मॉ बगलामुखी साधना

श्रीराम!!

मॉ बगलामुखी ही ब्रह्मास्त्रविद्या है। इन्हीके अनेक नाम यथा- बगलामुखी, पीताम्बरा , बगला , वल्गा, वल्गामुखी , वगलामुखी , ब्रह्मास्त्र विद्या

मॉ बगलामुखी शत्रुओं का नाश करने वाली, उनकी गति, मति, बुद्धि का स्तम्भन करने वाली, मुकदमे एवं चुनाव आदि में विजय दिलाने वाली तथा वे जगत का वशीकरण भी करने वाली हैं। यदि उनकी कृपा प्राप्त हो जाये तो साधक की ओर सभी आकर्षित होने लगते हैं, वह जंहा बोलता है, वंही उसे सुनने को जन समूह उमड़ पड़ता है। उसका दायरा बहुत व्यापक हो जाता है। कोई भी स्त्री, पुरूष, बच्चा उसके आकर्षण में ऐसा बंध जाता है कि अपनी सुध-बुध खो बैठता है और वही करने के लिए विवश हो जाता है, जो साधक चाहता है
इस साधना को करने के लिए अति गोपनीय मंत्र का उल्लेख मैं यंहा साधकों के लिए कर रहा हॅू, लेकिन साधक सदैव स्मरण रखें कि ऐसी साधनाओं का दुष्प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए अन्यथा साधक की साधना क्षीण होने लगती है। मंत्र का प्रयोग सदैव समाज कल्याण के लिए करना चाहिए, न कि समाज-विरोधी गतिविधियों के लिए ।
सर्वप्रथम भगवती बगलामुखी की मंत्र दीक्षा ग्रहण करें उसके पश्चात गुरू आज्ञानुसार साधना का माँ बगलामुखी की साधना करने के लिए सबसे पहले एकाक्षरी मंत्र ह्ल्रीं की दीक्षा अपने गुरुदेव के मुख से प्राप्त करें। एकाक्षरी मंत्र के एक लाख दस हजार
जप करने के पश्चात क्रमशः चतुराक्षरी, अष्टाक्षरी , उन्नीसाक्षरी, छत्तीसाक्षरी (मूल मंत्र ) आदि मंत्रो की दीक्षा अपने गुरुदेव से प्राप्त करें एवं गुरु आदेशानुसार मंत्रो का जाप संपूर्ण करें। कुछ ध्यान योग्य बातें बगलामुखी आराधना में निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना जरूरी होता है। साधना में पीत वस्त्र धारण करना चाहिए एवं पीत वस्त्र का ही आसन लेना चाहिए। आराधना में पूजा की सभी वस्तुएं पीले रंग की होनी चाहिए। आराधना खुले आकाश के नीचे नहीं करनी चाहिए। आराधना काल में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा साधना क्रम में स्त्री स्पर्श, चर्चा और संसर्ग कतई नहीं करना चाहिए। बगलामुखी देवी अपने साधक की परीक्षा भी लेती हैं। साधना गुरु की आज्ञा लेकर ही करनी चाहिए और शुरू करने से पहले गुरु का ध्यान और पूजन अवश्य करना चाहिए। बगलामुखी के भैरव मृत्युंजय हैं, इसलिए साधना के पूर्व महामृत्युंजय मंत्र का एक माला जप अवश्य करना चाहिए। मंत्र का जप हल्दी की माला से करना चाहिए। साधना रात्रि में ९ बजे से २ बजे के बीच करनी चाहिए। मंत्र के जप की संख्या निर्धारित होनी चाहिए और रोज उसी संख्या से जप करना चाहिए। यह संख्या साधक को स्वयं तय करना चाहिए। साधना गुप्त रूप से होनी चाहिए। साधना काल में दीप अवश्य जलाया जाना चाहिए। जो जातक इस बगलामुखी साधना को पूर्ण कर लेता है, वह अजेय हो जाता है, उसके शत्रु उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते।

यदि एक बार आपने यह साधना पूर्ण कर ली तो इस संसार में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है जिसे आप प्राप्त नहीं कर सकत। सभी प्रकार की समस्या का समाधान और किसी भी परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिए बगलामुखी साधना की जाती है। सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए, शत्रुओं का विनाश करने और कोर्ट कचहरी के मसलों में विजय होने के लिए बगलामुखी साधना की जाती है। हल्दी की माला से ८,१६ या २१बार बगलामुखी साधना की जाती है। बगलामुखी साधना का मंत्र है “ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै ह्लीं ॐ नम:

