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मॉ बगलामुखी साधना

श्रीराम!! मॉ बगलामुखी ही ब्रह्मास्त्रविद्या है। इन्हीके अनेक नाम यथा- बगलामुखी, पीताम्बरा , बगला , वल्गा, वल्गामुखी , वगलामुखी , ब्रह्मास्त्र विद्या मॉ बगलामुखी शत्रुओं का नाश करने वाली, उनकी गति, मति, बुद्धि का स्तम्भन करने वाली, मुकदमे एवं चुनाव आदि में विजय दिलाने वाली तथा वे जगत का वशीकरण भी करने वाली हैं। यदि उनकी कृपा प्राप्त हो जाये तो साधक की ओर सभी आकर्षित होने लगते हैं, वह जंहा बोलता है, वंही उसे सुनने को जन समूह उमड़ पड़ता है। उसका दायरा बहुत व्यापक हो जाता है। कोई भी स्त्री, पुरूष, बच्चा उसके आकर्षण में ऐसा बंध जाता है कि अपनी सुध-बुध खो बैठता है और वही करने के लिए विवश हो जाता है, जो साधक चाहता है इस साधना को करने के लिए अति गोपनीय मंत्र का उल्लेख मैं यंहा साधकों के लिए कर रहा हॅू, लेकिन साधक सदैव स्मरण रखें कि ऐसी साधनाओं का दुष्प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए अन्यथा साधक की साधना क्षीण होने लगती है। मंत्र का प्रयोग सदैव समाज कल्याण के लिए करना चाहिए, न कि समाज-विरोधी गतिविधियों के लिए । सर्वप्रथम भगवती बगलामुखी की मंत्र दीक्षा ग्रहण करें उसके पश्चात गुरू आज्ञानुसार साध...

ज्वालामुखी योग, मुहुर्त व ज्योतिष्य

श्रीराम! भारतीय ज्योतिष्य मे अनेक शुभ अशुभ मुहुर्त है किन्तु इन सबमे सबसे भयानक योग है "ज्वालामुखी योग"। कहा जाता है कि- *" जन्मे तो जीवे नही बसै तो ऊजड होय।" कामनी पहने चूडियॉ, निश्चय विधवा होय।।""* *"कुऐ नीर झॉके नही, खाट पडो न उठन्त। ज्योतिषी जो जाने नही, ज्योतिष कहता ग्रंथ।।"*  इसमे जन्म ले तो जीवे नही, घर मे बसे तो उजड जाय, सुहगिन चुडी पहने तो विधवा होय, कुऑ, बोरिंग आरंभ करे तो पानी न आये, बीमार पडे तो बीमारी ठीक न हो।    यदि भूलवश भी इस योग में कोई कार्य आरंभ हो जाए तब वह सफल नहीं होता या बार-बार विघ्न-बाधाएँ व्यक्ति के समक्ष आती रहती हैं जिससे वह कार्य पूरी तरह से सिद्ध नहीं हो पाता. इसलिए इस योग में कोई भी शुभ कार्य आरंभ नहीं करना चाहिए । यह योग, तिथि और नक्षत्र के संयोग से बनता है, जैसे – प्रतिपदा तिथि के दिन मूल नक्षत्र हो, पंचमी तिथि को भरणी नक्षत्र हो, अष्टमी तिथि के दिन कृतिका नक्षत्र, नवमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र और दशमी तिथि को आश्लेषा नक्षत्र पड़ रहा हो तब ज्वालामुखी योग बनता है.  2020 में बनने वाले अगामी ज्वालामुखी ...

