नास्ति मंत्र समो रिपु। मंत्र के समान कोई शत्रु नही, यह शाश्त्रो मे बार बार बताया गया है। एक ही मंत्र अलग अलग व्यक्तियो के लिये अलग अलग परिणाम दे सकते है। मंत्रदीक्षा य जाप से पूर्व मंत्र शोधन य सिद्धादि शोधन परमावश्यक है।अन्यथा कल्याण के स्थान पर भारी हानि हो सकती है।
सिद्धादि शोधन विधि- इसके लिये अकथह चक्र य अकडम चक्र का प्रयोग किया जाता है।
मंत्र के चार प्रकार है।
१. सिद्ध- सिद्धमंत्र बतायी गयी संख्या का जप करने से सिद्ध होता है।
२. साध्य- यह बतायी संख्या से दूना जाप करने से सिद्ध होता है।
३. सुसिद्ध- यह बतायी संख्या का मात्र आधा जप करने से सिद्ध हो जाता है।
४. अरिमंत्र- यह साधक का विनाश कर देता है।
अकडमचक्र द्वारा सिद्धादि शोधन की विधि यह है कि साधक के नाम का प्रथमाक्षर जिस कोष्ठ मे हो वहा से मंत्र का प्रथमाक्षर किस कोष्ठ मे है, यह गिनने पर मंत्र की फलप्रद स्थिति का ज्ञान होता है। नाम के प्रथमाक्षर से मंत्र का प्रथमाक्षर १,५,९,१३वें कोष्ठक मे पडे तो सिद्ध, २,६,१०,१४ वे़ कोष्ठक मे पडे तो साध्य,३,७,११,१५ वे कोष्ठक मे पडे तो सुसिद्ध, तथा ८,४,१२,१६ वे कोष्ठक मे पडे तो शत्रु होता है।
उदाहरण- मान लिजिए राम, को कोई मंत्र जप करना है, जिसका प्रथमाक्षर ऐ है, तो चक्र देखनेपर ज्ञात होता है कि ऐ, रा से तीसरे है। अतः यह सुसिद्ध है और शीघ्र उत्तम फल को देनेवाला है। अब यही ऐ से शुरु होने वाला मंत्र यदि धर्मेन्द्र जपता है, तो शीघ्र ही उसका विनाश हो जायेगा क्योकि यह ४ वे होने से अरिमंत्र बनता है।
सिद्धादिशोधन की दूसरी विधि- नाम व मंत्र के वर्ण को जोडकर ४ चार का भाग लगाना चाहिए।
यहॉ १ शेष होने पर मंत्रसिद्ध २ शेष होनेपर साध्य ३ शेष होने पर सुसिद्ध एवं ० य ४ शेष होने पर अरि जानना चाहिए। यहॉ ध्यान रहे कि केवल वर्ण ही जोडने है स्वर नही।
Mahoday apne jis perent book se ye jankari uthayi hai us book me hi Akadam aur Akth h chakra me herfer hai ...kripya aap yatnpurwark post kare
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