राम नाम महिमा
नाम स्मरण महिमा
श्री राम जय राम जय जय राम' - यह सात शब्दों वाला तारक मंत्र है। साधारण से दिखने वाले इस मंत्र में जो शक्ति छिपी हुई है, वह अनुभव का विषय है। इसे कोई भी, कहीं भी, कभी भी कर सकता है। फल बराबर मिलता है...... ।
राम नाम सब कोई कहै, ठग ठाकुर अरु चौर|
तारे ध्रुव प्रहलाद को वहै नाम कछु और||
नाम का उच्चारण मात्र करने से, नाम की पवित्रता के कारण फल तो अवश्य ही मिलता है किन्तु बहुत अधिक नही| देवी य देवता का नाम लेते ही मानस पटल पर उस देवी य देवता का रुप दिखायी पडना, उनके गुण कर्मो का स्मरण होना चाहिये, भगवान का सर्वोतमतत्व और अपना अत्यंत क्षुद्रत्व ध्यान मे आना चाहिये, ईश्वर की अपार दया प्रेम से हृदय गद्गद होकर उनके स्वरुप मे मिलने का प्रयत्न होना चाहिये| ऐसे ही नाम स्मरण की महिमा गायी जाती है|
राम नाम सब कोई कहै, दशरित कहे न कोय|
एकबार दश रित कहे, कोटि यज्ञ फल होय||
प्रयुक्त दोहे मे दशरित जिन्हे कहा गया है, वे ही दश नामापराध है, जिनसे नाम स्मरण " रित" ( रिक्त) होना चाहिये | ये नामापराध है- १. निन्दा २. आसुरी प्रकृतिवाले को नाम महिमा बतलाना ३. हरि हर मे भेद दृष्टि रखना ४. वेदो पर विश्वाश न करना ५. शाश्त्रो पर अविश्वाश ६. गुरुपर अविश्वाश ७. नाम महिमा को असत जानना ८. नाम के भरोसे निषिद्ध कर्म करना ९. नाम के भरोसे विहित कर्म न करना १०. भगवन्न नाम के साथ अन्य साधनो की तुलना करना |
इन दश का परहेज रखा जाय तो नाम जप से शीघ्र परम सिद्घि प्राप्त होती है, इसमे तनिक भी संदेह नही है|
श्री राम जय राम जय जय राम' - यह सात शब्दों वाला तारक मंत्र है। साधारण से दिखने वाले इस मंत्र में जो शक्ति छिपी हुई है, वह अनुभव का विषय है। इसे कोई भी, कहीं भी, कभी भी कर सकता है। फल बराबर मिलता है...... ।
राम नाम सब कोई कहै, ठग ठाकुर अरु चौर|
तारे ध्रुव प्रहलाद को वहै नाम कछु और||
नाम का उच्चारण मात्र करने से, नाम की पवित्रता के कारण फल तो अवश्य ही मिलता है किन्तु बहुत अधिक नही| देवी य देवता का नाम लेते ही मानस पटल पर उस देवी य देवता का रुप दिखायी पडना, उनके गुण कर्मो का स्मरण होना चाहिये, भगवान का सर्वोतमतत्व और अपना अत्यंत क्षुद्रत्व ध्यान मे आना चाहिये, ईश्वर की अपार दया प्रेम से हृदय गद्गद होकर उनके स्वरुप मे मिलने का प्रयत्न होना चाहिये| ऐसे ही नाम स्मरण की महिमा गायी जाती है|
राम नाम सब कोई कहै, दशरित कहे न कोय|
एकबार दश रित कहे, कोटि यज्ञ फल होय||
प्रयुक्त दोहे मे दशरित जिन्हे कहा गया है, वे ही दश नामापराध है, जिनसे नाम स्मरण " रित" ( रिक्त) होना चाहिये | ये नामापराध है- १. निन्दा २. आसुरी प्रकृतिवाले को नाम महिमा बतलाना ३. हरि हर मे भेद दृष्टि रखना ४. वेदो पर विश्वाश न करना ५. शाश्त्रो पर अविश्वाश ६. गुरुपर अविश्वाश ७. नाम महिमा को असत जानना ८. नाम के भरोसे निषिद्ध कर्म करना ९. नाम के भरोसे विहित कर्म न करना १०. भगवन्न नाम के साथ अन्य साधनो की तुलना करना |
इन दश का परहेज रखा जाय तो नाम जप से शीघ्र परम सिद्घि प्राप्त होती है, इसमे तनिक भी संदेह नही है|
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