Posts

शनि की सिद्धि, शनि की साढेसाती लघु कल्याणी ढैय्या व शांति के उपाय की संपुर्ण जानकारी

ग्रहो का परिधि पथ पर चलना मार्गी कहलाता है और परिगमन पथ से पीछे की ओर लौटना ग्रह की वक्री गति कही जाती है। राहू केतु को छोडकर सूर्य और चंद्र के अतिरिक्त सभी ग्रह वक्री व मार्गी दोनो होते हैं ।जबकि राहू केतु सदैव वक्री होते हैं ।शनि जिस स्थान पर होता है वह तीसरे सातवे और दसवें स्थान पर देखता है। जब शनि वक्री होकर अपनी तीसरी सातवी और दसवी दृष्टि से जिस भाव को देखता है वह उसपर शनि की दृष्टि वक्री दृष्टि कही जाती है। सातवी और दसवी दृष्टि की अपेक्षा तीसरी दृष्टि अधिक कष्टदायक होती है।  शनि दण्डाधिकारी है, जो पुर्वजन्मकृत कर्मो के फल को प्रदान करने वाले है। शनि एक राशि में पूरे ढाई वर्ष तक रहता है। कुण्डली में चन्द्रमा जिस राशि में स्थित है उस राशि से चतुर्थ भाव और अष्टम भाव में जब शनि का गोचर होता है तब उसे शनि की ढ़ैय्या कहती है। एक राशि में ढाई वर्ष रहने के कारण इसे ढ़ैय्या का नाम दिया गया है। इस ढैय्या को ही लघु कलानी भी कहा जाता है। शनि की ढैय्या : - शनि ग्रह प्रत्ति एक राशि मे ढाई साल तक रहती है। जन्मकुंडली के बारह भाव मे शनि ग्रह को एक चक्र पूरा करने में पूरे तीस साल लग जाते हैं। ...

वंश परंपरा सूची गोत्र प्रवर शिखा सूत्र पाद छन्द वेद उपवेद द्वार देवता

  प्रत्येक सनातनधर्मावलम्बी को अपनी कुल परम्परा का सम्पूर्ण परिचय निम्न  ११ (एकादश) बिन्दुओं के माध्यम से ज्ञात होता है, अतः इसका प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञान होना चाहिए -१ - गोत्र, २-  प्रवर, ३ - वेद, ४- उपवेद, ५- शाखा, ६- सूत्र, ७-छन्द, ८-शिखा, ९- पाद ,१०-देवता, ११-द्वार   १] गोत्र - गोत्र का अर्थ है कि वह कौन से ऋषिकुल का है या उसका जन्म किस ऋषिकुल से सम्बन्धित है । किसी व्यक्ति की वंश-परम्परा जहां से प्रारम्भ होती है, उस वंश का गोत्र भी वहीं से प्रचलित होता गया है। हम सभी जानते हें की हम किसी न किसी ऋषि की ही संतान है, इस प्रकार से जो जिस ऋषि से प्रारम्भ हुआ वह उस ऋषि का वंशज कहा गया । इन गोत्रों के मूल ऋषि –कश्यप, विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, - इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्त्य की संतान गोत्र कहलाती है। यानी जिस व्यक्ति का गौत्र भारद्वाज है, उसके पूर्वज ऋषि भारद्वाज थे और वह व्यक्ति इस ऋषि का वंशज है। इस प्रकार कालांतर में ब्राह्मणो की संख्या बढ़ते जाने पर पक्ष ओर शाखाये बनाई गई । इस तरह इन सप्त ऋषियों पश्चात उनकी संतानों के विद्वान ऋषियों ...

