मंत्रो के ऋण व धन शोधन विधि


पूर्व के लेख मे आपने पढा, अब आगे
अब मंत्र के ऋण- धन शुद्धि की विधि बताते है।ऋणि- धनि चक्र की सहायता से मंत्र के वर्णो के स्वर व व्यञ्जंनो को अलग कर लेवे। फिर अक्षर के उपर वाले कोष्ठक से अंक लेने चाहिये। फिर समस्त स्वर व्यंञ्जन के अंको को जोडकर ८ का भाग देवे। जो शेष बचे वह मंत्र राशि है। इसी रीति से नाम के स्वर व व्यंञ्जन के लिये नीचे लिखे अंक लेकर उनका योग करे एवं ८ का भाग दे। शेष नाम राशि होगी।
  दोनो शेष मे जो राशि अधिक होगी वह ऋणी एवं जो कम होगी वह धनी कहलाती है। यदि मंत्र ऋणी हो तो ही ग्रहण करना चाहिये धनी नही।

उदाहरण : मान लिजिए  कि देवदत्त को ' ऐं नम: भगवति वद वद वाग्देवि स्वाहा' मंत्र लेना है।
 नामाक्षर एवं अंक: देवदत्त  = द्=७ ए्=३ व्=७ अ=१० द्=७ अ=१०त्=८ त्=८अ=१० कुल संख्या का योग ७०है अत: ७०÷८=६
मंत्राक्षर एवं अंक ऐ=४ अँ=८ न्=५ अ=१४ म्=२ अः=९ व्=४ अ=१४ द्=४ अ=१४ व्=४ अ=१४ व्=४ आ=१४ ग्=२ द्=४ ए=६ व्=४ इ=२७ स=८ व्=४ आ=१४ ह्=९ आ=१४  कुल संख्याओ का योग =२२४  इसमे८ आठ का भाग देने पर ८ शेष बचता है। अत: नाम राशि ६ से मंत्रराशि ८ अधिक होने से मंत्र ऋणी है। अतः देवदत्त को यह मंत्र ग्राह्य है।
   ऋणि मंत्र शीघ्रलाभदायी होता है, तथा धनी मंत्र के लिये अधिक जाप करना पड़ता है।

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