वराहावतार दिग्दर्शन, वराहावतार रहस्य

श्रीराम!!!
#वराहावतार_दिग्दर्शन
धन ही पतन का कारण है, हम प्रायः समाज मे देखते है, उच्चतम ( धनाढ्य ) परिवारो मे, जो नये नये अमीर हुए है। पश्चात्य सभ्यता का अनुकरण करने मे, सनातन सभ्यता का लोप कर, संस्कारहीन होते जाते है। और अन्य को भी पूछकटे सियार की भॉति, उसी का अनुकरण करने को बाध्य करते है। पुरुष का पुरुष से व नारी का पर पुरुष से, शारीरिक यौन संबध गौरव समझते है। विचार करते है, तो पाते है, कि इस पद्धति को गौरव मानने वाले नवीन अमीर ही अधिक है। धन को नियंत्रण न कर पाने के कारण संस्कार हीन होते जा रहे है। यहॉ कनक, कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय, पूर्णता चरितार्थ होता है। खैर, बिषय को लम्बा न खीचते हुए मुख्य बिंदु पर आते है।
हिरण्याक्ष अर्थात स्वर्ण की धुरी, धन के प्रति मोह लोभ उत्पन्न होना ही हिरण्याक्ष के जन्म का कारण है । विलासिता ही स्वर्णादि धन के लिये प्रेरित करती है।
धन से विलासिता बढ़ती है। अतः विलासिता को ही हिरण्याक्ष कहा गया है। मनुष्य विलासी होने पर संस्कार को महत्व नही देता, यह रजो गुण की वृद्धि हुई। जीव भोग विलास मे डूब गया।विलास मे खलल पडने पर क्रोध की वृद्धि हुई। जब क्रोध से खलल करने वाले को दबा दिया तो अहंकार उत्पन्न हुआ।अतः इस प्रकार उसके जीवन मे संस्कार का लोप होता है। तमोगुण की वृद्धि हुई।अर्थात तमोगुण मे जीव डूब गया। पंचतत्व निर्मित शरीररुपधारी जीव की उपमा पृथ्वी से की गयी है। मायामय संसार को अथाह सागर कहा गया है। काम, क्रोध मद लोभादि विकार ही मल मूत्र गंदगी है। विलासिता( हिरण्याक्ष), जीव( पृथ्वी) को, संसार सागर मे, मल, मूत्र, गंदगी (काम, क्रोधादि विकार)से ढक देता है!यही जीव का पतन है। इह लोक और परलोक दोनो मे ही जीव निन्दनीय हो जाता है। इसी मे पडे पडे जीव को जब काफी समय बीत जाता है। तब कभी जब जीव चिंतन करता है। अहो मेरी क्या गति हुई, जा रही है। मै परमात्मा से विमुख होता जा रहा हू। जीव छटपटा उठता है, उस स्थिति से बाहर निकलने के लिये दृढ प्रतिज्ञ होता है, उसमे सतो गुण की वृद्धि होती है। इस प्रकार दृढनिर्णय़ होना ही योग है, यही योग सतोगुण को बढानेवाला है। यह दृढ़ निर्णय ही कठोरशरीर वाला वराह है,जिसके उज्जवल दॉत सतोगुण है। यही "वराहावतार" है।यही वराह अपने उज्जवल दॉतो से मल मूत्र गंदगी को साफ करके पृथ्वी का उद्धार करता है। अर्थात वराह रुपी दृढ़निर्णय सतोगुणरुपी दॉत से मल, मूत्र , गंदगी रुपी विकार को हटाकर पृथ्वी रुपी जीव का कल्याण करता है।
  इस हेतु ही कहा गया है, कि
जो जल बाढै़ नाव मे, घर मे बाढै दाम!
दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम!!
जय जय सीताराम!!!
पं. राजेश मिश्र 'कण'

जीवित श्राद्ध प्रमाण संग्रह,

  प्रमाण-संग्रह (१) जीवच्छ्राद्धकी परिभाषा अपनी जीवितावस्थामें ही स्वयंके कल्याणके उद्देश्यसे किया जानेवाला श्राद्ध जीवच्छ्राद्ध कहलाता है- ...