छुआछूत व जातिवाद का जन्म

श्रीराम!! शंका-सनातन धर्म मे जो चार वर्ण, ब्राह्मण 'क्षत्रिय, वैश्य, और शुद्र उनके सभी के जनक ब्रह्मा जी है फिर यह जातिवाद की परम्परा और छुवा छूत का जन्म कैसे हुआ है ?? यह सब वेद शास्त्र मे वर्णित है या फिर इंसान के दिमाग की उपज है "इस सत्यता पर प्रकाश डाले" समाधान- श्रीमद्भागवत गीता मे श्रीकृष्ण जी ने कहा है- चातुवर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश:।  कुछ लोग इसका शाब्दिक अर्थ अल्पबुद्धि से करते है, कि चारो वर्ण की उत्पत्ति गुण कर्म के अनुसार मैने ही की है। उत्पति और निश्चित करना दोनो मे भेद है कि नही? श्रीकृष्ण ने यह नही कहा- चातुवर्ण्यं त्वं निश्चिनु गुणकर्मविभागश: । बल्कि यह कहा है कि- चातुवर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश; । अर्थात- प्रत्येक व्यक्ति को उसके पूर्वजन्मके गुणो व कर्मो के अनुसार जिस वर्ण मे अगले जन्म मे उत्पन्न होने की योग्यता प्राप्त होती है, उसी मे श्रीभगवान उस् अगला जन्म दिया करते है। और इस प्रकार जन्म से ही अर्थात माता पिता के रक्त से ही जाति का निर्धारण किया गया है। * पुरुष सूक्त* मे- *ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्य: कृत:। उरु तदस्य यद्वैश्य...

शिवजी द्वारा रावण को दिया गया काली कवच

यह काली कवच शिवजी ने अपने परम भक्त रावण को बताया था। इसके प्रयोग से शांति, पुष्टि, शत्रु मारण, उच्चाटन, स्तम्भन, वशीकरण आदि अति सुलभ है।  जब शत्रु का भय हो, सजा का डर हो, आर्थिक स्थिति कमजोर हो, किसी बुरी आत्मा का प्रकोप हो, घर मे आशांति हो, व्ययपार मे घाटा हो, मानसिक तनाव हो, गंभीर बिमारी हो, कही मन न लगता हो, किसी के द्वारा जादू टोना, किया कराया गया हो, तो इस काली कवच का पाठ अवश्य करना चाहिये। साधक पवित्र हो, कार्य सिद्धि के अनुसार, आसन दिशा सामाग्री का चुनाव करे। फिर आचमन, संकल्प , गुरु गणेश की वंदना करे। फिर हाथ मे जल लेकर विनियोग करे। विनियोग मंत्र- ॐ अस्य श्री कालिका कवचस्य भैरव ऋषिः गायत्री छन्दःश्री कालिका देवता सः बैरी सन्धि नाशे विनियोगः।  यह मंत्र पढ़कर जमीन पर जल छोड़ दे। भयंकर रुप धारण किये काली का ध्यान, पूजन करे। फिर कवच का पाठ आरंभ करे। कवचम्-  ॐ कालीघोररुपा सर्व कामप्रदा शुभा। सर्व देवस्तुता देवी शत्रु नाशं करोतु मे।। ह्रीं ह्रीं ह्रूं रुपणी चैव ह्रां ह्रीं ह्रीं संगनी यथा। श्रीं ह्रीं क्षौं स्वरुघायि सर्व शत्रु नाशनी।। श्रीं ह्रीं ऐं रुपणी देवीभवबन्ध ...

बाल्मीकि जन्मना शूद्र नही , जन्म से ब्राह्मण थे

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श्रीराम!! वाल्मीकि जन्मना शूद्र नही , जन्मना ब्राह्मण ही थे। अंग्रेज साहित्यकार " बुल्के" वामपंथी विचारक व आर्यसमाजीयो की मिलीभगत से वाल्मीकि को शूद्र बतलाने का षडयंत्र किया गया। जबकि सदा की तरह जन्मना शूद्र होने का कोई प्रमाण ये दे नही पाये। कृति वासीय रामायण मे वाल्मीकी को च्यवन का पुत्र कहा गया है, सन्तान परंपरा मे होनेवाले को भी पुत्र कहा जाता है, इस दृष्टि से च्यवन का भार्गववंश मे जन्म होने से, वाल्मिकि च्यवन के पुत्र कहे गये। उत्तरकाण्ड मे भी वाल्मीकि को भार्गव कहा गया है- " संनिबद्धं हि श्लोकानां चतुर्विंशत्सहस्त्रकम्।    उपाख्यानशतं  चैव  भार्गवेण  तपस्विना।। आदिप्रभृति वै राजन् पञ्चसर्गशतानि च  । काण्डानि षट् कृतानीह सोत्तराणि महात्मनां।।      ( वा. रा. ७|९४|२५,२६) उक्त श्लोको मे वाल्मीकि को ही भार्गव कहा गया है। "भृगोर्भ्राता भार्गवः" भृगु के भ्राता होने से वाल्मीकि भी भार्गव हुए। बुद्धचरित मे वाल्मीकि को च्यवन का पुत्र कहा गया है- " वाल्मीकिरादौ च ससर्ज पद्यंजग्रन्थ यन्न च्यवनो महर्षि:।" ( बुद्धचरित १|४३)   ...

