राहु के चमत्कारी सिद्ध उपाय


 राहु-केतु की कथा: -पुराणों और ज्योतिष शास्त्र में- 
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार महर्षि कश्यप की पत्नी दनु से विप्रचित्ति नामक पुत्र हुआ जिसका विवाह हिरण्यकशिपु की बहन सिंहिका से हुआ | राहु का जन्म सिंहिका के गर्भ से हुआ इसीलिए राहू का एक नाम सिंहिकेय भी है | जब भगवान विष्णु की प्रेरणा से देव दानवों ने क्षीर सागर का मंथन किया तो उसमें से अन्य रत्नों के अतिरिक्त अमृत की प्राप्ति हुई। भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके देवों व दैतों को मोह लिया और अमृत बाँटने का कार्य स्वयम ले लिया और पहले देवताओं को अमृत पान करने वाले अर्भ कर दिया |राहु को संदेह हो गया और वह भगवान का वेश धारण करके सूर्य देव और चन्द्र देव के निकट बैठ गया | विष्णुजी जैसे ही राहु को अमृत पान प्रदान करने वाले सूर्य और चन्द्र ने जो राहु को पहचान लिया था विष्णुजी को उनके बारे में सूचित कर दिया था। भगवान विष्णु ने उसी समय सुदर्शन चक्र द्वारा राहु के मस्तक को धड से अलग कर दिया | पर इस से पहले अमृत की कुछ बूंदें राहु के गले में गयी थी जैसे

राहु व केतु को ग्रहत्व की प्राप्ति-

राहु और केतु सूर्य व चन्द्र से प्रतिशोध लेने के उद्देश्य से ग्रसित करने के लिए उनके पीछे दोडे | भयभीत हो कर चंद्रमा शिव की शरण में चला गया | आशुतोष ने चन्द्र को अपने मस्तक पर धारण कर लिया राहु ने भगवान शंकर की स्तुति की और अपना ग्रास चन्द्र देने की प्रार्थना की | शिव ने प्रसन्न होकर राहु और केतु दोनों को नवग्रह मंडल में स्थान दिया और सभी लोकों में पूजित होने का वर दिया। 

राहु का स्वरूप और प्रकृति-

मत्स्य पुराण के अनुसार राहु विकराल मुख का, नील वर्ण, हाथ में तलवार, ढाल, त्रिशूल व वर मुद्रा धारण किया है | इसकी वात प्रकृति है। इसे दूसरों के अभिप्राय को जान लेने वाला तीव्र बुद्धि का कहा गया है। सर्वमान्य ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार राहु अशुभ, क्रूर, मलिनरूप वाला, अंत्यज जाति का, दीर्घ सूत्री, नील वर्ण और तीव्र बुद्धि का माना गया है। |

राहु का रथ एवं गति-

पुराणों के अनुसार राहु का रथ तमोमय है जिसको काले रंग के आठवार खींचते हैं | इसकी गति सदैव वक्री रहती है | एक राशि को यह अठारह मास में भोग करता है | अमावस्या पृथ्वी और सूर्य के मध्य राहु रुपी छाया आने पर सूर्य का बिम्ब होता है। अदृश्य हो जाता है जिसे सूर्य ग्रहण कहते हैं |

राहू का कारकत्व- प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रंथोंके अनुसार राहु सांप, कीट, कीट, विष, जूआ, कुतर्क, अपवित्रता असत्य वादन, नैऋत्य दिशा, सोये हुए प्राणी, वृद्ध, दुर्गा की उपासना, ढीठ पन्ना, चोरी, आकस्मिक प्राकृतिक घटनाएं, मैया पान , मांसाहार, वैद्यक, हड्डी, गुप्तचर, गोमेद, रांगा, मछली और दूध पदार्थों का कारक है

राहू से उत्पन्न रोग - जनम कुंडली में राहु पाप ग्रहों से युत या दृष्टि हो, छटे -आठवें -बारहवें भाव में स्थित हो तो चर्म रोग, शूल, अपस्मार, चेचक वात शूल, दुर्घटना, कुष्ठ, सर्प दंश, हृदय रोग, पैर में चोट और अरुचि इत्यादि रोग होते हैं |

