शनि की सिद्धि, शनि की साढेसाती लघु कल्याणी ढैय्या व शांति के उपाय की संपुर्ण जानकारी

ग्रहो का परिधि पथ पर चलना मार्गी कहलाता है और परिगमन पथ से पीछे की ओर लौटना ग्रह की वक्री गति कही जाती है। राहू केतु को छोडकर सूर्य और चंद्र के अतिरिक्त सभी ग्रह वक्री व मार्गी दोनो होते हैं ।जबकि राहू केतु सदैव वक्री होते हैं ।शनि जिस स्थान पर होता है वह तीसरे सातवे और दसवें स्थान पर देखता है। जब शनि वक्री होकर अपनी तीसरी सातवी और दसवी दृष्टि से जिस भाव को देखता है वह उसपर शनि की दृष्टि वक्री दृष्टि कही जाती है। सातवी और दसवी दृष्टि की अपेक्षा तीसरी दृष्टि अधिक कष्टदायक होती है।

 शनि दण्डाधिकारी है, जो पुर्वजन्मकृत कर्मो के फल को प्रदान करने वाले है। शनि एक राशि में पूरे ढाई वर्ष तक रहता है। कुण्डली में चन्द्रमा जिस राशि में स्थित है उस राशि से चतुर्थ भाव और अष्टम भाव में जब शनि का गोचर होता है तब उसे शनि की ढ़ैय्या कहती है। एक राशि में ढाई वर्ष रहने के कारण इसे ढ़ैय्या का नाम दिया गया है। इस ढैय्या को ही लघु कलानी भी कहा जाता है।

शनि की ढैय्या: - शनि ग्रह प्रत्ति एक राशि मे ढाई साल तक रहती है। जन्मकुंडली के बारह भाव मे शनि ग्रह को एक चक्र पूरा करने में पूरे तीस साल लग जाते हैं। इस चक्र के दौरान कुंडली में चन्द्रमा जिस राशि में स्थित है उस राशि से या उस भाव से एक घर पहले से शनि का गोचर आरंभ होता है।

साढे़साती का अर्थ है - साढे की सात वर्ष चन्द्रमा जिस राशि में स्थित है उस राशि से एक राशि पहले शनि की साढे़साती का पहला चरण आरम्भ हो जाता है। इसमें शनि ढाई वर्ष तक रहता है। उसके बाद साढे़साती का दूसरा चरण शुरू होता है जिसमें शनि का गोचर चन्द्रमा के ऊपर से होता है। यहां भी शनि ढाई वर्ष तक रहता है। इसके बाद शनि चन्द्रमा से अगली राशि में प्रवेश करता है और यह अंतिम व तृष्णा चरण होता है। इसमें भी शनि ढाई वर्ष तक रहता है। इस प्रकार चन्द्रमा से एक राशि पहले और एक राशि बाद तक शनि का ढाई ढाई वर्ष के गोचर को एक साथ जोडकर साढे़साती कहा जाता है।शनि कीगति चुंकि मंद होती है अत: एक राशि को पार करने में यह वर्ष का समयलगता है ’(?) उदाहरण के तौर पर देखें तो मेष राशि में जब शनि प्रवेश करेगा तब क्रमशः: वृष और मिथुन तीन राशियों से गुजरेगा और अपना समय चक्र पूरा करेगा। शनि गोचर में जन्म राशि से बारहवेंराशि में प्रवेश करता है तब साढ़े साती की दशा शुरू हो जाती है और जब शनि जन्म से दूसरे स्थान को पार कर जाता है तब इसकी दशा से मुक्ति मिल जाती है। लोग यह सोच कर ही घबरा जाते हैं कि शनि की साढ़े साती आज से शुरू हो गयी तो आज से भी कष्ट और परेशानियों की शुरूआत होने लगी है। जो लोग ऐसा सोचते हैं वेअकारण ही भयभीत होते हैं वास्तव में अलग अलग राशियों के व्यक्तियों पर शनि का प्रभाव अलग होता है। कुछ व्यक्तियों को साढ़े साती शुरू होने से कुछ समय पहले ही इसके संकेत मिल जाते हैं और साढ़े साती समाप्त होने से पूर्व ही तिलों से मुक्ति मिल जाती है और कुछ लोगों को देर से शनि का प्रभावशाली देखने को मिलता है और साढ़े साती समाप्त होन के कुछ समय बाद। तकइसके प्रभाव से दो चार होना पड़ता है अत: आपको इस विषय में घबराने कीआव परिवर्तनता नहीं है। 

