कुम्भ क्या है कुंभ कब लगता है, कैसे लगता है
श्रीराम ।
कुम्भ क्ब लगता है? कुम्भ क्यो लगता है? कुम्भ महात्म्य
देव व दानव मे अमृत कलश को लेकर छीना-झपटी बारह दिनो तक चली। देवताओ के एक दि मनुष्यो के ३६५ दिन अर्थात् एक वर्ष के बराबर होते है। अर्थात मनुष्यो १२ वर्ष तक देव दानव मे अमृत कलश को छिनने काप्रयत्न किया। इस बीच कलश से कुछ बूंदे पृथ्वी पर छलक पड़ी । जिन - जिन स्थानो पर अमृत गिरा उन्ही स्थानो पर कुम्भ लगता है!जिसका प्रमाण हमारे धर्म शाश्त्रों में इस प्रकार से मिलता है।
पूर्णः कुम्भोऽथिकाल अहितस्तं वै पश्यामो बहुधा तु सन्तः । स इमा विश्वा भुवनानि कालं तमाहुः परमे व्योमन् ।।
(अथर्ववेद, १६/५३।३)
'हे सन्तगण ! पूर्ण कुम्भ समय पर (बारह वर्ष के बाद ) आया करता है जिसे हम अनेकों बार प्रयागादि तीथर्थों में देखा करते हैं। कुम्भ उस समय को कहते हैं जो महान् आकाश में ग्रह-राशि आदि के योग से होता है।'
एवं
(क) 'चतुरः कुम्भांश्चतुर्धा ददामि ।'
( अथर्व० ४।३४।७)
ब्रह्मा कहते हैं- 'हे मनुष्यो ! मैं तुम्हें ऐहिक तथा आमु- ष्मिक सुखों को देनेवाले चार कुम्भ-पर्वों का निर्माण कर चार स्थानों (हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक) में प्रदान करता हूँ।'
(ख) 'कुम्भीका दूषीकाः पीयकान् ।'
(अथर्व० १६।६।८)
कुम्भ का पर्व हरिद्वार,प्रयाग, उज्जैन और नासिक इन तीर्थस्थानों में मनाया जाता है। ये चारों ही एक से बढ़कर परम पवित्र तीर्थ हैं। प्रयाग, उज्जैन हरिद्वार और नासिक इन चारों तीर्थों में प्रत्येक बारह वर्ष के बाद कुम्भ-पर्व होता है।
गङ्गाद्वारे प्रयागे च धारा-गोदावरीतटे । कुम्भाख्येयस्तु योगोऽयं प्रोच्यते शङ्करादिभिः ॥
'गङ्गाद्वार (हरिद्वार), प्रयाग, धारानगरी (उज्जैन) और गोदावरी (नासिक) मैं शङ्करादि देवगण ने 'कुम्भयोग' कहा है।'
(१) हरिद्वार -पद्मिनीनायके मेषे कुम्भराशिगते गुरौ । गङ्गाद्वारे भवेद्योगः कुम्भनामा तदोत्तमः ॥ (स्क० पु०)
'जिस समय बृहस्पति कुम्भराशि पर स्थित हो और सूर्य मेषराशि पर रहे, उस समय गङ्गाद्वार (हरिद्वार) में कुम्भ-योग होता है।'
अथवा
वसन्ते विषुवे चैव घटे देवपुरोहिते । गङ्गाद्वारे च कुम्भाख्यः सुधामेति नरो यतः ॥
हरिद्वार में कुम्भ के तीन स्नान होते हैं। यहाँ कुम्भ का प्रथम स्नान शिवरात्रि से प्रारम्भ होता है। द्वितीय स्नान चैत्र की अमावास्या को होता है। तृतीय स्नान (प्रधानस्नान) चैत्र के अन्त में अथवा वैशाख के प्रथम दिन में अर्थात् जिस दिन बृहस्पति कुम्भराशि पर और सूर्य मेषराशि पर हो उस दिन कुम्भस्नान होता है।
(२) प्रयाग
मकरे च दिवानाथे ह्यजगे च बृहस्पतौ । कुम्भयोगो भवेत्तत्र प्रयागे ह्यतिदुर्लभः ।।
व
मेषराशिंगते जीवे मकरे चन्द्रभास्करौ । अमावास्था तदा योगः कुम्भाख्यस्तीर्थनायके ।। (स्क० पु०)
'जिस समय बृहस्पति मेपराशि पर स्थित हो तथा चन्द्रमा और सूर्य मकर राशि पर हो तो उस समय तीर्थराज प्रयाग में कुम्भ-योग होता है।
प्रयाग में कुम्भ के तीन स्नान होते हैं। यहाँ कुम्भ का प्रथम स्नान मकरसंक्रान्ति (मैपराशि पर बृहस्पति का संयोग होने पर) से प्रारम्भ होता है। द्वितीय स्नान (प्रधान स्नान) माघ कृष्णा मौनी अमावास्या को होता है। तृतीय स्नान माघ शुक्ला वसन्तपञ्चमी को होता है।
(३) उज्जैन (अवन्तिका )
घटेः सूरि शशी सूर्यः कुह्वां दामोदरे (कार्तिके) यदा। धारायां च तदा कुम्भो जायते खलु मुक्तिदः ।।
य