फल देने का समय—राहु अपना शुभाशुभ फल 42 से 48 वर्ष कि आयु में , अपनी दशाओं व गोचर में प्रदान करता है |वृद्धावस्था पर भी इस का अधिकार कहा गया है |

राहु दोष के लक्षण और इससे मुक्ति पाने के सरल उपाय-यदि आपकी जन्मकुंडली में राहु दोष है तो आपको मानसिक तनाव, आर्थिक नुकसान, स्वयं को ले कर ग़लतफहमी, आपसी तालमेल में कमी, बात बात पर आपा खोना, वाणी का कठोर होना और अपशब्द बोलना साथ ही अगर आपकी कुंडली में राहु की स्थिति अशुभ हौ तो आपके हाथ के नाखून अपने आप टूटने लगते हैं।

कई बार किसी समय-विशेष में कोई ग्रह अशुभ फल देता है, ऐसे में उसकी शांति आवश्यक होती है। ग्रहशांति के लिए कुछ शास्त्रीय उपाय प्रस्तुत हैं। इनमें से किसी एक को भी करने से अशुभ फलों में कमी आती है और शुभ फलों में वृद्धि होती है।

राहु मंत्र-

ह्रीं अर्धकायं महावीर्य चंद्रादित्य विमर्दनम्।

सिंहिका गर्भ संभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्।

ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:।

ॐ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहु प्रचोदयात्।

ग्रहों के मंत्र की जप संख्या, द्रव्य दान की सूची आदि सभी जानकारी एकसाथ दी जा रही है। मंत्र जप स्वयं करें या किसी कर्मनिष्ठ ब्राह्मण से कराएं।दान द्रव्य सूची में दिए पदार्थों को दान करने के अतिरिक्त उसमें लिखे रत्न-उपरत्न के अभाव में जड़ी को विधिवत् स्वयं धारण करें, शांति होगी ,

राहु के लिए :समय रात्रिकालभैरव पूजन या शिव पूजन करें। काल भैरव अष्टक का पाठ करें।

राहु मूल मंत्र का जप रात्रि में 18,000 बार 40 दिन में करें।मंत्र : ‘ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:’।

दान-द्रव्य :गोमेद, सोना, सीसा, तिल, सरसों का तेल, नीला कपड़ा, काला फूल, तलवार, कंबल, घोड़ा, सूप।शनिवार का व्रत करना चाहिए। भैरव, शिव या चंडी की पूजा करें। 8 मुखी रुद्राक्ष धारण करे गोमेद एक रत्न है जिसे राहु ग्रह से समबन्धित किसी भी विषय के लिए धारण करने हेतु ज्योतिषशास्त्री परामर्श देते हैं. गोमेद न सिर्फ राहु ग्रह की बाधाओं को दूर करता है बल्कि, गोमेद कई प्रकार की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से भी निजातदिलाता है | गोमेद एक ऐसा रत्न है जो नज़र की बाधाओं, भूत-प्रेत एवं जादू-टोने से भी सुरक्षा प्रदान करता है. गोमेद में इतनी सारी खूबियां हैं जिनसे व्यक्ति के जीवन की बहुत सीमुश्किलें दूर हो सकती हैं. लेकिन इसे किसी अच्छे ज्योतिषी से सलाह लेकर धारण करना चाहिए.

गोमेद की पहचान—असली गोमेद को उसके रंग एवं चमक से पहचाना जा सकता है. गोमूत्र से मिलता जुलता रंग होने के कारण इसे गोमेद कहा जाता है. यह एक चमकीला पत्थर होता है जो दिखने में शहद के रंग के समान भूरा होता है. गोमेद धुएं के सामन एवं काले रंग का भी होता है. गोमेद के ऊपर जब प्रकाश डालाजाता है जो उससे जो रोशनी पार करके निकली है उसका रंग गोमूत्र जैसा दिखता है. असली गोमेद कीपहचान इस तरह आसानी से की जा सकती है. शुद्ध गोमेद चिकना, चमकीला एवं सुन्दर दिखता है.

