वर्णाश्रम जातिभेद क्यो?


श्रीराम!!
#वर्णाश्रम
पश्चिमी देश आज पशु पक्षी व वृक्षो की नस्ल को सुरक्षित व उनकी वृद्धि के लिये लगातार प्रयत्नशील है। किन्तु दुर्भाग्यवश समाजीयो की खोपडी मे यह बात नही बैठ पा रही है, कि मनुष्य की भी कोई खास नस्ल होती है, और उसकी रक्षा करना भी आवश्यक है।
   यह तो सभी जानते है कि आम कहने के लिये तो मात्र एक साधारण वृक्ष है, परन्तु उसमे भी कलमी , लगंडा, दशहरी, तोतापरी, सिन्दुरी आदि अनेकानेक जातिया पाई जाती है। जिनका आकार प्रकार, रंग रुप और स्वाद मे भिन्नता पाई जाति है। लंगडा के वृक्ष पर तोतापरी तो नही उगता, सफेदा सिन्दूरी हो सकता है क्या? पशुओ मे गाय व घोडो की बिशेष नस्ले पाई जाति है।
कुत्तो की नस्ल को सुरक्षित रखने के लिये  "बुलडाग" और "पप्पीडाग" जन्मानेवाली कुतिया को वर्णसंकरता से बचाने के लिये, (दुसरे कुत्ते के संपर्क से) रबड़ के जॉघिये पहनाए जाते है । अहो यह कितने आश्चर्य व शोक का बिषय है, कि आज मानव नस्ल की सुरक्षा की न केवल उपेक्षा की जा रही है, बल्कि जातिगत बिशेषताओ की रक्षा के किले- जन्मना वर्ण व्यवस्था, गोत्र प्रवर विचार, जाति उपजाति मे विवाह सम्बन्ध तथा भोजन सम्बन्ध आदि आदि वैज्ञानिक विधानो की धज्जियॉ उडाई जा रही है।
हिन्दू जाति ही एकमात्र ऐसी जाति है कि जिसने अपने वर्ण मे ही यौन सम्बन्ध को यथा तथा सुरक्षित रखा है। सात सौ वर्षो के मुस्लिम शाशनकाल मे हजारो क्षत्राणियो ने जौहर व्रत धारण कर सहर्ष जलती चिता मे प्रवेश किया। कालकूट का पान किया लेकिन अकबर महान की साम दाम भेद पुर्ण और औरंगजेब की दण्डपूर्ण सारी नीति व्यर्थ सिद्ध हुई। आर्यललनाओ ने अपनी  विशुद्ध कोख को गोमॉसभक्षक अनार्यो क् संसर्ग से दूषित नही होने दिया। फलस्वरुप हिन्दू हृदय सम्राट राणाप्रताप, छत्रपति शिवाजी महराज, श्री गुरु गोविन्द सिंह और वीर बन्दा बैरागी जैसो की नस्ल सुरक्षित रह सकी।
  1947 पाकिस्तान के जन्मकालीन हत्याकाण्ड के समय अनेको देविये अपने सतीत्व की रक्षा के लिये हँसते हँसते चिताओ पर चढ़ गयी। पुरे गॉव के गॉव सती हो गयी। इन कष्टपूर्ण कथाओ ने जहॉ हमारे हृदय को भस्म कर डाला वही इन बलिदानो के प्रकाश मे एक आशा की किरण भी सुस्पष्ट झलक पडी। आस्तिक जगत को पुनः यह निश्चित समझने का अवसर मिला कि हिन्दू जाति की "नस्ल " अभी सुरक्षित है।
सीता सावित्री और पद्मिनी का परम्परागत रक्त आज भी हिन्दू नारियो मे ठाठे मार रहा है। जब तक हमारी यह नस्ल सुरक्षित है तब तक हिन्दू जाति का बाल भी बॉका नही हो सकता इसप्रकार का उदात्त विचार एक बार फिर हमारे हृदय मे उद्बुद्ध हुए।
  यदि यह नस्ल समाप्त हो गयी तो एक बार फिर यहॉ भी जर्मनी के प्रसिद्ध नाजी नेता फील्ड मार्शल गोयरिंग की लाश पर उन्ही की विधवा पत्नी फिल्मस्टार  के रुप मे थिरक कर, पति के जानी दुश्मन, अंग्रेज, रसियन, अमेरिकन सैनिको से " वंस मोर हियर" वंस मोर हियर" की दाद चाहने वाली नचनिये देखने मे आयेंगी। मानवता मृत हो जाऐगी।
     दो विभिन्न जातियो के सांकर्य
छआछूत व जातिवाद का जन्म इस लिकं पर पढि़ए

जीवित श्राद्ध प्रमाण संग्रह,

  प्रमाण-संग्रह (१) जीवच्छ्राद्धकी परिभाषा अपनी जीवितावस्थामें ही स्वयंके कल्याणके उद्देश्यसे किया जानेवाला श्राद्ध जीवच्छ्राद्ध कहलाता है- ...