मेषराशिंगते सूर्ये सिंहराशौ वृहस्पतौ । उज्जयिन्यां भवेत् कुम्भः सदा मुक्तिप्रदायकः ।।
'जिस समय सूर्य मेपराशि पर हो और बृहस्पति सिंहाशि पर हो तो उस समय उज्जैन में कुम्भयोग होता है।'
उज्जैन में कुम्भ के. निमित्त सिर्फ एक ही दिन स्नान होता है। यहाँ पर वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में अर्थात् जिस दिन सूर्य मेष राशि पर हो और बृहस्पत्ति सिंहराशि पर हो तो उज्जैन में कुम्भ-स्नान का लग्न आता है।
उज्जैन यह 'उज्जयिनी' शब्द का अपभ्रंश है। उज्जयिनी का प्राचीन नाम 'विशाला' अथवा 'अवन्ती' है। महाभारत और स्कन्दपुराणादि में इसके उज्जयिनी, अवन्ती, अवन्तिका और घारा आदि नाम मिलते हैं।
(४) नासिक (गोदावरी )
कर्के गुरुस्तथा भानुश्चन्द्रश्चन्द्रर्क्षगस्तथा । गोदावर्या तदा कुम्भो जायतेऽवनिमण्डले ।।
य
मेपराशिंगते सूर्य सिंहराशौ वृहस्पतौ । गोदावर्यां भवेत् कुम्भो जायते खलु मुक्तिदः ।।
(स्क० पु०)
'जिस समय सूर्य मेष राशि पर हो और बृहस्पति सिंहराशि पर हो तो उस समय गोदावरी (नासिक) में मुक्तिप्रद कुम्भयोग होता है।'
नासिक में कुग्भ के तीन स्नान होते हैं। यहाँ पर कुम्भ का प्रथम स्नान (प्रधान स्नान) श्रावण (सिंह राशि पर बृहस्पति, मङ्गल और सूर्य का संयोग होने से सिंहस्थ योग होने पर) में होता है। द्वितीय स्नान भाद्रपद की अमावास्या को होता है। तृतीय स्नान कार्तिक शुक्ला देवोत्थान एकादशी को होता है ।।
नासिक में कुम्भ का मेला लगातार चार मास तक रहता है। शास्त्रों में आषाढ़ मास की शुक्ला एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ला एकादशी (देवोत्थान एकादशी) तक साधुओं के लिए 'चातुर्मास्य व्रत' करने का समय निर्णत किया है। यही चार मास नासिक के कुम्भ का समय होता है। अतः नासिक के कुम्भपर्व के अवसर पर अधिकाधिक संख्या में साधु-महात्मागण नासिक में जाकर वहाँ की शोभावृद्धि में हाथ बँटाते हैं।
यहाँ पर कुम्भ-स्नान के लग्न आने पर सभी साधु-संन्यासी- गण त्र्यम्बकेश्वर महादेव के समीपवर्ती 'कुशावर्त घाट' पर स्नान करते हैं और वैष्णव सम्प्रदायवादी वैरागीगण नासिका- न्तर्गत पञ्चवटी के 'रामघाट' पर स्नान करते है।
विशेष
प्रयाग और हरिद्वार में पूर्णकुम्भ और अर्धकुम्भी ये दो मेले होते हैं, किन्तु उज्जैन (अवन्तिका) और नासिक (गोदावरी) में केवल पूर्णकुम्भ का ही एक मेला होता है। इन दोनों स्थानों में 'अर्धकुम्भी' का मेला नहीं होता है।
हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक इन चारों स्थानों में प्रत्येक बारहवें वर्ष में कुम्भ का योग पड़ता है। किन्तु इन चारों स्थानों के कुम्भ पर्व का क्रम इस प्रकार निर्धारित है जिससे कि तत्तत्स्थानों में प्रत्येक तीन वर्ष के बाद कहीं न कहीं कुम्भ-पर्व होता ही रहता है। जिस वर्ष प्रयाग में कुम्भ-पर्व का मेला होता है उसके ठीक तीन वर्ष बाद उज्जैन में तथा उज्जैन के कुम्भपर्व के ठीक तीन वर्ष बाद हरिद्वार में कुम्भपर्व या कुम्भमेला होता है। इस प्रकार प्रत्येक स्थान में तीन-तीन वर्ष के कुम्भ-पर्व के व्यव- धान से पुनः प्रयाग में बारह वर्ष के बाद कुम्भपर्व का योग आता है। इनके मध्य में प्रत्येक छः-छः वर्ष के अनन्तर केवल हरिद्वार और प्रयाग में अर्धकुम्भी होती है। हरिद्वार की अर्ध- कुम्भी के साल नासिक का कुम्भ होता है. और प्रयाग की अर्थ- कुम्भी के साल उज्जैन का कुम्भ होता है।
कुम्भ-स्नान का महत्त्व
हरिद्वार के सम्बन्ध में-
