Posts

Showing posts from May, 2018

ग्रहदोष व शांति के उपाय, सूर्य, चंद्र,मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र

आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक, व्यापारिक परेशानीयो का कारण ग्रहजनित पीडा होती है। इससे राहत के लिये विभिन्न ग्रहो की शांति के उपाय दिये जा रहे है। सूर्य ग्रह की शांति के सरल उपाय जिस व्यक्ति की कुण्डली मे सूर्य २,७,१०,१२ भाव मे हो विशेश कर उनके लिये कई बार किसी समय-विशेष में कोई ग्रह अशुभ फल देता है, ऐसे में उसकी शांति आवश्यक होती है। गृह शांति के लिए कुछ शास्त्रीय उपाय प्रस्तुत हैं। इनमें से किसी एक को भी करने से अशुभ फलों में कमी आती है और शुभ फलों में वृद्धि होती है। ग्रहों के मंत्र की जप संख्या, द्रव्य दान की सूची आदि सभी जानकारी एकसाथ दी जा रही है। मंत्र जप स्वयं करें या किसी कर्मनिष्ठ ब्राह्मण से कराएं। दान द्रव्य सूची में ‍दिए पदार्थों को दान करने के अतिरिक्त उसमें लिखे रत्न-उपरत्न के अभाव में जड़ी को विधिवत् स्वयं धारण करें, शांति होगी। सूर्य के ‍लिए : समय सूर्योदय भगवान शिव की पूजा-अर्चना करें। आदित्य स्तोत्र या गायत्री मंत्र का प्रतिदिन पाठ करें। सूर्य के मूल मंत्र का जप करें। मंत्र : 'ॐ ह्रां ह्रीं ह्रों सूर्याय नम:।' 40 दिन में 7,000 मंत्र का जप होना चाहिए। जप...

काली रहस्य

Image
काली माता के रुप का अर्थ- भगवती के मुख पर मुस्कान बनी रहती है, जिसका अर्थ है, कि वे नित्यानन्द स्वरुपा है।देवी के होठो से रक्त की धारा बहने का अर्थ है, देवी शुद्ध सत्वात्मिका है, तमोगुण व रजोगुण को निकाल रही है। देवी के बाहर निकले दॉत जिससे जीभ को दबाए है, का भावार्थ रजोगुण तमोगुण रुपी जीभ को बाहर कर सतोगुण रुपी उज्जवल दॉतो से दबॉये है। भगवती के स्तन तीनो लोको को आहार देकर पालन करने का प्रतीक है, तथा अपने भक्तो को मोक्षरुपी दुग्धपान कराने का प्रतीक है। मुण्डमाला के पचास मुण्ड पचास मातृकावर्णो को धारण करने के कारण शब्दब्रह्म स्वरुपा है। उस शब्द गुण से रजोगुण का टपकना अर्थात सृष्टि का उत्पन्न होना ही, रक्तस्राव है भगवती मायारुपी आवरण से आच्छादित नही है, माया उन्हे अपनी लपेट मे ले नही पाती, यह उनके दिग्म्बरा होने का भावार्थ है। भगवती शवो के हाथ की करधनी पहने है- शव की भुजाए जीव के कर्म प्रधान हो ने का प्रतीक है, वे भुजाऐं देवी के गुप्तांग को ढॉके हुए है अर्थात नवीन कल्पारंभ होने तक देवी द्वारा सृष्टिकार्य स्थगित रहता है। कल्पान्त मे सभी जीव कर्म भोग पूर्णकर स्थूल शरीर त्यागकर सूक्ष्...

