के लिए उत्तम भूमि को चुनना बहुत ही आवश्यक होता हैं. हवन के लिए सबसे उत्तम भूमि नदियों के किनारे की, मन्दिर की, संगम की, किसी उद्यान की या पर्वत के गुरु ग्रह और ईशान में बने हवन कुंड की मानी जाती हैं. हवन कुंड के लिए फटी हुई भूमि, केश युक्त भूमि तथा सांप की बाम्बी वाली भूमि को अशुभ माना जाता हैं.
हवन कुंड व हवन के नियम क्या है?
हवन कुंड की बनावट
हवन कुंड में तीन सीढियाँ होती हैं. जिन्हें “ मेखला ” कहा जाता हैं. हवन कुंड की इन सीढियों का रंग अलग – अलग होता हैं.
1. हवन कुंड की सबसे पहली सीढि का रंग सफेद होता हैं.
2. दूसरी सीढि का रंग लाल होता हैं.
3. अंतिम सीढि का रंग काला होता हैं.
हवन कुंड की इन तीनों सीढियों में तीन देवता निवास करते हैं.
1. हवन कुंड की पहली सीढि में विष्णु भगवान का वास होता हैं.
2. दूसरी सीढि में ब्रह्मा जी का वास होता हैं.
3.तीसरी तथा अंतिम सीढि में शिवजी का वास होता हैं.
हवन कुंड और हवन के नियम*
*हवन कुंड के प्रकार -*
हवन कुंड कई प्रकार के होते हैं. जैसे कुछ हवन कुंड वृताकार के होते हैं तो कुछ वर्गाकार अर्थात चौरस होते हैं. कुछ हवन कुंडों का आकार त्रिकोण तथा अष्टकोण भी होता हैं.
*आहुति के अनुसार हवन कुंड बनवायें*
1. अगर आपको हवन में 50 या 100 आहुति देनी हैं तो कनिष्ठा उंगली से कोहनी (1 फुट से 3 इंच )तक के माप का हवन कुंड तैयार करें.
2. यदि आपको 1000 आहुति का हवन करना हैं तो इसके लिए एक हाथ लम्बा (1 फुट 6 इंच ) हवन कुंड तैयार करें.
3. एक लक्ष आहुति का हवन करने के लिए चार हाथ (6 फुट) का हवनकुंड बनाएं.
4. दस लक्ष आहुति के लिए छ: हाथ लम्बा (9 फुट) हवन कुंड तैयार करें.
5. कोटि आहुति का हवन करने के लिए 8 हाथ का (12 फुट) या 16 हाथ का हवन कुंड तैयार करें.
हवन कुंड के बाहर गिरी सामाग्री का क्या करे?
हवन कुंड के बाहर गिरी सामग्री को हवन कुंड में न डालें - आमतौर पर जब हवन किया जाता हैं तो हवन में हवन सामग्री या आहुति डालते समय कुछ सामग्री नीचे गिर जाती हैं. जिसे कुछ लोग हवन पूरा होने के बाद उठाकर हवन कुंड में डाल देते हैं. ऐसा करना वर्जित माना गया हैं. हवन कुंड की ऊपर की सीढि पर अगर हवन सामग्री गिर गई हैं तो उसे आप हवन कुंड में दुबारा डाल सकते हैं. इसके अलावा दोनों सीढियों पर गिरी हुई हवन सामग्री वरुण देवता का हिस्सा होती हैं. इसलिए इस सामग्री को उन्हें ही अर्पित कर देना चाहिए.
लेख पं.राजेश मिश्र "कण "
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