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महिलाऐ, यात्रा, शुक्रदोष व गोत्र प्रभाव विचार

"शुक्रदोष विचार" जिस दिशा में 'शुक्र "सम्मुख एवं जिस दिशा में दक्षिण हो ,उन दिशाओं में बालक ,गर्भवती स्त्री तथा नूतन विवाहिता स्त्री को यात्रा नहीं करनी चाहिए ?     यदि बालक यात्रा करे तो विपत्ति पड़ती है। नूतन विवाहिता स्त्री यात्रा करे तो सन्तान को दिक्कत होती है।गर्भवती स्त्री यात्रा करे तो गर्भपात होने का भय होता है ।यदि पिता के घर कन्या आये तथा रजो दर्शन होने लगे तो सम्मुख "शुक्र "का दोष नहीं लगता है । भृगु ,अंगीरा ,वत्स ,वशिष्ठ ,भारद्वाज -गोत्र वालों को सम्मुख "शुक्र "का दोष नहीं लगता है ।     सम्मुख "शुक्र "तीन प्रकार का होता है-१जिस दिशा में शुक्र का उदय हो। २उत्तर दक्षिण गोल -भ्रमण वशात जिस दिशा शुक्र रहे। ३अथवा --कृतिका आदि नक्षत्रों के वश जिस दिशा में हो,उस दिशा में जाने वालों को शुक्र सम्मुख होगा । जिस दिशा मे उदय हो -उस दिशा में यात्रा न करें १-जब गुरु अथवा शुक्र अस्त हो गये हों -अथवा सिंहस्त गुरु हो ,कन्या का रजो दर्शन पिता के घर में होने लगा हो ,अच्छा मुहूर्त न मिले तो --दीपावली के दिन कन्या पति के घर जा सकती है । ...

हनुमान महामंत्रराज, सर्वसिद्धिप्रद

श्रीराम! , हनुमान कृपा, हनुमान मंत्र, हनुमान प्रत्यक्ष दर्शन के लिए, यह तांत्रिक विधि बहुत ही उपयोगी है। विद्यां वापि धनं वापि राज्यं वा शत्रुविग्रहम्। तत्क्षणादेव चाप्नोति सत्यं सत्यं सुनिश्चितम्।।  आय से अधिक खर्च, पारिवारिक विवाद, बीमारी, अकस्मात किसी संकट का उपस्थित होना, भूत- प्रेत बाधा, पितर दोष, वास्तुदोष, ग्रहो की पीडा़, किसी के द्वारा तांत्रिक क्रिया ( मारण,उच्चाटन) आदि किया जाना।  इन सभी दोषो का एक विश्वसनीय व परीक्षित उपाय है। "हनुमतमहामंत्रराज" का बारह हजार जप व तद्दशांश हवन,  तर्पण, मार्जन। यह एक तांत्रिक अनुष्ठान है। जिसमे श्रीहनुमानजी के द्वादशाक्षर तांत्रिक मंत्र " हौं हस्फ्रे ख्फ्रे हस्रौं हंस्ख्फ्रे ह्स्रौं हनुमते नमः।" का जप किया जाता है। तेल, बेसन व उड़द के आटे से निर्मित हनुमान जी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करके तेल और घी का दीपक जलाये, विधिवत पूजन कर पूआ, भात, शाक, मिठाई, बडे़, पकौडी़ आदि का भोग लगाये। यहॉ  हनुमान साधना की संपुर्ण सामग्री  देखिए।  जप से पूर्व मंत्र का विनियोग षडंगन्यास, वर्णन्यास, पदन्यास तथा अष्टदलकमलयंत्र म...

वर्णाश्रम जातिभेद क्यो?

