Showing posts with label जानकारी देवता. Show all posts
Showing posts with label जानकारी देवता. Show all posts

देवताओ का समूह, मास के देवता, अधिपति देवता, 33 कोटि देवता के नाम

 आदिशक्ति त्रिदेवयुक्त सर्वशक्तिमान प्रकृति और माया को उत्पन्न करनेवाली सनातन शक्ति है, जो सृष्टि व संहार को संचालित करती है। यही आदिशक्ति सृष्टि करने पर संचालन हेतु अपने अंश को विविध भागो मे बॉटकर सृष्टि का संचालन करती है। पुराणो मे आदिशक्ति दुर्गा, सुर्य, बिष्णु, शिव आदि नामो से जाने जाते है। वस्तुतः ये अलग अलग न होकर एक ही के नाम है, जो अलग अलग प्रकरण के अनुसार कहे गये है। 33 कोटि का अर्थ करोड व प्रकार दोनो है!

त्रिदेव : ब्रह्मा, विष्णु और महेश।

त्रिदेवी : सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती।

पार्वती ही पिछले जन्म में सती थीं। सती के ही 10 रूप 10 महाविद्या के नाम से विख्यात हुए और उन्हीं को 9 दुर्गा कहा गया है। आदिशक्ति मां दुर्गा और पार्वती अलग-अलग हैं। दुर्गा सर्वोच्च शक्ति है

प्रमुख 33 देवता हैं- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और इन्द्र व प्रजापति को मिलाकर कुल 33 देवता होते हैं। कुछ विद्वान इन्द्र और प्रजापति की जगह 2 अश्विनी कुमारों को रखते हैं। प्रजापति ही ब्रह्मा हैं।

12 आदित्य :के नाम इस प्रकार है -1. अंशुमान, 2. अर्यमन, 3. इन्द्र, 4. त्वष्टा, 5. धातु, 6. पर्जन्य, 7. पूषा, 8. भग, 9. मित्र, 10. वरुण, 11. विवस्वान और 12. विष्णु।

8 वसु के नाम इस प्रकार है  :- 1. आप, 2. ध्रुव, 3. सोम, 4. धर, 5. अनिल, 6. अनल, 7. प्रत्युष और 8. प्रभाष।

11 रुद्र के नाम इस प्रकार है:- 1. शम्भू, 2. पिनाकी, 3. गिरीश, 4. स्थाणु, 5. भर्ग, 6. भव, 7. सदाशिव, 8. शिव, 9. हर, 10. शर्व और 11. कपाली।

अन्य पुराणों में इनके नाम अलग है- मनु, मन्यु, शिव, महत, ऋतुध्वज, महिनस, उम्रतेरस, काल, वामदेव, भव और धृत-ध्वज ये 11 रुद्र देव हैं। इनके पुराणों में अलग-अलग नाम मिलते हैं।

2 अश्विनी कुमार के नाम : 1. नासत्य और 2. दस्त्र। अश्विनीकुमार त्वष्टा की पुत्री प्रभा नाम की स्त्री से उत्पन्न सूर्य के 2 पुत्र हैं। ये आयुर्वेद के आदि आचार्य माने जाते हैं।

अन्य देवी और देवता इस प्रकार है :-  49 मरुदगण, अर्यमा, नाग, हनुमान, भैरव, भैरवी, गणेश, कार्तिकेय, पवन, अग्निदेव, कामदेव, चंद्र, विश्‍वदेव, चित्रगुप्त, यम, यमी, शनि, प्रजापति, सोम, त्वष्टा, ऋभुः, द्यौः, पृथ्वी, सूर्य, बृहस्पति, वाक, काल, अन्न, वनस्पति, पर्वत, पर्जन्य, धेनु, पूषा, आपः सविता, उषा, औषधि, अरण्य, ऋतु त्वष्टा, सावित्री, गायत्री, श्री, भूदेवी, श्रद्धा, शचि, दिति, अदिति, सनकादि, गरूड़, अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कार्कोटक, पिंगला आदि।