लक्षण-शनि की साढ़े साती के समय कुछ विशेष प्रकार की घटनाएं होती हैं जिनसे संकेत मिलता है कि साढ़े साती चल रही है। शनि की साढ़े साती के समय आमतौर पर इस प्रकार की घटनाएं होती है जैसे घर  का कोई भाग अचानक गिर जाता है। घर के अधिकांश सदस्य बीमार रहते हैं, घर में अचानक अाग लग जाती है, आपको बार-बार अपमानित होना पड़ता है। घर की महिलाएं अक्सर बीमार रहती हैं, एक परेशानी से आप जैसे ही निकलते हैं दूसरी परेशानी सिर उठाए खड़ी रहती है। व्यापार एवं व्यवसाय में असफलता और नुकसान होता है। घर में मांसाहार एवं मादक पदार्थों के प्रति लोगों का रूझान काफी बढ़ जाता है। घर में आये दिन कलह होने लगता है। अकारण ही आपके ऊपर कलंक या इल्ज़ाम लगता है। आंख व कान में तकलीफ महसूस होती है एवं आपके घर से चप्पल जूते गायब होने लगते हैं।

आपके जीवन में जब उपरोक्त घटनाएं दिखने लगे तो आपको समझ लेना चाहिए कि आप साढ़े साती से पीड़ित हैं। 

साढ़े साती शुभ भी:-शनि की ढईया और साढ़े साती का नाम सुनकर बड़े बड़े पराक्रमी और धनवानों केचेहरे की रंगत उड़ जाती है। लोगों के मन में बैठे शनि देव के भय का कई ठगज्योतिषी नाज़ायज लाभ उठाते हैं। विद्वान ज्योतिषशास्त्रियों की मानें तोशनि सभी व्यक्ति के लिए कष्टकारी नहीं होते हैं। शनि की दशा के दौरान बहुतसे लोगों को अपेक्षा से बढ़कर लाभसम्मान व वैभव की प्राप्ति होती है। 

साढ़े साती केप्रभाव के लिए कुण्डली में लग्न व लग्नेश की स्थिति के साथ ही शनि और चन्द्र की स्थिति पर भी विचार किया जाता है। शनि की दशा के समय चन्द्रमाकी स्थिति बहुत मायने रखती है। चन्द्रमा अगर उच्च राशि में होता है तो आपमें अधिक सहन शक्ति आ जाती है और आपकी कार्य क्षमता बढ़ जाती है जबकि कमज़ोर व नीच का चन्द्र आपकी सहनशीलता को कम कर देता है व आपका मन काम मेंनहीं लगता है जिससे आपकी परेशानी और बढ़ जाती है। जन्म कुण्डलीमें चन्द्रमा की स्थिति का आंकलन करने के साथ ही शनि की स्थिति का आंकलनभी जरूरी होता है। शनिअगर लग्न कुण्डली व चन्द्र कुण्डली दोनों में शुभ कारक है तो आपके लिएकिसी भी तरह शनि कष्टकारी नहीं होता है

ढैय्या: -कल्याणी प्रददति वै रावसुता राशेश्चतुर्थताष्टमी।

ढैय्या का मतलब होता है ढाई साल। वैसे तो शनिदेव प्रत्येक राशि में ही ढाई वर्ष रहते हैं। लेकिन ढैय्या का विचार चंद्र राशि से केवल चतुर्थ और अष्टम भाव से ही किया जाता है |

