राम नाम महिमा

नाम स्मरण महिमा
श्री राम जय राम जय जय राम' - यह सात शब्दों वाला तारक मंत्र है। साधारण से दिखने वाले इस मंत्र में जो शक्ति छिपी हुई है, वह अनुभव का विषय है। इसे कोई भी, कहीं भी, कभी भी कर सकता है। फल बराबर मिलता है...... ।
 राम नाम सब कोई कहै, ठग ठाकुर अरु चौर|
 तारे ध्रुव प्रहलाद को वहै नाम कछु और||
     नाम का उच्चारण मात्र करने से, नाम की पवित्रता के कारण फल तो अवश्य ही मिलता है किन्तु बहुत अधिक नही| देवी य देवता का नाम लेते ही मानस पटल पर उस देवी य देवता का रुप दिखायी पडना, उनके गुण कर्मो का स्मरण होना चाहिये, भगवान का सर्वोतमतत्व और अपना अत्यंत क्षुद्रत्व ध्यान मे आना चाहिये, ईश्वर की अपार दया प्रेम से हृदय गद्गद होकर उनके स्वरुप मे मिलने का प्रयत्न होना चाहिये| ऐसे ही नाम स्मरण की महिमा गायी जाती है|
 राम नाम सब कोई कहै, दशरित कहे न कोय|
 एकबार दश रित कहे, कोटि यज्ञ फल होय||
 प्रयुक्त दोहे मे दशरित जिन्हे कहा गया है, वे ही दश नामापराध है, जिनसे नाम स्मरण " रित" ( रिक्त) होना चाहिये | ये नामापराध है- १. निन्दा २. आसुरी प्रकृतिवाले को नाम महिमा बतलाना ३. हरि हर मे भेद दृष्टि रखना ४. वेदो पर विश्वाश न करना ५. शाश्त्रो पर अविश्वाश ६. गुरुपर अविश्वाश ७. नाम महिमा को असत जानना ८. नाम के भरोसे निषिद्ध कर्म करना ९. नाम के भरोसे विहित कर्म न करना १०. भगवन्न नाम के साथ अन्य साधनो की तुलना करना |
    इन दश का परहेज रखा जाय तो नाम जप से शीघ्र परम सिद्घि प्राप्त होती है, इसमे तनिक भी संदेह नही है|

मंत्र क्या है?

मंत्र शब्द का निर्माण

मंत्र शब्द का निर्माण मन से हुआ है। मन के द्वारा और मन के लिए। मन के द्वारा यानी मनन करके और मन के लिए यानी 'मननेन त्रायते इति मन्त्रः' जो मनन करने पर त्राण यानी लक्ष्य पूर्ति कर दे, उसे मन्त्र कहते हैं। मंत्र अक्षरों एवं शब्दों के समूह से बनने वाली वह ध्वनि है जो हमारे लौकिक और पारलौकिक हितों को सिद्ध करने के लिए प्रयुक्त होती है। सभी स्वर व व्यजंन भी मंत्र रुप ही है। यह सृष्टि प्रकाश और शब्द द्वारा निर्मित और संचालित मानी जाती है। इन दोनों में से कोई भी ऊर्जा एक-दूसरे के बिना सक्रिय नहीं हो सकती और शब्द मंत्र का ही स्वरूप है। आप किसी कार्य को या तो स्वयं करते हैं या निर्देश देते हैं। आप निर्देश या तो लिखित स्वरूप में देते हैं या मौखिक रूप में देते हैं। मौखिक रूप में दिए गए निर्देश को हम मंत्र भी कह सकते हैं। हर शब्द और अपशब्द एक मंत्र ही है। इसीलिए अपशब्दों एवं नकारात्मक शब्दों और वचनों के प्रयोग से हमें बचना चाहिए।

किसी भी मंत्र के जाप से पूर्व संबंधित देवता व गणपति के ध्यान के साथ गुरु का ध्यान, स्मरण और पूजन आवश्यक है।
मंत्र का ही क्रियात्मक रुप तंत्र कहा जाता है। और चित्रात्मक रुप यंत्र कहलाता है। वस्तुतः तंत्र, मंत्र, यंत्र एक ही शक्ति के तीन अलग रुप है।
   मंत्र जहॉ तक सर्व मनोरथ सिद्ध करते है वही यदि मंत्र का चुनाव सही न किया जाय य बिना पूर्ण जानकारी के मंत्र का जाप हानिप्रद होता है।
  इसलिये ऋषि मुनियो ने नाम के अनुसार मंत्र का चुनाव करने का निर्देश दिया है।

 मंत्रजप फलदायक न होकर नुकसान भी पहुचा सकते है,जाने क्यो?

