मांस भक्षण क्यो

श्रीराम।।
     प्रायश्चित के लिये चान्द्रायण व्रत आदि क्यो करते है? व्रतोपवास क्यो किया जाता है? शाश्त्र अल्पाहार के लिये क्यो कहता है? भोजन की आवश्यकता क्यो है? आईये जानते है, इस बिषय मे  पं़राजेश मिश्र  "कण" के शाश्त्रीय लेख द्ववारा।  भोजन स्वाद के लिये नही, शरीर की रक्षा के लिये है। सुस्वादु भोजन व अत्यधिक भोजन शरीर को रुग्ण करते है। अतः अल्पाहार की बाते शाश्त्रो मे है। वनस्पति मे संवेदना नही इसलिये इसका आहार उचित व पशुओ मे संवेदना है इसलिये उसका आहार अनुचित है , यह तर्क पूरी तरह तो उचित नही। किंतु जीवन रक्षण हेतु अन्न,फल , दूग्धादि की प्रमुखता उपलब्धता के आधार पर है। यदि इनका प्रयोग न किया जाय तो यह अल्प काल मे नष्ट हो जाते है। अन्न का भोजनादि मे उतना ही प्रयोग किया जाना चाहिये, जिससे जीवन बचाया जा सके। न कि पूर्ण रुपेण पेट भरने व स्वाद के लिये।प्रथम तो वैसे फल जो बिना बीज के है, ही भोज्य है, तदुपरांत अन्नादि।  यदि अन्न का अभाव हो, तथा जीवन पर संकट हो,भोजन के बिना प्राण जाने का भय हो, तो मॉसांदि भक्षण मे दोष नही।( मनुस्मृति) । अनेक शाश्त्रो मे जीवन रक्षण हेतु मांस भक्षण को क्षम्य गमाना है। किंतु स्वाद के लिये सर्वथा निषेध है।
   मांस भक्षण का शाब्दिक अर्थ होता है, मां अर्थात मै स अर्थात वह = मै जिसका भक्षण करता हू वह मेरा भक्षण करेगा। सौ वर्ष तक जो अश्वमेघ यज्ञ प्रतिवर्ष करता है, और जिसने कभी आजीवन मांस नही खाया दोनो को एक समान फल मिलते है।अतः परलोक मे उत्तम गति की इच्छावाले व्यक्ति को मांस भक्षण नही करना चाहिये। जो इन चीजो को नही मानते वह स्वसंतोष हेतु स्वाद हेतु तर्क गढ़कर स्व संतुष्ट होकर मांसभक्षण करते है, तो अधोगति को प्राप्त होते है।और ऐसे लोग असुर प्रवृति मे लिप्त रहते है।
प्राणस्यान्नमिदं सर्व प्रजापतिर कल्पयत्।  ( मनु ़ अ ़ ५ श्लो. २८)
ब्रह्मा ने अन्न को प्राण की रक्षा के लिये बनाया है।
 यावन्ति पशुरोमाणि तावत्कृत्वोहमरणम्।
वृथा पशुघ्न प्रापनोति प्रेत्य जन्मनि जन्मनि।
 ( मनु. अ.५ श्लो. ३८)
जिस पशु की हत्या की जाती है, उसके शरीर मे जितने रोम है, उतने जन्म तक वह ,उस पशु के हाथो मारा जाता है।
 अतः मांस भक्षण उचित नही है।
पण्डित राजेश मिश्र "कण"

3 comments:

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    1. धन्यवाद, जय जय सीताराम!

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  2. तथ्यपरक विवेचना, अति सुंदर।

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