गोमेद किसे धारण करण चाहिए—कुण्डली में राहु जिस भाव में हो उस भाव के शुभ फल को बढ़ाने के लिए राहु रत्न गोमेद पहनना चाहिए । ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राहु तीसरे, छठे भाव में हो तो गोमेद पहनना चाहिए. मेष लग्न की कुण्डली में यदि राहु नवें घर मेंहै तो गोमेद पहनने से भाग्य बलवान होता है. राहु यदि दशम अथवा एकादश भाव में है तब भी गोमेदधारण करना उत्तम होता है. लग्न में राहु होने पर स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों को कम करने हेतु गोमद पहनना फायदेमंद होता है. राजनीति एवं न्याय विभाग से जुड़े लोगों की कुण्डली में राहु मजबूत होने पर सफलता तेजी से मिलती है. राहु को बलवान बनाने के लिए इन्हें गोमेद रत्न धारण करना चाहिए.गोमेद धारण करने का समय कोई भी रत्न तब अधिक शुभ फल देता है जब वह शुभ समय में धारण किया जाता है. गोमेद रत्न धारण करने का शुभ और उचित समय तब माना जाता है जब राहु की महादशा अथवा दशा चल रही हो.

गोमेद कौन नहीं पहनें - रत्न विज्ञान के अनुसार जिस व्यक्ति की जन्म कुण्डली में राहु अष्टम या द्वादश भाव में हो तो गोमेद धारण करना उपयुक्त नहीं होता है.

गोमेद के उपरत्न -गोमेद रत्न जो धारण नहीं कर सकते वह चाहें तो इसका उपरत्न पहन सकते हैं. गोमेद के उपरत्न हैं अकीक, तुरसा एवं साफी । 

 गोमेद रत्न धारण करने से पहले यह जांच करलें कि रत्न में दोष नहीं हो. दोषपूर्ण रत्न धारण करने से फायदे की बजाय नुकसान हो सकता है । जिस गोमेद में लाल या काले धब्बे हों उसे पहनने से दुर्घटना की आशांका रहती है. गोमेद यदि चमकहीन हो तो धारण करने वाले व्यक्ति के सम्मान में कमी आती है. जिस गोमेद में अनेक रंगों की परछाई हों उसे पहनने से धन की हानि होती है. ऐसे गोमेद को नहींपहनना चाहिए।

गोमेद से लाभ -गोमेद पहनने से राहु का अशुभ प्रभाव दूर होता है। कालसर्प दोष के कष्टों से भी बचाव होता है,जिन लोगों की सेहत अक्सर खराब रहती है उन्हें भी गोमेद पहनने से स्वास्थ्य लाभ मिलता है। पाचन सम्बन्धी रोग, त्वचा रोग, क्षय रोग तथा कफ-पित्त को भी यह संतुलित रखता है। आयुर्वेद के अनुसार गोमेद के भस्म का सेवन करने से बल एवं बुद्धि बढ़ती है।पेट की खराबी में गोमद का भस्म काफी फायदेमंद होता है।राहु तीव्र फल देने वाला ग्रह है। गोमेद पहनने से राहु से मिलने वाले शुभ फलों में तेजी आती है। व्यक्ति को मान-सम्मान एवं धन आदि प्राप्त होता है।

