अपने नाम व शहर ग्राम के नाम से, निवास योग्य स्थान, भूमि परीक्षा, आय व्यय, द्वार दिशा निर्देश
ज्योतिष्य शाश्त्र मे वास्तु विद्या द्वारा रहने के स्थान, गृह निर्माण की विधि व स्थान के फल का निर्णय करते है।
गृहे यस्य प्ररोहन्ति स गृही न प्ररोहति||
पीपल कदम्ब केला बीजू नींबू ये जिस घर मे होते है, उसमे रहनेवाले की वंशवृद्धि नही होती| घर मे कॉटे वाले वृक्ष शत्रुका भय दूधवाले वृक्ष धन का नाश और फलवाले वृक्ष संतान का नाश करते है
अशोक, शमी, मौलसिरी, चम्पा, अर्जुन , कटहल, केतकी, चमेली, नारियल, महुआ, वट, सेमल, बकुल , शाल आदि वृक्ष गृह व गौशाला के समीप शुभ है|
यदि निम्न क्रम से वृक्ष लगाये जाय तो अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे- पूर्व मे बरगद, दक्षिण मे गूलर, दक्षिण व नैऋत्य मे जामुन कदम्ब, पश्चिम मे पीपल, वायव्य मे बेल, आग्नेय मे अनार, उत्तर मे पाकड़, ईशान मे अॉवला, ईशान पूर्व मे कटहल व आम|
उपरोक्तदिशा मे परिवर्तन से हानिकर है, वृक्षरोपण करते समय निम्न मंत्र पढे़- ॐ वसुधेति शीतेतिपुण्यदेति धरेति च| नमस्ते शुभगे देवि द्रुमोऽयं त्वयि रोप्यते||
शुभ मुहुर्त मे लगाये|| शंका समाधान हेतु टिप्पणी मे संपर्क करे।
- नारद पुराण व अग्नि पुराण
जय श्रीराम||
हम जिस शहर/ नगर य ग्राम मे रहते है, वह स्थान हमारे लिये लाभप्रद है य नही। किस प्रकार का मकान उत्तम होता है ? किस दिशा का द्वार किसके लिये उत्तम है ? भूमि की परीक्षा कैसे करे ? घर के समीप कौन सा वृक्ष क्या फल देता है? आदि प्रश्नो के उत्तर इस लेख मे दिये जा रहे है।
सर्व प्रथम जिस शहर य ग्राम मे निवास करते है य करना चाहते है, वह आय देने वाला है, य व्यय कराने वाला है। यह जानने के लिये संलग्न चित्र की सहायता लेते है।
चित्र मे अपने नाम का प्रथम अक्षर किस वर्ग मे है, यह देखे तथा जिस शहर य ग्राम मे रहना चाहते है उस शहर य ग्राम के नाम का प्रथम अक्षर किस वर्ग मे है यह देखे। जिस ग्राम य दिशा मे घर बनाना हो वह साध्य तथा जो बनवाने य रहने वाला है वह साधक कहा जाता है।
साध्य अंक के बाए साधक अंक लिखकर 8 से भाग देने पर शेष लाभ कहा जाता है तथा साधक अंक के बाए साध्य अंक लिखकर 8 से भाग देने पर शेष व्यय कहलाता है। यदि व्यय से लाभ अधिक हो तो वहॉ रहना लाभप्रद होता है, यदि लाभ से व्यय अधिक हो तो हानि होती है।
उदाहरण: मान लिजिए राजेश को बरईपुर ग्राम मे रहना है तो, साधक राजेश के प्रथम नाम का अक्षर र यवर्ग मे पड़ता है जिसकी संख्या 7 है, तथा साध्य बरईपुर का प्रथम अक्षर ब पवर्ग मे पड़ता है, जो कि 6 अंक सूचित करता है।( देखिये संलग्न चित्र )
अतः सूत्रानुसार :
साधक साध्य÷ 8 = शेष लाभ
76÷8= 4 शेष
साध्य साधक÷8=शेष व्यय
67÷8=3 शेष
यहॉ व्यय से लाभ अधिक होने से यह स्थान लाभदायक है।
नोट- यदि भाग देने पर शून्य आये तो उसे 8 ही समझे।
इस तालिका के अनुसार अपने वर्ग से पॉचवा वर्ग बैरी होता है, अतः इसमे निवास उपयुक्त नही होता।
दूसरी विधि:
~~~~~~ अपनी नाम राशि से नगर य ग्राम की राशि दूसरी, पॉचवी, नवी, दसवी, य ग्यारहवी हो तो वह नगर / ग्राम निवास के लिये शुभ होती है। तथा यदि एक, य सातवी हो तो शत्रुता होती है।तीसरी य छठी हो तो हानि होती है। चौथी आठवी य बारहवी हो तो रोग होता है।
अब जिस भूमि पर मकान का निर्माण करना है, उसके लिये भूमि की परीक्षा की विधि कहते है। सांयकाल गृह स्वामी के हाथ से, एक हाथ लम्बा एक हाथ चौडा तथा एक हाथ गहरा गड्ढा खोदकर पानी से भरवा दे। पुनः प्रातःकाल उठकर देखें, गड्ढे मे पानी दिखाई दे तो वृद्धिप्रद, केवल कीचड़ बचे तो मध्यम, तथा यदि दरार दिखाई दे तो अशुभ समझना चाहिये।
मकान की लम्बाई दक्षिण से उत्तर शुभ होती है।
किस राशि के लिये किस दिशा का द्वार शुभ होता है, अब उसे कहते है।
कर्क, वृश्चिक, मीन-- पूर्व दिशा मे।
कन्या, मकर, मिथुन -- दक्षिण दिशा मे।
तुला, कुम्भ, वृष -- पश्चिम दिशा मे।
मेष, सिंह, धनु -- उत्तर दिशा मे।
अब घर के समीप स्थित वृक्ष का वास्तु जनित प्रभाव बताते है।
घर के समीपस्थ वृक्ष का वास्तुजनित प्रभाव- अश्वत्थं च कदम्बं च कदलीबीजपूरकम्|गृहे यस्य प्ररोहन्ति स गृही न प्ररोहति||
पीपल कदम्ब केला बीजू नींबू ये जिस घर मे होते है, उसमे रहनेवाले की वंशवृद्धि नही होती| घर मे कॉटे वाले वृक्ष शत्रुका भय दूधवाले वृक्ष धन का नाश और फलवाले वृक्ष संतान का नाश करते है
अशोक, शमी, मौलसिरी, चम्पा, अर्जुन , कटहल, केतकी, चमेली, नारियल, महुआ, वट, सेमल, बकुल , शाल आदि वृक्ष गृह व गौशाला के समीप शुभ है|
यदि निम्न क्रम से वृक्ष लगाये जाय तो अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे- पूर्व मे बरगद, दक्षिण मे गूलर, दक्षिण व नैऋत्य मे जामुन कदम्ब, पश्चिम मे पीपल, वायव्य मे बेल, आग्नेय मे अनार, उत्तर मे पाकड़, ईशान मे अॉवला, ईशान पूर्व मे कटहल व आम|
उपरोक्तदिशा मे परिवर्तन से हानिकर है, वृक्षरोपण करते समय निम्न मंत्र पढे़- ॐ वसुधेति शीतेतिपुण्यदेति धरेति च| नमस्ते शुभगे देवि द्रुमोऽयं त्वयि रोप्यते||
शुभ मुहुर्त मे लगाये|| शंका समाधान हेतु टिप्पणी मे संपर्क करे।
- नारद पुराण व अग्नि पुराण
जय श्रीराम||
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