जीवित श्राद्ध, जिनकी कोई संतान नही उनके लिए
श्राद्धसे बढ़कर कल्याणकारी और कोई कर्म नहीं होता। अतः प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध करते रहना चाहिये।
एवं विधानतः श्राद्धं कुर्यात् स्वविभवोचितम् । आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं जगत् प्रीणाति मानवः ॥
(ब्रह्मपुराण)
जो व्यक्ति विधिपूर्वक अपने धनके अनुरूप श्राद्ध करता है, वह ब्रह्मासे लेकर घासतक समस्त प्राणियोंको संतृप्त कर देता है।
(हेमाद्रिमें कूर्मपुराणका वचन)
जो शान्तमन होकर विधिपूर्वक श्राद्ध करता है, वह सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त होकर जन्म-मृत्युके बन्धनसे छूट जाता है।
योऽनेन विधिना श्राद्धं कुर्याद् वै शान्तमानसः । व्यपेतकल्मषो नित्यं याति नावर्तते पुनः ॥
आज जीवित श्राद्ध कैसे करे। जीवित श्राद्ध
यद्यपि ये सब क्रियाएँ मुख्यरूपसे पुत्र-पौत्रादि सन्ततियोंके लिये कर्तव्यरूपसे लिखी गयी हैं, परंतु आधुनिक समयमें कई प्रकारकी बाधाएँ और व्यवधान भी दिखायी पड़ते हैं। पूर्वकालसे यह परम्परा रही है कि माता- पिताके मृत होनेपर उनके पुत्र-पौत्रादि श्रद्धापूर्वक शास्त्रोंकी विधिसे उनका श्राद्ध सम्पन्न करते हैं। जिन लोगोंको सन्तान नहीं होती, उनका श्राद्ध उस व्यक्तिके किसी निकट सम्बन्धीके द्वारा सम्पन्न होता है, परंतु आजके समयमें नास्तिकताके कारण कई अपने औरस पुत्र भी अपने माता-पिताका श्राद्ध शास्त्रोक्त विधिसे सम्पन्न नहीं करते तथा मनमाने तरीकेसे दिखावेके रूपमें अपने सुविधानुसार कुछ खानापूर्तिकर देते हैं।
जिनको अपनी सन्तान नहीं है, वे आस्तिकजन तो और भी तनावग्रस्त रहते हैं कि उनकी मृत्युके बाद श्राद्ध आदि क्रियाएँ कौन सम्पन्न करेगा ?
इसीलिये अपने शास्त्रोंमें जीवच्छ्राद्ध करनेकी पद्धति बतायी गयी है, जिसे व्यक्ति स्वयं अपनी जीवितावस्थामें शास्त्रोक्तविधिसे सम्पन्न कर सकता है, जिससे श्राद्धकी सम्पूर्ण प्रक्रिया पूरी हो जाती है। इसके बाद भी मृत्युके उपरान्त कर्तव्यकी भावनासे यदि कोई उत्तराधिकारी श्राद्धादि करता है तो करनेवालेको तथा उस प्राणीको -दोनोंको पुण्यलाभ होता है। और न करनेपर भी प्राणीको इसकी अपेक्षा नहीं रहती। यद्यपि यह कार्य अबतक विशेष प्रचलनमें नहीं है, कारण पूर्वके लोगोंमें शास्त्र और परलोकके प्रति आस्था और विश्वास पूर्णरूपसे था। अतः मृत व्यक्तिके उत्तराधिकारी कर्तव्यकी दृष्टिसे इन कार्योंको पूर्ण तत्परतासे करते थे, परंतु आज इस आस्था और विश्वासमें गिरावट आती जा रही है। मृत व्यक्तिके उत्तराधिकारी अपने माता- पिताकी सम्पत्तिके स्वामी तो बन जाते हैं, परंतु उनकी श्राद्धादि कर्मोंमें आस्था न होनेके कारण दशगात्रके पिण्डदान तथा द्वादशाहादिके कृत्योंको भी नहीं करते। शास्त्राज्ञाके विपरीत तीन दिनोंमें कुछ मनमाना करके निवृत्त हो जाते हैं। जिनको अपनी सन्तान नहीं है, वे तनावग्रस्त होकर परमुखापेक्षी रहते हैं।