श्रीराम!! #वर्णाश्रम पश्चिमी देश आज पशु पक्षी व वृक्षो की नस्ल को सुरक्षित व उनकी वृद्धि के लिये लगातार प्रयत्नशील है। किन्तु दुर्भाग्यवश समाजीयो की खोपडी मे यह बात नही बैठ पा रही है, कि मनुष्य की भी कोई खास नस्ल होती है, और उसकी रक्षा करना भी आवश्यक है।    यह तो सभी जानते है कि आम कहने के लिये तो मात्र एक साधारण वृक्ष है, परन्तु उसमे भी कलमी , लगंडा, दशहरी, तोतापरी, सिन्दुरी आदि अनेकानेक जातिया पाई जाती है। जिनका आकार प्रकार, रंग रुप और स्वाद मे भिन्नता पाई जाति है। लंगडा के वृक्ष पर तोतापरी तो नही उगता, सफेदा सिन्दूरी हो सकता है क्या? पशुओ मे गाय व घोडो की बिशेष नस्ले पाई जाति है। कुत्तो की नस्ल को सुरक्षित रखने के लिये  "बुलडाग" और "पप्पीडाग" जन्मानेवाली कुतिया को वर्णसंकरता से बचाने के लिये, (दुसरे कुत्ते के संपर्क से) रबड़ के जॉघिये पहनाए जाते है । अहो यह कितने आश्चर्य व शोक का बिषय है, कि आज मानव नस्ल की सुरक्षा की न केवल उपेक्षा की जा रही है, बल्कि जातिगत बिशेषताओ की रक्षा के किले- जन्मना वर्ण व्यवस्था, गोत्र प्रवर विचार, जाति उपजाति मे विवाह सम्बन्ध त...

कलियुगी ब्राह्मण क्यो है पथभ्रष्ट

श्रीराम! कलियुग मे अधिकांश ब्राह्मण क्यो पथभ्रष्ट है? एक समय की बात है, पृथ्वीवासीयो को कर्मदण्ड देने के लिये देवेन्द्र ने १५ वर्ष वर्षा नही की जिससे अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गयी। ऋषि गौतम की भक्ति से प्रसन्न होकर माता गायत्री ने उन्हे एक कल्पपात्र प्रदान किया । जिसके द्वारा इच्छित मात्रा मे अन्न धन प्राप्त कर, गौतम ऋषि ने ब्राह्म्णो की सेवा की। ब्राह्मणो का समूह वहॉ रहकर जीवन यापन करने लगा। इस प्रकार ऋषि गौतम की प्रसिद्धि की चर्चा देवलोक तक होने लगी। इस ख्याति से कुछ ब्राह्मणो को ईर्ष्या हुई। अतः षडयंत्र द्वारा ऋषि गौतम को नीचा दिखाने के उद्देश्य से , इन दुष्टस्वभाव वाले ब्राह्मणो ने एक ऐसी गाय जो मरणासन्न थी को महर्षि के आश्रम मे हॉक दिया। उस समय गौतम ऋषि पूजा कर रहे थे। उनके देखते देखते गाय ने प्राणत्याग दिया। तबतक वे नीचगण वहॉ पहुचकर गाय की गौतम ऋषि द्वारा हत्या कर देने का आरोप लगाया। ऋषि बडे दुःखित हुए। उन्होने समाधिस्थ होकर ध्यान लगाया तो सारा माजरा समझते ही अत्यंत कुपित हुए। और उन्होने ब्राह्मणो को श्राप दिया।  अरे अधम ब्राह्मणो, अब से तुम गायत्री के अघिकारी नही रहोगे, ...

मुसलमानो की उत्पत्ति व विस्तार

श्रीराम! मुसलमानो की उत्पत्ति तथा विस्तार      ।भविष्य पुराण। हस्तिनापुर के राजा क्षेमक की हत्या म्लेच्छो ने कर दी, तब, क्षेमक के पुत्र प्रद्योत ने म्लेच्छो का संहारयज्ञ किया, जिससे उसका नाम म्लेच्छहंता पडा़। म्लेच्छरुप मे कलि( जिसका यह युग है) ने ही राज्य किया था।तब कलि ने नारायण की पूजा कर दिव्य स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर नारायण प्रकट हुए। कलि ने उनसे कहा हेनाथ ! राजा प्रद्योत ने मेरे स्थान व प्रिय म्लेच्छो का विनाश कर दिया है। प्रभु मेरी सहायता करे!     भगवान ने कहा - हे कले! कई कारणो से तुम अन्य युगो से श्रेष्ठ हो,अतः कई रुपो कोे धारण कर,मै तुम्हारी इच्छा पूर्ण करुगा! "आदम" नाम का पुरुष और हव्यवती ( हौवा ) नाम की स्त्री से म्लेच्छ वंश की वृद्धि करने वाले उत्पन्न होंगे। यह कर भगवान अन्तरध्यान हो गये।     म्लेच्छो का आदि पुरुष आदम और उसकी पत्नी हौवा दोनो ने इंद्रियो का दमन कर ध्यान परायण हो रहते थे। कलियुग सर्परुप धारण कर हौवा के पासआया। उस धूर्त कलि ने गूलर के पत्ते मे लपेटकर दूषित वायुयुक्त फल धोखे से खिला दिया, जिससे हौवा का संयम भंग हो ...

