भक्तियोग और रामचरितमानस

सियावर रामचन्द्र की जय
भक्तियोग हीएक ऐसा सुलभ और स्वतंत्र अवलम्ब है, जिसके प्रभाव से, सर्व शक्तिमान भगवान कोभी भक्तो के प्रेमपाश मेबंधकर भक्त हृदय मे वास करना पड़ता है, अतः प्राणीमात्र के लिये भगवत प्रेमावलम्बन ही वास्तविक योग है, तथा ईश्वर के प्रति प्रेम की प्रधानता ही यथार्थ मे ज्ञान है|
 जोग कुजोग ग्यानु अग्यानु| जहँ नही राम प्रेम परधानू|
 सर्वप्रकार से चित्त को शान्तकर ईश्वर के चरणो मे, ध्यान लगाना, अर्थात अपने को ईश्वर के शरणागत करना ही भक्तियोग है|
 धर्म ते विरति योग ते ग्याना| ग्यान मोक्षप्रद वेद बखाना|
जबतक वर्णाश्रम आदि के अनुसार निजधर्म का पूर्णतः पालन नही किया जाता तबतक ( धर्म ते विरति) वैराग्य उत्पन्न न होगा, जब बैराग्य न होगा तो कर्मादिक फल का त्याग न होने से कर्मयोग न हो सकेगा जबतक कर्मयोग न होगा तबतक (योग ते ग्याना) ज्ञान न उत्पन्न होगा, और जबतक ज्ञान न होगा, तबतक मोक्ष न होगा| किन्तु भक्तियोग, भक्तो के लिये सुलभ, सुखद एवं स्वतंत्र अवलंम्ब है, जिसके द्वारा ईश्वर भक्तो के अधीन हो जाते है, फिर मोक्ष की बात ही क्या करना | प्रभु ने स्वंय कहा है,
जाते वेगि द्रवऊँ मै भाई, सो मम भगति भगत सुखदाई|
 सो सुतंत्र अवलंब न आना| तेहि ते अधीन ग्यान विग्याना|
 गृहस्थ और बैरागी दोनो ही प्रकार के लोगो हेतू, भक्ति मार्ग कैसे सुलभ है, श्री प्रभु  के मुखारविन्द से-
 संत चरण पँकज अति प्रेमा| मन क्रम बचन भजन दृढ नेमा|
 गुरु पितु मातु बंधु पतिदेवा| सब मोहि कहै जाने दृढ सेवा|
 मम गुन गावत पुलक शरीरा| गदगद गिरा नयन बह नीरा||
 काम आदि मद दंभ न जाके| तात निरंन्तर बस मै ताके||
 वचन कर्म मम मोरि गति भजन करहि निःकाम|
तिन्ह के हृदय कमल महुँ करऊँ सदा विश्राम||
 सियावर रामचन्द्र की जय| |

जब गंगा जी भागीरथ द्वारा पृथ्वी पर लायी गयी तो राजा हरिश्चंद्र के समय काशी मे गंगा जी नही थी?

जब गंगा जी भागीरथ द्वारा पृथ्वी पर लायी गयी तो राजा हरिश्चंद्र के समय काशी मे गंगा जी नही थी?

जैसा की वर्तमान मे, गंगा जी के तट पर, हरिश्चंद्र घाट, मणिकिर्णकाघाट है। अतः सर्वजन के मानस पटल पर, गंगा जी का सर्वदा होना अंकित हो गया है।
 और वर्तमान मे अधिकांश श्मशान नदी तट पर होने से यह भाव सहज उत्पन्न होता है कि, राजा हरिश्चंद्र के समय भी नदी रही है। लेकिन जब आदरणीय श्री भागवत प्रवक्ता जी के विचार पर ध्यान दिया। और पुराणो मे  रोहिताश्व प्रसंग खोजना शुरु किया तो भविष्य पुराण मे, काशी के दक्षिण श्मशान का उल्लेख मिला किंतु वहा किसी नदी का होना उल्लेखित नही है। अन्य पुराणो मे भी जहा राजा हरिश्चंद्र का प्रसंग है। वहा सिर्फ काशी के दक्षिण मे श्मशान होने का ही उल्लेख है। नदी का नही । अतः यह स्पष्ट है कि गंगा जी भगीरथ के समय ही पृथ्वी पर लायी गयी है, उसके पुर्व गंगा जी धरती पर नही थी।
     कुछ धर्मद्रोही राजा हरिश्चंद्र के समय धरती पर गंगा जी के होने की मनगड़न्त बाते गढ़कर पुराणो के प्रति शंका उत्पन्न करने का दुः प्रयास कर रहे है।जबकि स्पष्ट रुप से भागीरथ के पुर्व गंगा जी के पृथ्वी पर न होने का उल्लेख पुराणो मे है।

जीवित श्राद्ध प्रमाण संग्रह,

  प्रमाण-संग्रह (१) जीवच्छ्राद्धकी परिभाषा अपनी जीवितावस्थामें ही स्वयंके कल्याणके उद्देश्यसे किया जानेवाला श्राद्ध जीवच्छ्राद्ध कहलाता है- ...