राहु-केतु के उपाय-अधिकांश व्यक्ति राहु-केतु से पीड़ित रहते हैं। ऐसे जातकों के लिए शिव की पूजा करना सर्वथा लाभकारी है। इसके साथ ही छोटे-छोटे उपाय करें, तो राहु-केतु निस्तेज होंगे शिव भक्त बड़े उत्साह से हर साल श्रावण मास की प्रतीक्षा करते हैं। सत्यम् शिवम् और सुंदरम् के प्रतीक भगवान शिव सभी जीवों के लिए परम कल्याणकारी माने जाते हैं। इनके शिव नाम में पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ है। पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन का महीना भगवान शंकर को अतिप्रिय है। ज्योतिष शास्त्र में भी इस माह का महत्व बताया गया है और साथ ही यह भी कहा गया है कि अगर भक्त अपने सारे दु:खों से छूटना चाहते हैं, तो वह ग्रह जो उनकी कुंडली में अशुभ भाव में बैठे हुए हैं, जिस तरह शनि को प्रसन्न करने के लिए शिव जी की पूजा करना शुभ कहा गया है, उसी तरह सावन माह में इन ग्रहों के लिए विशेष पूजा लाभकारी बताई जाती है। अगर आपके ऊपर शनि-राहु या अशुभ ग्रहों की दशा चल रही है, तो आप पूरे माह शिवलिंग पर प्रतिदिन काले तिल चढ़ाएं तथा तामसिक भोजन का त्याग करें। जन्मकुंडली के अनुसार जो ग्रह आपके लिए सकारात्मक हो, इस माह में उस ग्रह का रत्न धारण कर उसे मजबूत करने से भी न चूकें। अगर आपकी कुंडली में राहु और केतु अशुभ स्थान पर बैठे हों, तो श्रावण मास में इनका भी उपाय कर लेना श्रेयस्कर रहता है। दरअसल राहु और केतु कुंडली में कालसर्प योग बनाते हैं। यह ऐसा योग है, जो आपके बनते हुए कामों में बाधा डाल देता है। अगर राहु और केतु के बीच में सारे ग्रह आ जाएं या फिर राहु सूर्य अथवा चंद्र के साथ आ जाए, तो जातक की कुंडली में बाधा दिखाई देती है। कुंडली में इनकी महादशा और अंतर्दशा भी होतीहै। इसलिए श्रावण मास में शिव की पूजा से इन्हें निस्तेज करना सबसे प्रमुख उपाय माना जाता है। अगर आप इस माह में बुधवार या शनिवार के दिन रुद्राभिषेक करते हैं, तो आपको राह-केतु की अशुभ छाया से मुक्ति मिल सकती है। इसके अलावा नदी में चांदी के नाग-नागिन प्रवाहित करने से कालसर्प योग नाम का दोष भी मिटता है। यदि आप श्रावण मास में आने वाली नाग पंचमी के दिन शिव मंदिर में शिवलिंग पर तांबे के नाग की स्थापना करवाएं, तो यह लाभप्रद होगा। इससे कालसर्प बाधा  दूर होता है। आपकी कुंडली में राहु पांचवें घर में हो, तो ऐसे जातक को संतान सुख बाधित होता है। इसके लिए सावन में व्रत रखें और नाग-नागिन को कद्दू (कोहडा़, सीताफल ) में रखकर बहाएं। आपको शीघ्र इस दोष से मुक्ति मिल जाएगी।यदि आप केतु से परेशान हैं, तो शिव के साथ भैरव की पूजा करें तथा शनिवार को कुत्तों को जलेबी आदि मीठी चीजें खिलाएं। असल में भैरव की सवारी कुत्ता मानी गई है। इसके साथ ही चितकबरे वस्त्र दान करें। केतु की पीड़ा शांत होगी। शिव मंदिर में ध्वज लगाने से भी केतु शांत होता है। केतु को ध्वज का प्रतीक भी माना जाता हैै ।


राहु की महादशा में अन्य ग्रह की अन्तर्दशा आने पर क्या उपाय करने चाहिए—

“कुंडली में राहु की स्तिथि ये बताती है की राहु अपनी महादशा मैं कैसा फल देगा। परन्तु राहु कितना भी शुभ क्यों न हो ये तो पक्का है की कुछ तो अशुभ करेगा ही। राहु को सर्प का मुंह कहा गया ये और ये कैसे हो सकता है की सर्प का मुंह कुछ भी बुरा न करे। नवग्रहों में यह अकेला ही ऐसा ग्रह है जो सबसे कम समय में किसी व्यक्ति को करोड़पति, अरबपति या फिर कंगाल भी बना सकता है।”

राहु महादशा उपाय—महादशा अन्तर्दशा उपाय—

राहू की महादशा में, सूर्य का अंतर

भगवन सूर्य की पूजा करें तथा सुभाह जल्दी उनको जल अर्पित करें

हरिवंश पुराण का पाठ या श्रवण करते रहें।

चाक्षुषोपनिषद् का पाठ करें।

सूअर को मसूर की दाल खिलाएं।

राहू की महादशा में, चन्द्र का अंतर

माता की सेवा करें—

हर सोमवार को भगवन शिव का शुद्ध दूध से अभिषेक करें

चांदी की प्रतिमा या कोई अन्य वस्तु मौसी, बुआ या बड़ी बहन को भेंट करें

राहू की महादशा में, मंगल का अंतर

गाय का दान करें राहु मंत्र दिन में कम से कम ३ माला करें

राहू की महादशा में बुध का अंतर

दान करें उड़द दाल, काले तिल, नीले कपडे, गरम कम्बल सफाई कर्मचारी अथवा नीची जाती को, चीटी को शुगर