कुम्भराशिंगते जीवे तथा मेषे गते रखौ । हरिद्वारे कृतं स्नानं पुनरावृत्तिवर्जनम् ।।
'कुम्भराशि में वृहस्पति हो तथा मेष राशि पर सूर्य हो तो हरिद्वार के कुम्भ में स्नान करने से मनुष्य पुनर्जन्म से रहित हो जाता है।'
प्रयाग के सम्बन्ध में-
सहस्रं कार्तिके स्नानं माघे स्नानशतानि च । वैशाखे नर्मदा कोटिः कुम्भस्नानेन तत्फलम् ।।
(स्कन्दपुराण)
*तान्येव यः पुमान् योगे सोऽमृतत्वाय कल्पते । देवा नमन्ति तत्रस्थान् यथा रङ्का धनाधिपान् ॥
(स्कन्दपुराण)
'जो मनुष्य कुम्भयोग में स्नान करता है, वह अमृतत्व (मुक्ति) की प्राप्ति करता है। जिस प्रकार दरिद्र मनुष्य सम्पत्ति- शाली को नम्रता से अभिवादन करता है, उसी प्रकार कुम्भपर्व में स्नान करनेवाले मनुष्य को देवगण नमस्कार करते हैं।'
'हजार अश्वमेध यज्ञ करने से, सौ वाजपेय यज्ञ करने से और लाख बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से जो फल प्राप्त होता •है वह फल केवल प्रयाग के कुम्भ के स्नान से प्राप्त होता है।'
उज्जैन के सम्बन्ध में-
कुशस्थली महाक्षेत्रं योगिनां स्थानदुर्लभम् । माधवे धवले पक्षे सिंहे जीवे अजे रखौ ॥ तुलाराशौ निशानाथे पूर्णायां पूर्णिमातिथौ । व्यतीपाते तु सञ्जाते चन्द्रवासरसंयुते । उज्जयिन्यां महायोगे स्नाने मोक्षमवाप्नुयात् ।।
एवं
(स्क० पु० अवन्तीखण्ड)
'धारायां च तदा कुम्भो जायते खलु मुक्तिदः ।'
नासिक के सम्बन्ध में-
पष्टिवर्षसहस्राणि भागीरथ्यवगाहनम् । सकृद् गोदावरीस्नानं सिंहस्थे च वृहस्पतौ ।।
'जिस समय बृहस्पति सिंह राशि पर हो उस समय गोदावरी में केवल एक बार स्नान करने से मनुष्य साठ हजार वर्षों तक गङ्गा स्नान करने के सदृश पुण्य प्राप्त करता है।'
ब्रह्मवैवर्तपुराण में लिखा है-
अश्वमेधफलं चैव लक्षगोदानजं फलम् । ग्रामोति स्नानमात्रेण गोदायां सिंहगे गुरौ ॥
'जिस समय बृहस्पति सिंह राशि पर स्थित हो उस समय गोदावरी में केवल स्नानमात्र से ही मनुष्य अश्वमेध यज्ञ करने का तथा एक लक्ष गो-दान करने का पुण्य प्राप्त करता है।'
ब्रह्माण्डपुराण में लिखा है-
यस्मिन् दिने गुरुर्याति सिंहराशौ महामते । तस्मिन् दिने महापुण्यं नरः स्नानं समाचरेत् ॥ यस्मिन् दिने सुरगुरुः सिंहराशिगतो भवेत् । तस्मिस्तु गौतमीस्नानं कोटिजन्माघनाशनम् ॥
तीर्थानि नद्यश्च तथा समुद्राः क्षेत्राण्यरत्नानि तथाऽऽश्रमाश्च । वसन्ति सर्वाणि च वर्षमेकं गोदातटे सिंहगते सुरेज्ये ॥
कुम्भ भगवान् का मन्दिर है। इसकी झाँकी हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक - इन चार स्थानों में प्रत्येक बारहवें वर्ष में * होती है। पुराणों में 'कुम्भपर्व' की स्थापना बारह की संख्या में की गयी है, जिनमें से चार मृत्युलोक के लिए और आठ देवलोकों के लिए हैं।
देवानां द्वादशाहोभिर्मत्येंद्वदिशवत्सरैः । जायन्ते कुम्भपर्वाणि तथा द्वादश संरव्यया ।। पापापनुत्तये नृणां चत्वारि भुवि भारते । अष्टौ लोकान्तरे प्रोक्ता देवैर्गभ्या न चेतरैः ।।
भूमण्डल के मनुष्यमात्र के पाप को दूर करना ही कुम्भ की उत्पत्ति का हेतु है। यह पर्व प्रत्येक बारहवें वर्ष हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक- इन चारों स्थानों में होता रहता है। इन पर्वों में भारत के सभी प्रान्तों से समस्त सम्प्रदायबादी स्नान ध्यान, पूजा-पाठादि करने के लिए आते हैं।
जय जय सीताराम ।
पं. राजेश मिश्र "कण"
धर्माध्यक्ष- सौर धर्म,- संसद, एवं प्रदेश प्रवक्ता- सनातन रक्षादल
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