देवताओ का समूह, मास के देवता, अधिपति देवता, 33 कोटि देवता के नाम

 आदिशक्ति त्रिदेवयुक्त सर्वशक्तिमान प्रकृति और माया को उत्पन्न करनेवाली सनातन शक्ति है, जो सृष्टि व संहार को संचालित करती है। यही आदिशक्ति सृष्टि करने पर संचालन हेतु अपने अंश को विविध भागो मे बॉटकर सृष्टि का संचालन करती है। पुराणो मे आदिशक्ति दुर्गा, सुर्य, बिष्णु, शिव आदि नामो से जाने जाते है। वस्तुतः ये अलग अलग न होकर एक ही के नाम है, जो अलग अलग प्रकरण के अनुसार कहे गये है। 33 कोटि का अर्थ करोड व प्रकार दोनो है! त्रिदेव : ब्रह्मा, विष्णु और महेश। त्रिदेवी : सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती। पार्वती ही पिछले जन्म में सती थीं। सती के ही 10 रूप 10 महाविद्या के नाम से विख्यात हुए और उन्हीं को 9 दुर्गा कहा गया है। आदिशक्ति मां दुर्गा और पार्वती अलग-अलग हैं। दुर्गा सर्वोच्च शक्ति है प्रमुख 33 देवता हैं- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और इन्द्र व प्रजापति को मिलाकर कुल 33 देवता होते हैं। कुछ विद्वान इन्द्र और प्रजापति की जगह 2 अश्विनी कुमारों को रखते हैं। प्रजापति ही ब्रह्मा हैं। 12 आदित्य :के नाम इस प्रकार है -1. अंशुमान, 2. अर्यमन, 3. इन्द्र, 4. त्वष्टा, 5. धातु, 6. पर्जन्य, 7. पूषा, 8. भग, 9....

हनुमान महामंत्रराज साधना सामाग्री

पति को वश मे / मुटठी मे कैसे करे! पति को खुश कैसे रखे!  पत्नी प्रेमिका को वश मे करने का अचूक उपाय क्या है ? हनुमान साधना, हनूमान मंत्रराज,  की विधि जानने के लिए लिंकं खोले। हनुमान मंत्रजाप, हनुमान दर्शन विधि, हनुमान कृपा प्राप्ति विधि , हनुमान प्रयोग,  हनुमत साधना एक तांत्रिक प्रयोग है, जिसकी साधना करने से, धरती पर ऐसा कुछ नही है जिसकी पुर्ति न की जा सके। अर्थात सभी मनोकामनाए शीघ्र अतिशीघ्र प्राप्त की जा सकती है। मुकदमा मे विजय, ऋ्ण से मुक्ति, व्यवसाय मे सफलता, नौकरी मे प्रोन्नति, निःसंतान को संतान, निर्धन को धन, बिगडे कार्य बने, पारिवारिक कलह से मुक्ति, जमीन विवाद से छुटकारा, भूत प्रेत बाधा, जादू टोना, किया कराया, ग्रहदोष वास्तुदोष सभी प्रकार के अनिष्ट का निवारण होता है। जो भी साधक इस साधना को करता है वर शीघ्र ही सर्वमनोकामना की सिद्धि कर लेता है। हनुमान जी अष्ट सिद्धि और नवऩिधि के दाता है। इस साधना के प्रयोग से वह शीघ्र पसन्न होकर दर्शन देते है तथा भक्त की मनोकामना पुर्ण करते है। इस व्रत का आरंभ रविवार से करके मंगलवार को पुर्ण करना होता है। यह प्रयोग तीन दिन का है। तीन ...

मॉ काली साधना, मॉ काली की सिद्धि, स्तोत्र मंत्र सिद्धि

Image
  पति को वश मे / मुटठी मे कैसे करे! पति को खुश कैसे रखे!  पत्नी प्रेमिका को वश मे करने का अचूक उपाय क्या है ? माता काली ही आदिशक्ति स्वरुपा है। इनके स्वरुप का विवरण शाश्त्रो मे जो मिलता है, वह अपने आप मे एक रहस्य लिए होता है। आईये इन रहस्यो को बारीकी से समझते है। भगवती के मुख पर मुस्कान बनी रहती है, जिसका अर्थ है, कि वे नित्यानन्द स्वरुपा है।देवी के होठो से रक्त की धारा बहने का अर्थ है, देवी शुद्ध सत्वात्मिका है, तमोगुण व रजोगुण को निकाल रही है। देवी के बाहर निकले दॉत जिससे जीभ को दबाए है, का भावार्थ रजोगुण तमोगुण रुपी जीभ को बाहर कर सतोगुण रुपी उज्जवल दॉतो से दबॉये है। भगवती के स्तन तीनो लोको को आहार देकर पालन करने का प्रतीक है, तथा अपने भक्तो को मोक्षरुपी दुग्धपान कराने का प्रतीक है। मुण्डमाला के पचास मुण्ड पचास मातृकावर्णो को धारण करने के कारण शब्दब्रह्म स्वरुपा है। उस शब्द गुण से रजोगुण का टपकना अर्थात सृष्टि का उत्पन्न होना ही, रक्तस्राव है भगवती मायारुपी आवरण से आच्छादित नही है, माया उन्हे अपनी लपेट मे ले नही पाती, यह उनके दिग्म्बरा होने का भावार्थ है। भगवती शवो के...

