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Showing posts from July, 2018

शूद्र ही श्रेष्ठ है स्त्रीयॉ ही श्रेष्ठ है, कलियुग श्रेष्ठ है।

श्रीराम! शूद्र ही श्रेष्ठ है! स्त्रीयॉ ही साधु है! युग मे कलियुग ही श्रेष्ठ है!     शूद्र क्यो श्रेष्ठ है? द्विजातियो को संपुर्ण कार्यो मे बंधन रहता है। पहले ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए। वेदाध्ययन करना पड़ता है।और फिर स्वधर्म का पालन करते हुए, उपार्जित धन से, विधिपूर्वक यज्ञ करने पड़ते है। इसमे भी व्यर्थ वार्तालाप, व्यर्थ भोजन और व्यर्थ यज्ञ उनके पतन का कारण होती है।उन्हे सदा संयमी रहना पड़ता है। सभी कामो मे विधि के विपरीत करने से उन्हे दोष लगता है। यहॉ तक की भोजन और पानी भी वे अपनी ईच्छानुसार नही भोग सकते। इस प्रकार वे अत्यंत क्लेश से पुण्य लोको को प्राप्त करते है। किंतु शूद्र के लिये कोई नियम नही है। वह मात्र द्विजो की सेवा करने से ही सद्गति को प्राप्त करते है, इसलिये वर्णो मे शूद्र ही श्रेष्ठ है ।      स्त्री क्यो साधु है?   पुरुषो को अपने धर्मानुकुल प्राप्त किये हुए धन से ही सुपात्र को दान और विधिपुर्वक यज्ञ करना चाहिये। इस धन के उपार्जन तथा रक्षण मे महान क्लेश होता है। और उसको अनुचित कार्य मे लगाने से भी मनुष्यो को जो कष्ट होता है वह ज्ञात ही है।...

वेद, पुराण, उपनिषद आदि ग्रंथ हमारे लिये किस महत्व के, कितने उपयोगी है

श्रीराम! पुराणों उपनिष्दों तथा दर्शन शास्त्रों में आहार, व्यवहार तथा उपचार सम्बन्धी मौलिक जानकारी दी गयी है। इनमे उत्तम सामाजिक संस्कार उत्पन्न करने की तकनीक है। प्राचीन ग्रंथो के अनुसार मानव शरीर में तीन दोष पहचाने गये हैं जिन्हें वात, पित, और कफ़ कहते हैं। स्वास्थ इन तीनों के उचित अनुपात पर निर्भर करता है। जब भी इन तीनों का आपसी संतुलन बिगड जाता है तो शरीर रोग ग्रस्त हो जाता है। रोग के लक्षणों को पहचान कर संतुलन का आँकलन किया जाता है और उपचार की क्रिया आरम्भ होती है। जीवन शैली को भी तीन श्रेणियों में रखा गया है जिसे सात्विक, राजसिक तथा तामसिक जीवन शैली की संज्ञा दी गयी है। आज के वैज्ञानिक तथा चिकित्सक दोनों ही इस वैदिक तथ्य को स्वीकार करते हैं कि जीवन शैली ही मानव को स्वस्थ अथवा अस्वस्थ बनाती है। आज कल इसे ‘लाईफ़ स्टाईल डिजीज़ ’ कहा जाता है। भारतीय समाज में पौरुष की परीक्षा विवाह से पूर्व अनिवार्य थी। मनु समृति में तपेदिक, मिर्गी, कुष्टरोग, तथा तथा सगोत्र से विवाह सम्बन्ध वर्जित किया गया है। छुआछुत का प्रचलन भी स्वास्थ के कारणों से जुडा है। अदृष्य रोगाणु रोग का कारण है यह धारणा...