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मंत्र सिद्धि के लिये, पुरश्चरण विधि, मंत्र संस्कार विधि, मंत्रशोधन के अपवाद

पुरश्चरण" के पांच अंग होते हैं- १. जप २. हवन ३. तर्पण ४. मार्जन ५. ब्राह्मण भोज किसी भी मन्त्र का पुरश्चरण उस मन्त्र की वर्ण संख्या को एक लाख से गुणित कर जपने पर पूर्ण माना जाता है। "पुरश्चरण" में जप संख्या निर्धारित मन्त्र के अक्षरों की संख्या पर निर्भर करती है। इसमें "ॐ" और "नम:" को नहीं गिना जाता।  अशक्त होने पर कम से कम एक लाख जप का भी पुरश्चरण किया जा सकता है। जप संख्या निश्चित होने के उपरान्त जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन, मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोज कराने से "पुरश्चरण" पूर्ण होता है। आसन न बदले जितने माला जप प्रथम दिन किये हो उतने माला ही प्रतिदिन करे। - हवन के लिए मन्त्र के अन्त में ‘स्वाहा’ बोलें। - तर्पण करते समय मन्त्र के अन्त में ‘तर्पयामी’ बोलें। - मार्जन करते समय मन्त्र के अन्त में ‘मार्जयामि’ अथवा ‘अभिसिन्चयामी’ बोलें । मंत्र संस्कार की दस विधि है- १- जनन- गोरोचन, कुंकुम या चंदन से भोजपत्र पर आत्माभिमुख एक त्रिकोण लिखे। उसके तीनो कोण पर छ:छ: समान रेखाए खीचें। इस प्रकार बने हुए ४९ त्र...