भगवन गणेश को शतनाम सहित दुर्वांकुर चडाते रहे

पक्षी को हरी मूंग खिलाएं

हाथी को हरे पत्ते, नारियल गोले या गुड़ खिलाएं।

कोढ़ी, रोगी और अपंग को खाना खिलाएं।

राहू की महादशा में बृहस्पति, गुरु का अंतर

स्वर्ण से बनी भगवन शिव की मूर्ति की पूजा करें

किसी अपाहिज छात्र की पढा़यी या इलाज़ में सहायता करें

शिव मंदिर में नित्य झाड़ू लगायें

पीले रंग के फूल से शिव पूजन करें

शैक्षणिक संस्था के शौचालयों की सफाई की व्यवस्था कराएं

राहू की महादशा में, शुक्र का अंतर

माँ दुर्गा तथा माँ लक्ष्मी की पूजा करें

सांड को गुड या घास खिलाएं

शिव मंदिर में स्थित नंदी की पूजा करें तथा वस्त्र आदि दें

स्फटिक की माला धारण करें

एकाक्षी श्रीफल की स्थापना कर पूजा करें

 राहू की महादशा में शनि का अंतर

महामृत्युंजय मंत्र का एक दिन में कम से कम ३२४ बार जप महामृत्युंजय मंत्र के जप स्वयं, अथवा किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से कराएं। जप के पश्चात् दशांश हवन कराएं जिसमें जायफल की आहुतियां अवश्य दें।

भगवान शिव की शमी के पत्रों से पूजा

शिव सहस्त्रनाम का पाठ

काले तिल से शिव का पूजन

नवचंडी का पूर्ण अनुष्ठान करते हुए पाठ एवं हवन कराएं।

राहुकी महादशा में राहु का अंतर

दान करें उड़द दाल, काले तिल, नीले कपडे, गरम कम्बल सफाई कर्मचारी अथवा नीची जाती को,

चीटी को शुगर

भगवन भैरव के मंदिर में रविवार को शराब चढाऐ और तेल का दीपक जलाएं

शराब का सेवन बिलकुल न करें,

राहू की महादशा में केतु का अंतर

दान करें उड़द दाल, काले तिल, नीले कपडे, गरम कम्बल सफाई कर्मचारी अथवा नीची जाती को, चीटी को शुगर

भैरव जी के मंदिर में ध्वजा चदाएं

कुत्तो को रोटी या बिस्किट खिलाएं

घर या मंदिर में गुग्गुल का धुप करें

कौओं को खीर-पूरी खिलाएं। 

शनि राहु युति

ज्योतिष विज्ञान के मुताबिक जन्मकुण्डली में शनि-राहु की युति भी सभी सुखों को नियत करने वाली होती है। खासतौर पर जब जन्मकुण्डली में शनि-राहु की युति चौथे भाव में बन रही हो। तब वह पांचवे भाव पर भी असर करती है। हालांकि दूसरे ग्रहों के योग और दृष्टि भी अच्छे और बुरे फल दे सकती है। लेकिन यहां मात्र शनि-राहु की युति के अशुभ प्रभाव की शांति के उपाय बताए जा रहे हैं।

हिन्दू पंचांग में शनिवार का दिन न्याय के देवता शनि की उपासना कर पीड़ा और कष्टों से मुक्ति का माना जाता है। यह दिन शनि की पीड़ा, साढ़े साती या ढैय्या से होने वाले बुरे प्रभावों की शांति के लिए भी जरूरी है। किंतु यह दिन एक ओर क्रूर ग्रह राहु की दोष शांति के लिए भी अहम माना जाता है। राहु के बुरे प्रभाव से भयंकर मानसिक पीड़ा और अशांति हो सकती है।

अगर आपको भी सुखों को पाने में अड़चने आ रही हो या कुण्डली भी शनि राहु की युति से प्रभावित हो, तो उन के लिए शनि-राहु के दोष शांति के सरल उपाय –

– शनिवार की सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहन नवग्रह मंदिर में शनिदेव और राहु को शुद्ध जल से स्नान कर पंचोपचार पूजा करें और विशेष सामग्रियां अर्पित करें।

