काली रहस्य

काली माता के रुप का अर्थ- भगवती के मुख पर मुस्कान बनी रहती है, जिसका अर्थ है, कि वे नित्यानन्द स्वरुपा है।देवी के होठो से रक्त की धारा बहने का अर्थ है, देवी शुद्ध सत्वात्मिका है, तमोगुण व रजोगुण को निकाल रही है।
देवी के बाहर निकले दॉत जिससे जीभ को दबाए है, का भावार्थ रजोगुण तमोगुण रुपी जीभ को बाहर कर सतोगुण रुपी उज्जवल दॉतो से दबॉये है।
भगवती के स्तन तीनो लोको को आहार देकर पालन करने का प्रतीक है, तथा अपने भक्तो को मोक्षरुपी दुग्धपान कराने का प्रतीक है।
मुण्डमाला के पचास मुण्ड पचास मातृकावर्णो को धारण करने के कारण शब्दब्रह्म स्वरुपा है। उस शब्द गुण से रजोगुण का टपकना अर्थात सृष्टि का उत्पन्न होना ही, रक्तस्राव है
भगवती मायारुपी आवरण से आच्छादित नही है, माया उन्हे अपनी लपेट मे ले नही पाती, यह उनके दिग्म्बरा होने का भावार्थ है।
भगवती शवो के हाथ की करधनी पहने है- शव की भुजाए जीव के कर्म प्रधान हो ने का प्रतीक है, वे भुजाऐं देवी के गुप्तांग को ढॉके हुए है अर्थात नवीन कल्पारंभ होने तक देवी द्वारा सृष्टिकार्य स्थगित रहता है। कल्पान्त मे सभी जीव कर्म भोग पूर्णकर स्थूल शरीर त्यागकर सूक्ष्म शरीर के रुप मे कल्पारंभ पर्यंत जबतक कि उनका मोक्ष नही हो जाता, भगवती के कारण शरीर मे संलग्न रहते है।
देवी के बाए हाथ मे कृपाण वाममार्ग अर्थात शिवजी (शिवजी का एक नाम वामदेव) के बताए मार्ग पर चलने वाले निष्काम भक्तो के अज्ञान को नष्ट कर, उन्हे मुक्ति प्रदान करती है।
देवी के नीचे वाले बॉए हाथ मे कटा सिर वाममार्ग की निम्नतम मानीजाने वाली क्रियाओ मेभी रजोगुण रहित तत्वज्ञान केआधार मस्तक (शुद्धज्ञान) को धारण करने का प्रतीक है।
कालीरुप जिस प्रकार लाल पीला सफेद सभी रंग काले रंग मे समाहित हो जाते है उसी प्रकार सभी जीवो का लय काली मे ही होता है,
भगवती कानो मे बालको के शव पहनी है जो बाल स्वभाव निर्विकार भक्तो की   ओर कान लगाऐ रहती है अर्थात उनकू प्रत्येक कामना ध्यान से सुनती है,इसका प्रतीक है।

काली गायत्री मंत्र- कालिकायै विद्महे, श्मशानवासिन्ये धीमही, तन्नोदेवी प्रचोदयात्।
काली अर्थात काल ( शिव ) की पत्नी। माता काली के रुप-भेद अनेक है, किंतु  जिनमे महाकाली, भद्रकाली, श्मशान काली, दक्षिणा काली, चिन्तामणि काली, स्पर्शमणि काली, संततिप्रदा काली, सिद्धि काली, कामकला काली, हंस काली, गुह्य काली, प्रमुख ११ भेद है। काली के ये भेद वस्तुतः काम्य भेद है। येअनेकानेक भेद आभासी है। मूलतः सभी एक ही शक्ति के विविध रुप है। जो देवी के भक्तगण अपनी कामना के अनुरुप भासते है।और भगवती आद्यकाली, जो अजन्मा तथा निराकार है, अपने भक्तो पर कृपालु होकर उनके हृदयाकाश पर अभिलाषित रुप मे साकार हो जाती है। और इस प्रकार देवी भगवती निराकार होते हुए भी साकार है।

जो साधक सभी प्रकार की सिद्धि देनेवाली माता काली का ध्यान व मंत्रजप करता है, वह तीनो लोको को वश मे कर सकता है, इस संसार मे उसके लिये दुर्लभ कुछ नही। भगवती काली के मंत्र साधारण विधियो व अल्पश्रम से ही सिद्ध हो जाते है। और साधक को मनोवांछित फल प्रदान करते है।
   किसी भी मंत्र की सिद्धि के लिये गुरु से दीक्षित होना अनिवार्य है। गुरु की कृपा आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन के बिना कोई भी मंत्र सिद्ध नही हो पाता।

सर्व सिद्धिदायक काली मंत्र व विधि

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