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गुरु स्तुति

 श्रीराम । गुरु स्तुति;- धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः। तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते॥  अर्थात् धर्म को जाननेवाले, धर्म मुताबिक आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और सब शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करनेवाले गुरु कहे जाते हैं । निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते। गुणाति तत्त्वं हितमिच्छुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः स गुरु र्निगद्यते॥  अर्थात् जो दूसरों को प्रमाद करने से रोकते हैं, स्वयं निष्पाप मार्ग पर चलते हैं।  हित और कल्याण की कामना रखनेवाले को तत्त्वबोध कराते हैं,  उन्हें गुरु कहते हैं। प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा। शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः॥   अर्थात् प्रेरणा देनेवाले, सूचन देनेवाले, (सच) बतानेवाले, (रास्ता) दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले, और बोध करानेवाले – ये सब गुरु समान है । दुग्धेन धेनुः कुसुमेन वल्ली शीलेन भार्या कमलेन तोयम्। गुरुं विना भाति न चैव शिष्यः शमेन विद्या नागरी जनेन ॥ अर्थात् जिस प्रकार दूध के बिना गाय, फूल के बिना लता, शील के बिना पत्नी, कमल के बिना जल, शांति के बिना ज्ञान और प्रजा के बि...