रावण द्वारा शिवजी से प्राप्त सर्वसिद्धिप्रद काली कवच

Image
यह काली कवच शिवजी ने अपने परम भक्त रावण को बताया था। इसके प्रयोग से शांति, पुष्टि, शत्रु मारण, उच्चाटन, स्तम्भन, वशीकरण आदि अति सुलभ है। जब शत्रु का भय हो, सजा का डर हो, आर्थिक स्थिति कमजोर हो, किसी बुरी आत्मा का प्रकोप हो, घर मे आशांति हो, व्ययपार मे घाटा हो, मानसिक तनाव हो, गंभीर बिमारी हो, कही मन न लगता हो, किसी के द्वारा जादू टोना, किया कराया गया हो, तो इस काली कवच का पाठ अवश्य करना चाहिये। साधक पवित्र हो, कार्य सिद्धि के अनुसार, आसन दिशा सामाग्री का चुनाव करे। फिर आचमन, संकल्प , गुरु गणेश की वंदना करे। फिर हाथ मे जल लेकर विनियोग करे। विनियोग मंत्र- ॐ अस्य श्री कालिका कवचस्य भैरव ऋषिः गायत्री छन्दःश्री कालिका देवता सः बैरी सन्धि नाशे विनियोगः।   यह मंत्र पढ़कर जमीन पर जल छोड़ दे। भयंकर रुप धारण किये काली का ध्यान, पूजन करे। फिर कवच का पाठ आरंभ करे। कवचम्-  ॐ कालीघोररुपा सर्व कामप्रदा शुभा। सर्व देवस्तुता देवी शत्रु नाशं करोतु मे।। ह्रीं ह्रीं ह्रूं रुपणी चैव ह्रां ह्रीं ह्रीं संगनी यथा। श्रीं ह्रीं क्षौं स्वरुघायि सर्व शत्रु नाशनी।। श्रीं ह्रीं ...

अपने नाम व शहर ग्राम के नाम से, निवास योग्य स्थान, भूमि परीक्षा, आय व्यय, द्वार दिशा निर्देश

Image
ज्योतिष्य शाश्त्र मे वास्तु विद्या द्वारा रहने के स्थान, गृह निर्माण की विधि व स्थान के फल का निर्णय करते है। हम जिस शहर/ नगर य ग्राम मे रहते है, वह स्थान हमारे लिये लाभप्रद है य नही। किस प्रकार का मकान उत्तम होता है ? किस दिशा का द्वार किसके लिये उत्तम है ? भूमि की परीक्षा कैसे करे ? घर के समीप कौन सा वृक्ष क्या फल देता है? आदि प्रश्नो के उत्तर इस लेख मे दिये जा रहे है।   सर्व प्रथम जिस शहर य ग्राम मे निवास करते है य करना चाहते है, वह आय देने वाला है, य व्यय कराने वाला है। यह जानने के लिये संलग्न चित्र की सहायता लेते है। चित्र मे अपने नाम का प्रथम अक्षर किस वर्ग मे है, यह देखे तथा जिस शहर य ग्राम मे रहना चाहते है उस शहर य ग्राम के नाम का प्रथम अक्षर किस वर्ग मे है यह देखे। जिस ग्राम य दिशा मे घर बनाना हो वह साध्य तथा जो बनवाने य रहने वाला है वह साधक कहा जाता है। साध्य अंक के बाए साधक अंक लिखकर 8 से भाग देने पर शेष लाभ कहा जाता है तथा साधक अंक के बाए साध्य अंक लिखकर 8 से भाग देने पर शेष व्यय कहलाता है। यदि व्यय से लाभ अधिक हो तो वहॉ रहना लाभप्रद होता है, यदि लाभ से व्...

एक गुरु की खोज,गुरु कैसे नष्ट करे शिष्य के पाप, कैसे हो गुरु,

Image
श्रीराम, गुरु कैसे नष्ट करे शिष्य के पाप: ---------------------------------------- सनातन धर्म मे गुरु की बडी महिमा कही है। गुरु को ईश्वर के समान पूज्यनीय वंदनीय कहा गया है।धार्मिक कृत्यो का पुण्यफल बिना गुरुदीक्षा के प्राप्त नही होता।ब्यक्ति बिना गुरुदीक्षा के धार्मिक कृत्य का अधिकारी नही होता।       वर्षो से मै देख रहा हू, सामान्यजन मे व आध्यात्मिक समूह मे गुरु पद को लेकर काफी संशय, विरोधाभास,जिज्ञासा की स्थिति बनी हुई है, लोगो को निर्णय लेने मे असुविधा है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है, कारण की गुरुव्यापार की गतिविधि मे भेड़ झुण्ड की तरह एक जिधर निकला, पीछे पीछे अनेक हो लिये। अब एक गुरु लाखो शिष्यो पर ध्यान दे तो कैसे? अब चर्चा आती है ,सदगुरु, ब्रह्मवेत्ता की, तो क्या ब्रह्मवेता,ब्रह्म की उपासना छोड व्यापार करेगें। स्वघोषित सदगुरु और इनके, ब्रेनवाशडशिष्य, मेच्योर्ड हो गये है और कुशल सेल्समैन की भॉति मोटीवेट कर ही लेते है।जैसे गडेरियॉ भेडो को झुण्ड को नियंत्रित करता है।   मेरा यह लेख उन जिज्ञासुओ को संबोधित है, जो संशय मे है, य ब्रह्मवेत्ता की खोज मे है। गुरु वह ह...