– शनि मंत्र ऊँ शं शनिश्चराये नम: और राहु मंत्र ऊँ रां राहवे नम: का जप करें। हनुमान चालीसा का पाठ भी बहुत प्रभावी होता है।

– शनिदेव के सामने तिल के तेल का दीप जलाएं। तेल से बने पकवानों का भोग लगाएं। लोहे की वस्तु चढाएं या दान करें।

– राहु की प्रसन्नता के लिए तिल्ली की मिठाईयां और तेल का दीप लगाएं। शनि व राहु की धूप-दीप आरती करें।

समयाभाव होने पर नीचे लिखें उपाय भी न के वल आपकी मुसीबतों को कम करते हैं, बल्कि जीवन को सुख और शांति से भर देते हैं।

– किसी मंदिर में पीपल के वृक्ष में शुद्ध जल या गंगाजल चढ़ाएं। पीपल की सात परिक्रमा करें। अगरबत्ती, तिल के तेल का दीपक लगाएं। समय होने पर गजेन्दमोक्ष स्तवन का पाठ करें। इस बारे में किसी विद्वान ब्राह्मण से भी जानकारी ले सकते हैं।

– इसी तरह किसी मंदिर के बाहर बैठे भिक्षुक को तेल में बनी वस्तुओं जैसे कचोरी, समोसे, सेव, भुजिया यथाशक्ति खिलाएं या उस निमित्त धन दें।

कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाने से शनि के साथ ही राहु-केतु से संबंधित दोषों का भी निवारण हो जाता है। राहु-केतु के योग कालसर्प योग से पीड़‍ित व्यक्तियों को यह उपाय लाभ पहुंचाता है। इसके अलावा निम्न मंत्रों से भी पीड़ित जातकों को अत्यंत फायदा पहुंचता है।

राहु मंत्र को अगर सिद्ध किया जाए तो राहु से जुड़ी परेशानियां समाप्त होती हैं। ध्यान रहे कि राहु मंत्र की माला का जाप 8 बार किया जाता है

आपकी राशि अनुसार राहु का फल—

जन्म कुंडली में राहु का मेषादि राशियों में स्थित होने का फल इस प्रकार है :-

मेष में –राहु हो तो जातक तमोगुणी ,क्रोध की अधिकता से दंगा फसाद करने वाला तथा जूए लाटरी में धन नष्ट करने वाला होता है |आग और बिजली से भय रहता है |

वृष में राहु हो तो जातक सुखी ऐश्वर्यवान,सरकार से पुरस्कृत ,कामी और विद्वान होता है |

मिथुन में राहु हो तो जातक विद्वान ,धन धान्य से सुखी ,समृद्ध व् यश मान प्राप्त करने वाला होता है |

कर्क में राहु हो तो जातक मनोरोगी ,नजला जुकाम से पीड़ित ,माता के कष्ट से युक्त होता है |

सिंह में राहु हो तो जातक ह्रदय या उदररोगी राजकुल का विरोधी तथा अग्नि विष आदि से कष्ट उठाने वाला होता है | 

कन्या में राहु हो तो जातक विद्यावान,मित्रवान, साहस के कार्यों से लाभ उठाने वाला तथा सफलता प्राप्त करने वाला होता है |

तुला मे राहु हो तो जातक गुर्दे के दर्द से पीड़ित ,व्यापार से लाभ उठाने वाला होता है |

वृश्चिक में राहु हो तो जातक नीच संगति वाला ,शत्रु से पीड़ित ,दुःसाहसी व् अग्नि विष शस्त्र आदि से पीड़ित होता है |

धनु में राहु हो तो जातक असफल, परेशान, वात रोगी, निम्नलिखित कार्यों में रूचि लेने वाला होता है |

मकर में राहु हो तो जातक विदेश यात्रा करने वाला, धनी, स्नेह से पीड़ित और मित्र से हानि उठाने वाला होता है |

कुम्भ में राहु हो तो जातक श्रम के कार्य से लाभ उठाने वाला, मित्रों से सहयोग लेने वाला, धन संपत्ति से युक्त होता है |

मीन में राहु हो तो जातक उत्साह हीन, मन्दाग्नि युक्त होता है |

राहू का भाव फल दशाफल व गोचर फल

  

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