इन सब दृष्टियोंको ध्यानमें रखते हुए आस्तिकजनोंकी परलोक-सन्तृप्तिके लिये जीवच्छ्राद्धकी शास्त्रोक्त विधि प्रस्तुत करना आवश्यक हो गया।
यद्यपि यह कार्य अत्यन्त दुरूह था, कारण सामान्यतः कर्मकाण्डके पण्डित अभ्यस्त न होनेके कारण इस विधासे अनभिज्ञ थे। संयोगवश कुछ वर्षोंपूर्व श्रीहरीराम गोपालकृष्ण सनातनधर्म संस्कृत महाविद्यालय, प्रयागके अवकाशप्राप्त प्राचार्य पं० श्रीरामकृष्णजी शास्त्रीने अपना जीवित श्राद्ध काशीमें ही पूर्ण शास्त्रोक्त विधिसे सम्पन्न किया, जिसका आचार्यत्व श्राद्धादि कर्मकाण्डके मूर्धन्य विद्वान् अग्निहोत्री पं० श्रीजोषणरामजी पाण्डेयने किया। वे इस विधाके मर्मज्ञ थे, किंतु कुछ वर्षपूर्व पं० श्रीजोषणरामजी परलोक सिधार गये।
जीवित श्राद्ध विधि के अनुसार किसी भी मासके कृष्णपक्षकी द्वादशीसे लेकर शुक्लपक्षकी प्रतिपदातक - पाँच दिनमें जीवच्छ्राद्धके सम्पूर्ण कार्य सम्पन्न होते हैं। प्रथम दिन अधिकारप्राप्तिके लिये प्रायश्चित्तका अनुष्ठान, प्रायश्चित्तके पूर्वांग तथा उत्तरांगके कृत्य, दस महादान, अष्ट महादान तथा पंचधेनुदान आदि कृत्य; द्वितीय दिन शालग्रामपूजन, जलधेनुका स्थापन एवं पूजन, वसुरुद्रादित्यपार्वणश्राद्ध तथा भगवत्स्मरणपूर्वक रात्रिजागरण आदि कृत्य; तृतीय दिन पुत्तलका निर्माण, षपिण्डदान, चितापर पुत्तलदाहकी क्रिया, दशगात्रके पिण्डदान तथा शयनादि कृत्य; चतुर्थ दिन मध्यमषोडशी, आद्यश्राद्ध, शय्यादान, वृषोत्सर्ग, वैतरणीगोदान तथा उत्तमषोडशश्राद्ध और अन्तिम पंचम दिन सपिण्डीकरणश्राद्ध, इसके अनन्तर गणेशाम्बिकापूजन और कलशपूजन, शय्यादानादि कृत्य, पददान एवं ब्राह्मणभोजन तथा ब्राह्मणभोजनके अनन्तर श्राद्धकी परिपूर्णता सम्पन्न होती है।
( मेरे निजी संस्थान के द्वारा समयाभाव मे पुर्ण शाश्त्रोक्त पद्धति से तीन दिवसीय पद्धति विकसित की गई है, जिसमे अल्प उपयोगी विधान को रिक्त किया गया है।
श्राद्धकी क्रियाएँ इतनी सूक्ष्म हैं कि जिन्हें सम्पन्न करनेमें अत्यधिक सावधानीकी आवश्यकता है। इसके लिये इससे सम्बन्धित बातोंकी जानकारी होना भी परम आवश्यक है। इस दृष्टिसे जीवच्छ्राद्धसे सम्बन्धित आवश्यक बातें आगे लिखी जा रही हैं, जो सभीके लिये उपादेय हैं। अतः इन्हें अवश्य पढ़ना चाहिये।
बिशेष जानकारी के लिए कमेंट करे यथाशीघ्र उत्तर देने का प्रयास किया जाता है, लगभग १ से दो दिनउत्तर आने में लग सकते है।
Comments
Post a Comment