रुद्राक्ष का प्रयोग, धारण विधि व फायदा

रुद्राक्ष के फायदे : सभी रुद्राक्ष एक प्रकार की तरंगे छोड़ते है जो जातक को शारीरिक रूप से और सकारात्मक उर्जा के रूप में फायदा करती है | शारीरिक रोग जैसे : पेट रोग , गठिया रोग , मानसिक रोग , ह्रदय रोग इस प्रकार के रोगों में रुद्राक्ष धारण करने से लाभ मिलता है | रुद्राक्ष धारण करने से मानसिक तनाव कम होता है | रुद्राक्ष धारण करने से सकारात्मक उर्जा का संचार होता है | रुद्राक्ष धारण करने वाले जातक नकारात्मक शक्तियों से छुटकारा पाते है जैसे : ऊपरी बाधा , नजर दोष , भूत -प्रेत बाधा आदि | विधिवत रुद्राक्ष पहनने से भाग्य उदय होता है | जिन लोगों का भाग्य कमजोर हो, उन्हें रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए | रोग से मुक्ति , कष्टों से छुटकारा और परिवार में सुख-शांति ये सभी सिद्ध रुद्राक्ष धारण करने से संभव होती है | ज्योतिष द्रष्टि से भी रुद्राक्ष बड़ा लाभकारी होता है | जैसे : कुंडली के दोष : शनि दोष , सूर्य दोष , राहु-केतु दोष और काल सर्प दोष आदि में रुद्राक्ष फायदा पहुंचाता है | धार्मिक दृष्टि से रुद्राक्ष का महत्व : – रुद्राक्ष न केवल एक भौतिक वस्तु है बल्कि धार्मिक द्रष्टि से रुद्राक्ष ...

साबर साधना

साबर साधनाएं :  वैदिक अथवा तांत्रोक्त अनेक ऐसे मंत्र हैं, जिसमें साधना करने के लिए अत्यंत सावधानी की जरूरत होती है। असावधानी से कार्य करने पर प्रभाव प्राप्त नहीं होता अथवा सारा श्रम व्यर्थ चला जाता है, परंतु शाबर मंत्रों की साधना या सिद्धि में ऐसी कोई आशंका नहीं होती। यह सही है कि इनकी भाषा सरल और सामान्य होती है। माना जाता है कि लगभग सभी साबर साधनाओं और मंत्रों को अ गुरु गोरखनाथ ने उत्पन्न किया है। ।।ओम् गुरुजी को आदेश गुरुजी को प्रणाम, धरती माता धरती पिता, धरती धरे ना धीरबाजे श्रींगी बाजे तुरतुरि आया गोरखनाथमीन का पुत् मुंज का छड़ा लोहे का कड़ा हमारी पीठ पीछे यति हनुमंत खड़ा, शब्द सांचा पिंड काचास्फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।। इस मन्त्र को सात बार पढ़ कर चाकू य कुश से अपने चारों तरफ रक्षा रेखा खींच ले गोलाकार, स्वयं हनुमानजी साधक की रक्षा करते हैं। शर्त यह है कि मंत्र को विधि विधान से पढ़ा गया हो। साबर मंत्रों को पढ़ने पर ऐसा कुछ भी अनुभव नहीं होता कि इनमें कुछ विशेष प्रभाव है, परंतु मंत्रों का जप किया जाता है तो असाधारण सफलता दृष्टिगोचर होती है। कुछ मंत्र तो ऐसे ...