मै कौन हू? मेरी पहचान क्या है?

मै कौन हू ? प्रश्न का उत्तर कठिन नही समझना कठिन लगता है| कारण कि मै स्वयं को पहचान नही पा रहा? मेरा नाम तो मै नही क्योकि होता तो मै यह प्रश्न नही करता, आज जो मेरा नाम है, यदि किसी कारणवश बदल दिया जाय तो क्या मै बदल जाउगा नही न , तो मेरा नाम मै नही ।यह शरीर भी मै नही, क्योकि जन्म जन्म मे शरीर बदलता रहताहै,  मेरी पहचान भी मै नही, पहचान भी बदलती रहती है।तो फिर मै कौन? जीवन्नपि मृत एव- एक ऐसा जीव जो कहने को जीवित होते हुए भी मुर्दा ही है, क्योकि स्वंय की पहचान नही रास्ते का ज्ञान नही  लक्ष्य का पता नही, अत: दुसरो से पुछते है ,मै कौन? मुझे जाना कहॉ? किस रास्ते से? विचार करते है तो पाते है कि  बिना लक्ष्य को जाने अपनी पहचान न मिलेगी अत: लक्ष्य की पहचान प्रथम आवश्यक है| प्रत्येक मनुष्य के मन मे एक ही क्षण मे अनेक विचार उत्पन्न होते हैऔर उनमे बारंबार परिवर्तन भी होते है,अत: विभिन्न प्रकार के मनुष्यो मे लक्ष्य मे भिन्नता होगी, किन्तु तनिक गहराई से विचार करने पर हम पाते है कि वास्तव मे सभी मनुष्यो का एक ही लक्ष्य है, जैसे - कोई पैसो के पीछे पडा है कोई स्वास्थय के, कोई विद्या चा...

क्या कलियुग समाप्त होनेवाला है? कब है कलियुग का अन्त?

पद्म पुराण, मानसागरी,विविध मान्यता प्राप्त सर्वग्राह्य पंचाग, प्रमाणिक ग्रंथ व साहित्य के अनुसार क्या है, युगायन, काल गणना, दिव्य वर्ष, कलियुग का अंत समय। तथा कलियुग के अंत समय का परिवेश और आज के परिवेश के संदर्भ मे तुलना आप स्वंय करे कि कलियुग के अंत के स्वरुप से आज मे अभी कितना अंतर है। मानव के एक वर्ष का देवताओं की एक रात दिन होता है।       एक कल्प का ब्रह्मा जी का दिन व एक कल्प की रात होती है, अतः दो कल्प का ब्रह्मा जी की एक दिन रात होती है। तद्नुसार 720 कल्प का ब्रह्मा का एक वर्ष हुआ। ब्रह्माजी की 100 ब्रह्म वर्ष=72000 कल्प की आयु है। ब्रह्मा जी के एक दिन मे 14 मन्वंतर होते है। एक मन्वंतर 71 चतुर्युग से कुछ अधिक काल का होता है।     एक सौर वर्ष मे 360 दिन होते है।एक दिन मे 24 घंटा ,1घंटा मे ढाई घटी व एक घटी मे, 60 पल, एक पल मे 60 विपल होते है। यह समय का मानक है।  संध्या व संध्याश सहित, युग की आयु इस प्रकार है। युग                        सौर वर्ष सतयुग  - 1728000 त्रेतायुग ...