जब शनिदेव चंद्र लग्न (जन्म राशि) के अनुसार चतुर्थ व अष्टम भाव से गोचर करते हैं तो जातक को ढैय्या देते हैं। शनि का प्रभाव जन्म कुंडली में शनि की स्थिति और दशंतर्दशा पर निर्भर करता है। शनि का अशुभ प्रभाव जातक की जन्म कुंडली और नवांश कुंडली में शनि की अशुभकारी स्थिति से होता है। ज्योतिष के सामान्य सिद्घान्तों के अनुसार शनि जब अपनी उच्चा राशि, मित्र राशि या अपने नवांश में और वर्गोत्तम होने की स्थिति में शुभफल देता है। शनि जन्म कुंडली के शनि से 3, 6, 10, 11 भावो में भी शुभफल देता है। जन्म कुंडली के

चन्द्रमा से भी शनि 3, 6, 11 भाव में अशुभ फल नहीं देता है। जिस ग्रह के साथ शनि का संबंध सम रहता है उसकी राशि से गोचर करने के समय भी अशुभ फल नहीं देता है।

शनिदेव प्रत्येक भाव में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के अनुसार फल देते हैं।

चतुर्थ और अष्टम भाव मोक्ष के भाव हैं। ज्योतिष का नियम है कि शनिदेव जिस भाव से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के लिए गोचर करे, उसी के अनुरूप व्यक्ति को कार्य करना चाहिए। जो व्यक्ति ढैय्या में तीर्थ यात्रा, समुद्र स्नान और धर्म के कार्य दान-पुण्य इत्यादि करते हैं, उन्हें ढैय्या में भी शुभ फल की प्राप्ति होती है। लेकिन जो उस अवधि में इन कामों से दूर रहते हैं, उन्हें अपने ही पूर्वकृत अशुभ कर्मों के फलस्वरूप शारीरिक-मानसिक परेशानी और कारोबार में हानि होती है।

चतुर्थ भाव की ढैय्या :-शनि जन्म कालीन चंद्र से चतुर्थ में जाए तो कंटक शनि होता है।शनि की लघु कल्याणी ढैय्या के नाम से भी जाना जाता है| चतुर्थ भाव से शनिदेव छठे भाव को, दशम भाव को तथा लग्न को देखते हैं। अर्थात् जब शनिदेव चतुर्थ भाव से गोचर करते हैं तो जातक के निजकृत पूर्व के अशुभ कर्मों के फलस्वरूप उसके भौतिक सुखों यानी मकान व वाहन आदि में परेशानी पैदा होती है जिसका संकेत कुण्डली में शनिदेव की स्थिति दिया करती है। जिसकी वजह से उसके कारोबार में फर्क पड़ता है। उसकी परेशानी बढ़ जाती है। परेशानियों के बढ़ने से जातक को शारीरिक कष्ट की भी प्राप्ति होती है। अर्थात् चतुर्थ भाव की ढैय्या में मकान खरीदना या बेचना नहीं चाहिए। साथ ही अपने व्यवसाय में भी कोई विशेष परिवर्तन नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति अधिकतर शांत रहते हैं और धार्मिक कार्यों में संलग्न रहते हैं, ऐसे व्यक्तियों को चतुर्थ ढैय्या में किसी भी प्रकार की परेशानी पैदा नहीं होती है। और जो व्यक्ति नया कार्य करते हैं, उन्हें परेशानी पैदा होती है।

अष्टम भाव की ढैय्या: जब शनिदेव जन्मकुंडली में चंद्र से अष्टम भाव से गोचर करते हैं तो ढैय्या देते हैं, अष्टम ढैय्या चतुर्थ की ढैय्या से ज्यादा अशुभ फलों का संकेत देती है।अष्टम भाव आयु या मृत्यु का भाव माना गया है|

