देवराज इन्द्रने अहिल्या के साथ छल किया था- अहिल्या उद्धार
!! अहिल्या उद्धार !!
यहाँ शङ्का होती है कि वास्तवमें देवराज इन्द्रने अहिल्याके साथ छल किया था ? क्या न्याय शास्त्रके प्रणेता महर्षि गौतमने निर्दोष पत्नीको दण्ड देकर अन्याय किया था ?
प्रथम शङ्का पर विचार करते हैं , श्रुति भगवती कहती है- “ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाघ्नत ।इन्द्रो ह ब्रह्मचर्येण देवेभ्यः स्व१राभवत् !! (अथर्ववेद)
इस मन्त्रमें समस्त देवताओं और इन्द्रको ब्रह्मचारी कहा है , फिर देवराज इन्द्र अहिल्याके छल नहीं कर सकते । किन्तु वेदोंमें ही इन्द्रको अहिल्याजार (अहिल्याका उपपति) कहा गया है , ” गौरावस्कनन्दिन् अहिल्यायै जारेति “(शतपथ ३/३/२/१८) ” गौरास्कन्दिन्नहल्यायै जार,कौशिकब्राह्मण , गौतम ब्रुवाण इति “(तै०आ०प्र०अ०१/१/२/४) “हल्यायै जारेत्यहल्याया मैत्रेय्या जार आस कौशिकब्राह्मणेति !”(षड्विंशब्राह्मण )“गौरास्कन्दन्नि हल्यायै (२) जार कौशिक ब्राह्मण गौतम ब्रुवाणेता वदेह !”(ला०श्रौत०सूत्र कण्डिका ३१) इत्यादि वेद-वेदाङ्गोंमें कौशिकइन्द्र को अहिल्याका जार (उपपति) कहा गया है , षड्विंशब्राह्मणमें कौशिकइन्द्र गौतमका रूप धारण करते हैं -“कौशिको हि समैनां ब्राह्मण उपन्यैति !” , देवासुर संग्रामके समय इन्द्र गौतमका रूप धारण करके गौतमके घर जाते हैं -“उपन्येति गौतमब्रुवाण देवासुरा हव संयता आसंस्ता नन्तरेण गौतम: शश्राम तमिन्द्र उत्पेत्योवाचेन नो भवां स्पृशंश्चरत्विति नाहमुत्सह इत्यथाहं भवतो रूपेण चराणीति यथा मन्यसे इति स यत्तद् गौतमो वा ब्रुवाणश्चचार गोतमरूपेण वा तदेत्दाह !”!(षड्विंशब्राह्मण ) इन प्रमाणोंसे अहिल्या जार कौशिक इन्द्र प्रसिद्ध हैं , ऋग्वेदमें -“आ तू न इन्द्र कौशिक मन्दसान: सुतं पिब !(ऋक्०१/१०/११) कुशिक पुत्र इन्द्र कौशिक कहलाते हैं , कौन हैं कुशिकपुत्र इन्द्र इसका वर्णन रामायण ,महाभारत ,हरिवंश आदि में विस्तारसे किया गया है , चन्द्रवंशी राजा कुशिकने इन्द्रके समान पराक्रमी पुत्रकी कामनाके लिये तप किया था जिससे इन्द्रके अंश से उन्हें गाधि नामक पुत्र हुआ जो कुशिकपुत्र होने के कारण कौशिक इन्द्र कहलाता था -“कुशिकस्तु तपस्तेते पुत्रमिन्द्रसमप्रभम् !पुत्रात्वे कल्पयामास स देवेन्द्र: सुरोत्तम:!
!!स गाधिरभवत् राजामघवन् कौशिक: स्वयम् !”( महाभारत खिलभाग ,हरिवंश )
वेद-वेदाङ्गों से अहिल्याजार भी कौशिक इन्द्र ही हैं , मघवा(स्वर्गके अधिपति ) इन्द्र अहिल्याजार नहीं थे , वे तो देवता और ब्रह्मचारी हैं ।
ये कुशिकपुत्र कौशिक इन्द्र अहिल्याके जार अर्थात् उपपति कहे गये हैं , अर्थात् अहिल्याके प्रेमी हैं न कि बलात्कारी हैं , “गौरास्कन्दिन्न हल्यायै जार , कौशिकब्राह्मण ,गौतमब्रुवाण इति ” (प्र०आ०१/१/२/४) भगवान् वाल्मीकिने भी अहिल्या को निर्दोष नहीं सदोष कहा है , क्योकि इन्द्रको पहचान कर भी उसने अपने आप को इन्द्र उससे प्रेम करते हैं कृतार्थ माना –“मुनिवेषं सहस्राक्षं विज्ञाय रघुनन्दन !मतिं चकार दुर्मेधा देवराज कुतुहलात् !!(वा०रा०१/४८/१९) में वाल्मीकि अहिल्या को दुर्बुद्धि कहते हैं , “अथाब्रवीत सुरश्रेष्ठं कृतार्थेनान्तरात्मना ! कृतार्थास्मि सुरश्रेष्ठ गच्छ शीघ्रमिति: प्रभो !!” (वा०रा०१/४८/२०) इसीलिए अहिल्या सदोष थीं , निर्दोष नहीं । महर्षि गौतमने इन्द्रको नपुंसक होने का श्राप दिया “पेततुर्वृषणौ भूमौ सहस्राक्षस्य तत्क्षणात् !” (वा०रा०१/४८/२८) और अहिल्याको श्राप दिया कि जिस सुंदरता के कारण यह पाप किया , वह सुन्दरता ही नहीं रहेगी और अब से यह रूप लोक में सभी प्रजा धारण करेगा -“तस्माद्रूपवती लोके न त्वमेका भविष्यति !तस्माद्रूपवती लोके न त्वमेका भविष्यति ! रूपं च ते प्रजाः सर्वा गमिष्यन्ति न संशयः!!(वा०रा०७/३०/३७-३८)महर्षि गौतम अहिल्या को आदेश देते हैं कि वह अदृश्य होकर भगवान् श्रीरामके पहुँचने तक वायु भक्षण करती हुई तपस्या करे और आश्रम त्यागकर हिमालय पर , जहां सिद्ध रहते हैं तप करने चले गये –“एवमुक्त्वा महातेजा गौतमो दुष्टचारिणीम् !इममाश्रममुत्सृज्य सिद्धचारण सेविते !हिमावच्छिखरे रम्ये तपस्तेपे महातपा !!(वा०रा०१/४८/३३)
यदि महर्षि गौतम अहिल्याके साथ अन्याय करते तब तो स्वयं आश्रम त्यागकर नहीं जाते , बल्कि अहिल्याको आश्रमसे निकाल देते , जबकि अहिल्या को तो भगवान् श्रीरामके दर्शनोंका आशीर्वाद ही देकर गये थे । जो युगों युगों तक योगियों को नहीं होते ।श्रीराम के आश्रममें चरण रखते ही अहिल्या समस्त पाप से मुक्त हो गयीं , और भगवान् श्रीराम-लक्ष्मणजी ने उनके चरण स्पर्श किये ।
जय जय सीताराम ।
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