1 ) कुल : – महाविद्या बगलामुखी “श्री कुल” से सम्बंधित है।

2 ) नाम : – बगलामुखी, पीताम्बरा , बगला , वल्गामुखी , वगलामुखी , ब्रह्मास्त्र विद्या

3 ) कुल्लुका : – मंत्र जाप से पूर्व उस मंत्र कि कुल्लुका का न्यास सिर में किया जाता है। इस विद्या की कुल्लुका “ॐ हूं छ्रौम्”

4) महासेतु : – साधन काल में जप से पूर्व ‘महासेतु’ का जप किया जाता है। ऐसा करने से लाभ यह होता है कि साधक प्रत्येक समय, प्रत्येक स्थिति में जप कर सकता है। इस महाविद्या का महासेतु “स्त्रीं” है। इसका जाप कंठ स्थित विशुद्धि चक्र में दस बार किया जाता है।

5) कवचसेतु :- इसे मंत्रसेतु भी कहा जाता है। जप प्रारम्भ करने से पूर्व इसका जप एक हजार बार किया जाता है। ब्राह्मण व छत्रियों के लिए “प्रणव “, वैश्यों के लिए “फट” तथा शूद्रों के लिए “ह्रीं” कवचसेतु है।

6 ) निर्वाण :- “ह्रूं ह्रीं श्रीं”  से सम्पुटित मूल मंत्र का जाप ही इसकी निर्वाण विद्या है। इसकी दूसरी विधि यह है कि पहले प्रणव कर, अ , आ , आदि स्वर तथा क, ख , आदि व्यंजन पढ़कर मूल मंत्र पढ़ें और अंत में “ऐं” लगाएं और फिर विलोम गति से पुनरावृत्ति करें।

7 ) बंधन :- किसी विपरीत या आसुरी बाधा को रोकने के लिए इस मंत्र का एक हजार बार जाप किया जाता है। मंत्र इस प्रकार है ” ऐं ह्रीं ह्रीं ऐं ”

8) मुद्रा :- इस विद्या में योनि मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।

9) प्राणायाम : – साधना से पूर्व दो मूल मंत्रो से रेचक, चार मूल मंत्रो से पूरक तथा दो मूल मंत्रो से कुम्भक करना चाहिए। दो मूल मंत्रो से रेचक, आठ मूल मंत्रो से पूरक तथा चार मूल मंत्रो से कुम्भक करना और भी अधिक लाभ कारी है।

10 ) दीपन :- दीपक जलने से जैसे रोशनी हो जाती है, उसी प्रकार दीपन से मंत्र प्रकाशवान हो जाता है। दीपन करने हेतु मूल मंत्र को योनि बीज ” ईं ” से संपुटित कर सात बार जप करें

11) जीवन अथवा प्राण योग : – बिना प्राण अथवा जीवन के मन्त्र निष्क्रिय होता है, अतः मूल मन्त्र के आदि और अन्त में माया बीज “ह्रीं” से संपुट लगाकर सात बार जप करें ।

12 ) मुख शोधन : – हमारी जिह्वा अशुद्ध रहती है, जिस कारण उससे जप करने पर लाभ के स्थान पर हानि ही होती है। अतः “ऐं ह्रीं ऐं ” मंत्र से दस बार जाप कर मुखशोधन करें

13 ) मध्य दृस्टि : – साधना के लिए मध्य दृस्टि आवश्यक है। अतः मूल मंत्र के प्रत्येक अक्षर के आगे पीछे “यं” (Yam) बीज का अवगुण्ठन कर मूल मंत्र का पाँच बार जप करना चाहिए।

14 ) शापोद्धार : – मूल मंत्र के जपने से पूर्व दस बार इस मंत्र का जप करें –
” ॐ हलीं बगले ! रूद्र शापं विमोचय विमोचय ॐ ह्लीं स्वाहा

15 ) उत्कीलन : – मूल मंत्र के आरम्भ में ” ॐ ह्रीं स्वाहा ” मंत्र का दस बार जप करें।