मन को केन्द्रित करने के अभ्यास को साधना कहा जाता है। सिद्धि के लिये किया जाने वाला प्रयत्न ही साधना है। तथा उसके उपयोगी उपकरणो को साधन कहते है। साधन के बिना साधना की ओर प्रवृत होना संभव ही नही है। अतः मंत्रसाधना की जानकारी के साथ साथ मंत्रसाधन का सम्यक ज्ञान परमावश्यक है।
       जो मंत्र या क्रियाए कर्ता का अभीष्ट सिद्ध नही कर सकती य अनिष्ट करती है, उन्हे साधन नही कह सकते। यही कारण है कि मंत्रशाश्त्र मे सर्वप्रथम यह विचार किया गया है कि कोई मंत्र साधक का अभीष्ट सिद्ध करेगा य नही।
        मंत्र व तंत्र शाश्त्र के ग्रंथो मे मंत्र को साधन य अभीष्टफलदायक बनाने के लिये निम्न लिखित बातो पर बिशेष ध्यान दिया गया है।
    १ सिद्धादि शोधन २ मंत्रार्थ ३ मंत्रचैतन्य ४ मंत्रो की कुल्लुका ५ मंत्र सेतु ६ महासेतु ७ निर्वाण ८ मुखशोधन ९ प्राणयोग १० दीपनी ११ मंत्र के सूतक १२ मंत्र के दोष १३ मंत्र दोष निवृति के उपाय।
      उपरोक्त बातो का ध्यान रखकर, उपयोग करने से मंत्र साधन बन कर अभीष्टसिद्धि देता है, अन्यथा मंत्र साधक का सबसे बडा शत्रु होकर उसका नाश कर देता है। 
१ सिद्धादि शोधन- किस मंत्र के द्वारा साधक को सिद्धि मिलेगी, दुःख मिलेगा य साधना निष्फल होगी इत्यादि का ज्ञान इस क्रिया के द्वारा किया जाता है।
मंत्र सिद्धादि शोधन विधिमंत्र
२ मंत्रार्थ- मंत्र साधारण शब्द नही। इसका अर्थ गुप्तभाषा है। मंत्र योग मे मंत्रार्थ की भावना को ही जप कहा गया है,और जप से ही सिद्धि होती है। अतः सिद्धि के लिये मंत्र के अर्थ की जानकारी परमावश्यक है।
३मंत्र चैतन्य- साधक के चित्त मे अपने मंत्र के प्रति साधारण शब्द भाव न होकर, मंत्र ,देवता एवं गुरु का ऐक्य हो जाना, उसमे ब्रह्मभाव जाग्रत हो जाना।
 ४मंत्रो की कुल्लुका- रुद्रयामल मे कहा गया है कि जो व्यक्ति कुल्लुका को जाने बिना जप करता है उसकी आयु, विद्या, कीर्ति एवं बल नष्ट हो जाता है।जप आरंभ करते समय जिस देव के मंत्र का जप करना हो उसकी कुल्लुका का सर पर न्यास कर लेना चाहिये।
 ५ मंत्रसेतु- साधक का मंत्र के साथ संबन्ध जोडनेवाला बीज सेतु कहलाता है।मंत्रजप से पूर्व सेतुमंत्र का जप हृदय मे कर लेना चाहिये। ब्राह्मणो व क्षत्रिय के लिये ॐ, वैश्य के लिये फट तथा शूद्र के लिये ह्रीं सेतु बताया गया है।
६ महासेतु- जप से पूर्व महासेतु मंत्र का जप करने से साधक को सभी समय एवं सभी अवस्था मे जप करने का अधिकार मिल जाता है।
कालिका - क्रीं, तारा- हूं, त्रिपुरसुंदरी- ह्रीं तथा शेष सब देवताओ का स्रीं महासेतु कहा गया है।
७ निर्वाण- प्रणव तथा मातृका से संपुटित मूलमंत्र का जप करना निर्वाण कहलाता है।
८ मुखशोधन- जिस देवता का जप करना हो,उस देवता के अनुसार मुखशोधन मंत्र का पहले 
९ प्राणयोग- मायाबीज से पुटित मूलमंत्र का७ बार जप करना प्राणयोग कहलाता है।
१० दीपनी- मूलमंत्र को प्रणव से संपुटित कर ७ बार जप करना
११ मंत्र के सूतक-जप के प्रारंभ व समाप्ति पर  प्रणव से संपुटित मूल मंत्र का १०८ या ७ बार जप करना


