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Showing posts from June, 2018

राम नाम महिमा

नाम स्मरण महिमा श्री राम जय राम जय जय राम' - यह सात शब्दों वाला तारक मंत्र है। साधारण से दिखने वाले इस मंत्र में जो शक्ति छिपी हुई है, वह अनुभव का विषय है। इसे कोई भी, कहीं भी, कभी भी कर सकता है। फल बराबर मिलता है...... ।  राम नाम सब कोई कहै, ठग ठाकुर अरु चौर|  तारे ध्रुव प्रहलाद को वहै नाम कछु और||      नाम का उच्चारण मात्र करने से, नाम की पवित्रता के कारण फल तो अवश्य ही मिलता है किन्तु बहुत अधिक नही| देवी य देवता का नाम लेते ही मानस पटल पर उस देवी य देवता का रुप दिखायी पडना, उनके गुण कर्मो का स्मरण होना चाहिये, भगवान का सर्वोतमतत्व और अपना अत्यंत क्षुद्रत्व ध्यान मे आना चाहिये, ईश्वर की अपार दया प्रेम से हृदय गद्गद होकर उनके स्वरुप मे मिलने का प्रयत्न होना चाहिये| ऐसे ही नाम स्मरण की महिमा गायी जाती है|  राम नाम सब कोई कहै, दशरित कहे न कोय|  एकबार दश रित कहे, कोटि यज्ञ फल होय||  प्रयुक्त दोहे मे दशरित जिन्हे कहा गया है, वे ही दश नामापराध है, जिनसे नाम स्मरण " रित" ( रिक्त) होना चाहिये | ये नामापराध है- १. निन्दा २. आसुरी प्रकृतिवाले को न...

मंत्र क्या है?

मंत्र शब्द का निर्माण मंत्र शब्द का निर्माण मन से हुआ है। मन के द्वारा और मन के लिए। मन के द्वारा यानी मनन करके और मन के लिए यानी 'मननेन त्रायते इति मन्त्रः' जो मनन करने पर त्राण यानी लक्ष्य पूर्ति कर दे, उसे मन्त्र कहते हैं। मंत्र अक्षरों एवं शब्दों के समूह से बनने वाली वह ध्वनि है जो हमारे लौकिक और पारलौकिक हितों को सिद्ध करने के लिए प्रयुक्त होती है। सभी स्वर व व्यजंन भी मंत्र रुप ही है। यह सृष्टि प्रकाश और शब्द द्वारा निर्मित और संचालित मानी जाती है। इन दोनों में से कोई भी ऊर्जा एक-दूसरे के बिना सक्रिय नहीं हो सकती और शब्द मंत्र का ही स्वरूप है। आप किसी कार्य को या तो स्वयं करते हैं या निर्देश देते हैं। आप निर्देश या तो लिखित स्वरूप में देते हैं या मौखिक रूप में देते हैं। मौखिक रूप में दिए गए निर्देश को हम मंत्र भी कह सकते हैं। हर शब्द और अपशब्द एक मंत्र ही है। इसीलिए अपशब्दों एवं नकारात्मक शब्दों और वचनों के प्रयोग से हमें बचना चाहिए। किसी भी मंत्र के जाप से पूर्व संबंधित देवता व गणपति के ध्यान के साथ गुरु का ध्यान, स्मरण और पूजन आवश्यक है। मंत्र का ही क्रियात्मक रुप...

शनि, राहू और केतु शांति के विस्तृत उपाय

ग्रहो की स्थित जन्मकुंडली मे जो भाव मे होता है, उस भावपर अन्य ग्रहो की दृष्टि, युति, कारक, भाव आदि की स्थिति, से ग्रह शुभ अशुभ प्रभाव देने मे सक्षम होते है। अतः जब ग्रह अशुभकारक हो, तो उनका उपाय करने से ग्रहो का कोप शांत होकर शुभफल प्राप्त होता है। इस लेख के माध्ययम से एक एक कर प्रत्येक ग्रह के बारे में जानकारी दी गयी है। अतिरिक्त जानकारी के लिए नि: शुल्क परामर्श के लिए, follwo और coment का प्रयोग करें। ग्रहदोष सूर्य चंद्र मंगल ग्रह गुरु  शुक्र ग्रह की शांति के बिषय मे पुर्दन के लिए इस सूची को देखा। ज्योतिष विज्ञान में शनि उपासना शनि गंभीर और क्रुर प्रकृति के ग्रह है। ये कालकार, तमोगुणी और पाप ग्रह है। कुटनीति, छल, कपट, क्रोध, मोह, क्षण, राजदण्ड, सन्यास आदि शनि के स्वभाव में है। इसी कारण से आमजन में यह धारणा है कि शनि सदैव अनिष्टकारी ही होते हैं। जो कि पूर्ण सत्य नहीं है। शनि सदैव अनिर्वचनीय नहीं होते हैं। ये तो मनुष्यों के पूर्व संचित कर्मो के अनुसार अच्छा या बुरा फल देते है। शुभ कर्म वालों को खुशी, समृद्धि और उन्नति देते हैं तो अशुभ कर्म वालों को दुःख, दरिद्रता, और सम्मान दे...