16 ) आचार :- इस विद्या के दोनों आचार हैं, वाम भी और दक्षिण भी ।

17 ) साधना में सिद्धि प्राप्त न होने पर उपाय : – कभी कभी ऐसा देखने में आता हैं कि बार बार साधना करने पर भी सफलता हाथ नहीं आती है। इसके लिए आप निम्न वर्णित उपाय करें –

a) कर्पूर, रोली, खास और चन्दन की स्याही से, अनार की कलम से भोजपत्र पर वायु बीज “यं” से मूल मंत्र को अवगुण्ठित कर, उसका षोडशोपचार पूजन करें। निश्चय ही सफलता मिलेगी।

b) सरस्वती बीज “ऐं”  से मूल मंत्र को संपुटित कर एक हजार जप करें।

c)ताडपत्र य भोजपत्र पर गौदुग्ध से मूल मंत्र लिखकर उसे दाहिनी भुजा पर बांध लें। साथ ही मूल मंत्र को “स्त्रीं” से सम्पुटित कर उसका एक हजार जप करें

18 ) विशेष : – गंध,पुष्प, आभूषण, भगवती के सामने रखें। दीपक देवता के दायीं ओर व धूपबत्ती बायीं ओर रखनी चाहिए। नैवेद्य फल, मीठा, भी देवता के दायीं ओर ही रखें। जप के उपरान्त आसन से उठने से पूर्व ही अपने द्वारा किया जाप भगवती के बायें हाथ में समर्पित कर दें।

अतः ऐसे साधक गण जो किन्ही भी कारणो से यदि अभी तक साधना में सफलता प्राप्त नहीं कर सकें हैं, उपर्युक्त निर्देशों का पालन करते हुए पुनः एक बार फिर संकल्प लें, तो निश्चय ही पराम्बा पीताम्बरा की कृपा दृस्टि उन्हें प्राप्त होगी
  बिशेष नोट- *देवी जितनी जल्दी प्रसन्न होती है, उतनी ही जल्दी अनिष्ट भी कर सकती है। अतः साधना मे बिशेष सावधानी रखनी आवाश्यक है।* चूकि तंत्रशाश्त्र गोपनीय है अतः इसके दुरुपयोग को रोकने हेतु , यह लेख साधना हेतु पर्याप्त नही है, इसलेख मे  हवन विधि, हवन सामाग्री तथा समापन विधि, नही लिखी गयी है। यदि इस लेखके आधार पर कोई साधना करता है, तो किसी भी प्रकार की हानि/ बाधा के लिये वह स्वंय जिम्मेदार होगा। अतः साधना से पुर्व अपने गुरु से आज्ञा प्राप्त करे और उनके निर्देशन मे ही साधना करे।
1. बगलामुखी साधना के दौरान पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना अत्याधिक आवश्यक है. 
2. इस क्रम में स्त्री का स्पर्श, उसके साथ किसी भी प्रकार की चर्चा या सपने में भी उसका आना पूर्णत: निषेध है. अगर आप ऐसा करते हैं तो आपकी साधना खण्डित हो जाती है.
 3. किसी डरपोक व्यक्ति या बच्चे के साथ यह साधना नहीं करनी चाहिए. बगलामुखी साधना के दौरान साधक को डराती भी है. साधना के समय विचित्र आवाजें और खौफनाक आभास भी हो सकते हैं इसीलिए जिन्हें काले अंधेरों और पारलौकिक ताकतों से डर लगता है, उन्हें यह साधना नहीं करनी चाहिए.
 4. साधना से पहले आपको अपने गुरू का ध्यान जरूर करना चाहिए.
 5. मंत्रों का जाप शुक्ल पक्ष में ही करें. बगलामुखी साधना के लिए नवरात्रि सबसे उपयुक्त है.
 6. उत्तर की ओर देखते हुए ही साधना आरंभ करें.
 7. मंत्र जाप करते समय अगर आपकी आवाज अपने आप तेज हो जाए तो चिंता ना करें. 
8. जब तक आप साधना कर रहे हैं तब तक इस बात की चर्चा किसी से भी ना करें.
 9. साधना करते समय अपने आसपास घी और तेल के दिये जलाएं. 
10. साधना करते समय आपके वस्त्र और आसन पीले रंग का होना चाहिए।
*पं. राजेश मिश्र " कण"*
भास्कर ज्योतिष्य व तंत्र अनुसंधान केन्द्र आजमगढ़

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Agori tantra kaali tantra kali tantra ravan tantra uddish tantra rahasya



जीवित श्राद्ध प्रमाण संग्रह,

  प्रमाण-संग्रह (१) जीवच्छ्राद्धकी परिभाषा अपनी जीवितावस्थामें ही स्वयंके कल्याणके उद्देश्यसे किया जानेवाला श्राद्ध जीवच्छ्राद्ध कहलाता है- ...