मंत्र सिद्धि के लिये, पुरश्चरण विधि, मंत्र संस्कार विधि, मंत्रशोधन के अपवाद

पुरश्चरण" के पांच अंग होते हैं- १. जप २. हवन ३. तर्पण ४. मार्जन ५. ब्राह्मण भोज किसी भी मन्त्र का पुरश्चरण उस मन्त्र की वर्ण संख्या को एक लाख से गुणित कर जपने पर पूर्ण माना जाता है। "पुरश्चरण" में जप संख्या निर्धारित मन्त्र के अक्षरों की संख्या पर निर्भर करती है। इसमें "ॐ" और "नम:" को नहीं गिना जाता।  अशक्त होने पर कम से कम एक लाख जप का भी पुरश्चरण किया जा सकता है। जप संख्या निश्चित होने के उपरान्त जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन, मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोज कराने से "पुरश्चरण" पूर्ण होता है। आसन न बदले जितने माला जप प्रथम दिन किये हो उतने माला ही प्रतिदिन करे। - हवन के लिए मन्त्र के अन्त में ‘स्वाहा’ बोलें। - तर्पण करते समय मन्त्र के अन्त में ‘तर्पयामी’ बोलें। - मार्जन करते समय मन्त्र के अन्त में ‘मार्जयामि’ अथवा ‘अभिसिन्चयामी’ बोलें । मंत्र संस्कार की दस विधि है- १- जनन- गोरोचन, कुंकुम या चंदन से भोजपत्र पर आत्माभिमुख एक त्रिकोण लिखे। उसके तीनो कोण पर छ:छ: समान रेखाए खीचें। इस प्रकार बने हुए ४९ त्र...

महिलाऐ, यात्रा, शुक्रदोष व गोत्र प्रभाव विचार

"शुक्रदोष विचार" जिस दिशा में 'शुक्र "सम्मुख एवं जिस दिशा में दक्षिण हो ,उन दिशाओं में बालक ,गर्भवती स्त्री तथा नूतन विवाहिता स्त्री को यात्रा नहीं करनी चाहिए ?     यदि बालक यात्रा करे तो विपत्ति पड़ती है। नूतन विवाहिता स्त्री यात्रा करे तो सन्तान को दिक्कत होती है।गर्भवती स्त्री यात्रा करे तो गर्भपात होने का भय होता है ।यदि पिता के घर कन्या आये तथा रजो दर्शन होने लगे तो सम्मुख "शुक्र "का दोष नहीं लगता है । भृगु ,अंगीरा ,वत्स ,वशिष्ठ ,भारद्वाज -गोत्र वालों को सम्मुख "शुक्र "का दोष नहीं लगता है ।     सम्मुख "शुक्र "तीन प्रकार का होता है-१जिस दिशा में शुक्र का उदय हो। २उत्तर दक्षिण गोल -भ्रमण वशात जिस दिशा शुक्र रहे। ३अथवा --कृतिका आदि नक्षत्रों के वश जिस दिशा में हो,उस दिशा में जाने वालों को शुक्र सम्मुख होगा । जिस दिशा मे उदय हो -उस दिशा में यात्रा न करें १-जब गुरु अथवा शुक्र अस्त हो गये हों -अथवा सिंहस्त गुरु हो ,कन्या का रजो दर्शन पिता के घर में होने लगा हो ,अच्छा मुहूर्त न मिले तो --दीपावली के दिन कन्या पति के घर जा सकती है । ...