रावण द्वारा शिवजी से प्राप्त सर्वसिद्धिप्रद काली कवच
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यह काली कवच शिवजी ने अपने परम भक्त रावण को बताया था। इसके प्रयोग से शांति, पुष्टि, शत्रु मारण, उच्चाटन, स्तम्भन, वशीकरण आदि अति सुलभ है।
जब शत्रु का भय हो, सजा का डर हो, आर्थिक स्थिति कमजोर हो, किसी बुरी आत्मा का प्रकोप हो, घर मे आशांति हो, व्ययपार मे घाटा हो, मानसिक तनाव हो, गंभीर बिमारी हो, कही मन न लगता हो, किसी के द्वारा जादू टोना, किया कराया गया हो, तो इस काली कवच का पाठ अवश्य करना चाहिये।
साधक पवित्र हो, कार्य सिद्धि के अनुसार, आसन दिशा सामाग्री का चुनाव करे। फिर आचमन, संकल्प , गुरु गणेश की वंदना करे। फिर हाथ मे जल लेकर विनियोग करे।
विनियोग मंत्र-
ॐ अस्य श्री कालिका कवचस्य भैरव ऋषिः गायत्री छन्दःश्री कालिका देवता सः बैरी सन्धि नाशे विनियोगः।
यह मंत्र पढ़कर जमीन पर जल छोड़ दे।
भयंकर रुप धारण किये काली का ध्यान, पूजन करे। फिर कवच का पाठ आरंभ करे।
ध्यान
ध्यायेत कालीं महामायां त्रिनेत्रां बहुरूपिणीं।
चतुर्भुजां ललज्जिह्वं पूर्णचन्द्रनिभन्नं।।
नीलोत्पलदलश्या शत्रुसंघविदारिनं।
नरमुण्डं तथा खड्गं कमलं च वरं तथा।।
निर्भयं रक्तवदनां दंस्त्रालीघोररूपिणीं।
सत्तहासन्नां देवी सर्वदा च दिगम्बरीम्।।
शवासनस्थितां कालीं मुंडमालाविभूषितम्।
इति ध्यात्वा महाकालिं ततस्तु कवचं पठेत्।।
कवचम्-
ॐ कालीघोररुपा सर्व कामप्रदा शुभा।
सर्व देवस्तुता देवी शत्रु नाशं करोतु मे।।
ह्रीं ह्रीं ह्रूं रुपणी चैव ह्रां ह्रीं ह्रीं संगनी यथा।
श्रीं ह्रीं क्षौं स्वरुघायि सर्व शत्रु नाशनी।।
श्रीं ह्रीं ऐं रुपणी देवीभवबन्ध विमोचनी।
यथा शुम्भो हतो दैत्यो निशुम्भश्च महासुराः।।
बैरि नाशाय बन्दे तां कालिकां शंकर प्रियाम।
ब्राह्मी शैवी वैष्णवी न वाराही नारसिंहिका।।
कौमाज्येन्द्री च चामुण्डा खादन्तु मम विद्विषः।
सुरेश्वरि घोरु रुपा चण्ड मुण्ड विनाशिनी ।।
मुण्डमाला वृतांगी च सर्वतः पातु मां सदा।
ह्रीं ह्रीं ह्रीं कालिके घोरे द्रष्ट्वैरुधिरप्रिये, रुधिरा।।
पूर्णचक्रे चरुविरेण बृत्तस्तनि, मम शत्रुन खादय खादय, हिंसय हिंसय, मारय मारय, भिंधि भिंधि, छिन्धि छिन्धि,उच्चाट्य, उच्चाट्य द्रावय द्रावय, शोषय शोषय, स्वाहा।यातुधानान चामुण्डे ह्रीं ह्रीं वां काली कार्ये सर्व शत्रुन समर्यप्यामि स्वाहा। ॐ जय विजय किरि किरि कटि कटि मर्दय मर्दय मोहय मोहय हर हर मम रिपून ध्वंसय ध्वंसय भक्षय भक्षय त्रोटय त्रोटय, यातुधानान चामुण्डे सर्वे सनान् राज्ञो राजपुरुषान् राजश्रियं मे देहि पूतन धान्य जवक्ष जवक्ष क्षां क्षों क्षें क्षौं क्षूं स्वाहा।
यह दिव्य काली कवच रावण द्वारा शिवजी से प्राप्त किया गया है। इस कवच के भक्तिभाव से नित्य पाठ करने से शत्रुओ का नाश हो जाता है। इस कवच का १००० पाठ , १०० हवन तथा १० तर्पण १ मार्जन व एक ब्राहम्ण को भोजन कराने से सिद्ध हो जाता है।
फिर इसके विविध प्रयोग भिन्न भिन्न कार्यो की सफलता के लिये करना चाहिये। सिद्धि के उपरांत इसके प्रयोग की विधि दुरुपयोग को रोकने के लिये नही दी जा रही है।
सामान्य शांति के लिये गुरु गणेश की वंदना, माता काली का ध्यान व शोडषोपचार य पंचोपंचार, य मानसिक,पूजन करके मात्र पाठ करने से ही चमत्कारिक लाभ मिलता है। यह मेरे द्वारा परीक्षित है।
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Main v parichit hun Kali kavch ke prabhaw se
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