कर्तव्य य अधिकार

श्रीराम!!!          अधिकार या भार ( कर्तव्यपालन ) वर्तमान मे सभी प्रकार के संघर्ष य विरोध का एक मात्र मूल कारण है "अधिकार" , कोई कहता है, मुझे जनेऊ पहनने का अधिकार क्यो नही?, दूसरा कहता है, मुझे वेद पढ़ने का अधिकार क्यो नही?, तीसरा कहता है, मुझे मंदिर मे घुसने का अधिकार क्यो नही? चौथा कहता है, मुझे दण्डी संन्यासी बनने का अधिकार क्यो नही? सनातन धर्म मे जैसा यह अधिकार का द्वन्द चल रहा है, ठीक इसी प्रकार का द्वन्द, आर्थिक जगत मे, किसान व भूमिधर, मिल मालिक व मजदूर, विद्यार्थी व शिक्षक, इतना ही नही पत्नी और पति मे भी चल रहा है। आज अधिकार के नाम पर यहॉ वहॉ सर्वत्र बेवजह ही देवासुर संग्राम मचा हुआ है। अधिकारवाद  संघर्ष जन्य अनेक अनर्थो से डूबा मानव समाज यदि आज अधिकार वाद की रट लगाना छोड़कर कर्तव्यवाद के दृष्टिकोण से समस्त उलझी हुई समस्याओ को समाहित करने के लिये प्रयत्नशील हो जाए तो, संसार का चित्र ही बदल जायेगा। जब हम अधिकार वाद को स्वीकार करते है, तो "कम परिश्रम मे अधिक लाभ" की प्रवृति को प्रकट करते है। यह प्रवृति जहॉ सामाजिक संगठन के लिये घातक नही, बिशेषरुप ...

भक्तियोग और रामचरितमानस

सियावर रामचन्द्र की जय भक्तियोग हीएक ऐसा सुलभ और स्वतंत्र अवलम्ब है, जिसके प्रभाव से, सर्व शक्तिमान भगवान कोभी भक्तो के प्रेमपाश मेबंधकर भक्त हृदय मे वास करना पड़ता है, अतः प्राणीमात्र के लिये भगवत प्रेमावलम्बन ही वास्तविक योग है, तथा ईश्वर के प्रति प्रेम की प्रधानता ही यथार्थ मे ज्ञान है|  जोग कुजोग ग्यानु अग्यानु| जहँ नही राम प्रेम परधानू|  सर्वप्रकार से चित्त को शान्तकर ईश्वर के चरणो मे, ध्यान लगाना, अर्थात अपने को ईश्वर के शरणागत करना ही भक्तियोग है|  धर्म ते विरति योग ते ग्याना| ग्यान मोक्षप्रद वेद बखाना| जबतक वर्णाश्रम आदि के अनुसार निजधर्म का पूर्णतः पालन नही किया जाता तबतक ( धर्म ते विरति) वैराग्य उत्पन्न न होगा, जब बैराग्य न होगा तो कर्मादिक फल का त्याग न होने से कर्मयोग न हो सकेगा जबतक कर्मयोग न होगा तबतक (योग ते ग्याना) ज्ञान न उत्पन्न होगा, और जबतक ज्ञान न होगा, तबतक मोक्ष न होगा| किन्तु भक्तियोग, भक्तो के लिये सुलभ, सुखद एवं स्वतंत्र अवलंम्ब है, जिसके द्वारा ईश्वर भक्तो के अधीन हो जाते है, फिर मोक्ष की बात ही क्या करना | प्रभु ने स्वंय कहा है, जाते वेग...