ब्रह्मा : ब्रह्मा को जन्म दाता

विष्णु : विष्णु को पालनकर्ता

महेश : महेश को संहारकर्ता कहा जाता है।

इंद्र : बारिश और जंगलों को संचालित करते हैं।

अर्यमा पितरों के अधिपति है।

यम : देह छोड़ चुकी आत्माओं को दंड या न्याय देने वाले।

अपांनपात : धर्म की आलोचना करने वालों को दंड देने वाले।

10 दिशाओ के 10 दिग्पालो के नाम - ऊर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान के शिव व ईश, पूर्व के इंद्र, आग्नेय के अग्नि या वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्य के नऋति, पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु और मारुत, उत्तर के कुबेर और अधो के अनंत। उक्त सभी दिशाओं के दिशाशूल, वास्तु की जानकारी के साथ जानिए धन, समृद्धि और शांति बढ़ाने के उपाय।

. स्व: (स्वर्ग) लोक के देवता- सूर्य, वरुण, मित्र

भूव: (अंतरिक्ष) लोक के देवता- पर्जन्य, वायु, इंद्र और मरुत

भू: (धरती) लोक- पृथ्वी, उषा, अग्नि और सोम आदि।

 आकाश के देवता अर्थात स्व: (स्वर्ग)- सूर्य, वरुण, मित्र, पूषन, विष्णु, उषा, अपांनपात, सविता, त्रिप, विंवस्वत, आदित्यगण, अश्विनद्वय आदि।

अंतरिक्ष के देवता अर्थात भूव: (अंतरिक्ष)- पर्जन्य, वायु, इंद्र, मरुत, रुद्र, मातरिश्वन्, त्रिप्रआप्त्य, अज एकपाद, आप, अहितर्बुध्न्य।

पृथ्वी के देवता अर्थात भू: (धरती)- पृथ्वी, ऊषा, अग्नि, सोम, बृहस्पति, नद‍ियां आदि।

 पाताल लोक के देवता- पाताल के देवाता शेष और वासुकि हैं।

 पितरो के मुख्य देवता अर्यमा है। पितृलोक के देवता-  अग्रिष्वात्त, बर्हिषद आज्यप, सोमेप, रश्मिप, उपदूत, आयन्तुन, श्राद्धभुक व नान्दीमुख ये 9 दिव्य पितर बताए गए हैं। आदित्य, वसु, रुद्र तथा दोनों अश्विनी कुमार भी केवल नांदीमुख पितरों को छोड़कर शेष सभी को तृप्त करते हैं। पुराण के अनुसार दिव्य पितरों के अधिपति अर्यमा का उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र निवास लोक है।

अलग अलग नक्षत्रो के देवता इस प्रकार है:-अश्विनी – अश्विनी कुमार, भरणी – काल, कृत्तिका – अग्नि, रोहिणी – ब्रह्मा, मृगशिरा – चन्द्रमा, आर्द्रा – रूद्र, पुनर्वसु – अदिति, पुष्य – बृहस्पति, आश्लेषा – सर्प, मघा – पितर, पूर्व फाल्गुनी – भग, उत्तराफाल्गुनी – अर्यमा, हस्त – सूर्य, चित्रा – विश्वकर्मा, स्वाति – पवन, विशाखा – शुक्राग्नि, अनुराधा – मित्र, ज्येष्ठा – इंद्र, मूल – निऋति पूर्वाषाढ़ – जल, उत्तराषाढ़ – विश्वेदेव, श्रवण – विष्णु, धनिष्ठा – वसु, शतभिषा – वरुण, पूर्वाभाद्रपद – आजैकपाद, उत्तराभाद्रपद – अहिर्बुधन्य, रेवती – पूषा,  अभिजीत – ब्रह्मा,

 मासाधिपति अलग अलग मास के देवता - चैत्र मास में धाता, वैशाख में अर्यमा, ज्येष्ठ में- मित्र, आषाढ़ में वरुण, श्रावण में- इंद्र, भाद्रपद में- विवस्वान, आश्विन में पूषा, कार्तिक-पर्जन्य, मार्गशीर्ष में- अंशु, पौष में- भग, माघ में- त्वष्टा एवं फाल्गुन में विष्णु। इन नामों का स्मरण करते  हुए इन महीनो मे सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है।




यह लेख आपको कैसा लगा कमेंट कर के अवश्य बताए!
नए लेख की जानकारी सुचना पाने के लिए subscribe kare

जीवित श्राद्ध प्रमाण संग्रह,

  प्रमाण-संग्रह (१) जीवच्छ्राद्धकी परिभाषा अपनी जीवितावस्थामें ही स्वयंके कल्याणके उद्देश्यसे किया जानेवाला श्राद्ध जीवच्छ्राद्ध कहलाता है- ...