अष्टम ढैय्या जातक से नया कार्य शुरू कराकर बीच में ही धोखा दे जाती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अष्टम ढैय्या में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। क्योंकि अष्टम भाव से शनिदेव तीसरी दृष्टि से दशम भाव को सप्तम दृष्टि से द्वितीय भाव को और दशम दृष्टि से पंचम भाव को देखते हैं। अष्टम ढैय्या सबसे पहले कारोबार में परेशानी पैदा करती है। जिसकी वजह से जातक के निजी कुटुंब और धन पर बुरा असर पड़ता हैं तथा धन की वजह से जातक के संतान के ऊपर भी कुप्रभाव पड़ता है। अत: जातक को अष्टम ढैय्या में कोई भी नया कार्य, यानी बैंक आदि से कर्ज या जमीन-जायदाद का खरीदना-बेचना या पिता की संपत्ति को बांटना नुकसानदायक होता है। अत: इस ढैय्या के दौरान ये कार्य नहीं करने चाहिए। अष्टम ढैय्या में जो व्यक्ति धार्मिक कार्य, समुद्र स्नान व तीर्थ यात्रा आदि करता है और ईमानदारी पूर्वक, निश्छल-सहृदय, सादा जीवन जीता है, तो उस व्यक्ति को अष्टम ढैय्या में किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होती है।याद रहे कि प्रतिकूल परिस्तिथियों के पीछे भी जातक के पूर्वकृत अशुभ कर्म ही रहते हैं।

लघु कल्याणी ढैय्या व साढेसाती के उपाय:-

ढैय्या में व्यक्ति को धैर्य से काम लेना चाहिए क्योंकि ढैय्या में व्यक्ति को अपने सगे संबंधियों की भी मदद कम से कम मिलती है। इसलिए स्वयं सभी कार्य करने पड़ते हैं।

ढैय्या के अशुभ फलों के प्रभावों को कम करने के लिए, लाल किताब के उपाय:- जातक: प्रात:काल चिड़ियों को दाना डालें,

आँगन या छत पर उनके लिए पानी रखें।

आटा शक्कर का मिश्रण बना कर चींटियों को डालें

प्रतिदिन सुबह जल्दी उठ कर स्नान आदि से निवृत होकर सूर्यदेव को प्रतिदिन जल दें।

बुरे कार्यों से बचें।

ढैय्या में सफलता प्राप्त होगी। यहॉ पढिए राहू के चमत्कारी उपाय

आप साढ़े साती के दुष्प्रभाव से बचने क लिए जिन उपायों को आज़मा सकते हैं वे निम्न हैं:

शनिदेव भगवान शिव के शिष्य हैं, शिवजी की जिनके ऊपर कृपा होती है उन्हें शनि हानि नहीं पहुंचाते अत: नियमित रूप से शिवलिंग की पूजा व अराधना करनी चाहिए। पीपल में सभी देवताओं का निवास कहा गया है इस हेतु पीपल को आर्घ देने अर्थात जल देने से शनि देव प्रसन्न होते हैं। अनुराधा नक्षत्र में जिस दिन अमावस्या हो और शनिवार का दिन हो उस दिन आप तेल, तिल सहित विधि पूर्वक पीपल वृक्ष की पूजा करें तो शनि के कोप से आपको मुक्ति मिलती है। शनिदेव की प्रसन्नता हेतु शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए।शनि के कोप से बचने हेतु आप हनुमान जी की आराधाना कर सकते हैं, क्योंकि शास्त्रों में हनुमान जी को रूद्रावतार कहा गया है। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करे। आप साढ़े साती से मुक्ति हेतु शनिवार को बंदरों को केला व चना खिला सकते हैं। नाव के तले में लगी कील और काले घोड़े का नाल भी शनि की साढ़े साती के कुप्रभाव से आपको बचा सकता है अगर आप इनकी अंगूठी बनवाकर धारण करते हैं। लोहे से बने बर्तन, काला कपड़ा, सरसों का तेल चमड़े के जूते, काला सुरमा, काले चने, काले तिल, उड़द की साबूत दाल ये तमाम चीज़ें शनि ग्रह से सम्बन्धित वस्तुएं हैं, शनिवार के दिन इन वस्तुओं का दान करने से एवं काले वस्त्र एवं काली वस्तुओं का उपयोग करने से शनि की प्रसन्नता प्राप्त होती है।

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