शनि, राहू और केतु शांति के विस्तृत उपाय

ग्रहो की स्थित जन्मकुंडली मे जो भाव मे होता है, उस भावपर अन्य ग्रहो की दृष्टि, युति, कारक, भाव आदि की स्थिति, से ग्रह शुभ अशुभ प्रभाव देने मे सक्षम होते है। अतः जब ग्रह अशुभकारक हो, तो उनका उपाय करने से ग्रहो का कोप शांत होकर शुभफल प्राप्त होता है।
इस लेख के माध्ययम से एक एक कर प्रत्येक ग्रह के बारे में जानकारी दी गयी है। अतिरिक्त जानकारी के लिए नि: शुल्क परामर्श के लिए, follwo और coment का प्रयोग करें।
ग्रहदोष सूर्य चंद्र मंगल ग्रह गुरु  शुक्र ग्रह की शांति के बिषय मे पुर्दन के लिए इस सूची को देखा।

ज्योतिष विज्ञान में शनि उपासना
शनि गंभीर और क्रुर प्रकृति के ग्रह है। ये कालकार, तमोगुणी और पाप ग्रह है। कुटनीति, छल, कपट, क्रोध, मोह, क्षण, राजदण्ड, सन्यास आदि शनि के स्वभाव में है।
इसी कारण से आमजन में यह धारणा है कि शनि सदैव अनिष्टकारी ही होते हैं। जो कि पूर्ण सत्य नहीं है। शनि सदैव अनिर्वचनीय नहीं होते हैं। ये तो मनुष्यों के पूर्व संचित कर्मो के अनुसार अच्छा या बुरा फल देते है। शुभ कर्म वालों को खुशी, समृद्धि और उन्नति देते हैं तो अशुभ कर्म वालों को दुःख, दरिद्रता, और सम्मान देते हैं।
शनि राजा को रंक और रंक को राजा बनाने का सामर्थ्य रखना है। इसी कारण से इन्हे भाग्य विधाता भी कहा जा सकता है।
अतः शनि को प्रसन्न कर शुभ फल प्राप्त करने और अशुभ पैरों से बचने के लिए निम्न उपाय किए जा सकते है।

मंत्र जाप :- शनि के मंत्रों के विधिवत जप करने से शनि जनित बाधाओं का निवारण होता है। & शनि शुभ फल प्रदान करते है। शनि की ढैया और साढ़े साती में मंत्र जप योग्य और शीघ्र फलदाय होते हैं। मंत्र जप स्वयं या किसी योग्य पंडित से विधिवत कराने चाहिए।
शनि को प्रसन्न के मंत्र और जप संस्था :-

1. वैदिक मंत्र :- नीलाजं समाभासं रविपुत्रम् यमग्रजम्।
छाया मार्तण्ड सम्भूतम् तम् नमामि शनैस्कृतम् ।।
(जप संख्या 92 हजार)

2. ऊँ शन्नो देवी रबिष्टय भवआप अभिषेक।
प्रतये शंयूर्यभि स्त्रवन्तुनः ।। (जप संख्या २३ हजार)

३. ऊँ स्वः भुवः। स सः खौं खीं खं ऊँ शनिश्चतु नमः ।। (जप संख्या २३ हजार)
४. ऊँ ऐं हनीं स्त्रीं शनैश्चराय नमः। (जप संख्या २३ हजार)
५. ऊँ शं शनये नम: ।। (जप संख्या २३ हजार)

तांत्रिक मंत्र
6. ऊँ खँचुं खूँ सः ।। (19 हजार)
7. ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: ।। (२३ हजार जप)
शनि गायत्री मंत्र

भ ऊँ भगभाय विद्मये मृत्युरूपाय धीमहि
तन्नो शौरि: प्रचोदयात्। (23 हजार जप)
पौराणिक मंत्र

9. ऊँ शं शनैश्चराय नम: ।। (23 हजार जप)

स्त्रोत पाठ द्वारा :- शनि देव का संपूर्ण कष्ट निवारण हेतु ऋषि पिलाप्पद द्वारा रचित स्त्रोत का नित्य प्रात: उठते ही बिस्तर में बैठे-बैठे करना चाहिए।
स्त्रो स्त्र- कोणस्थः पिंगलो भैरुः कृष्णो रौद्रो-न्तको यमः।
सौरि: शनैश्चरौ मन्दः पिप्लादेन संज्ञाः ।।
एतानि दस नामामि पातरूत्थाय यः पठेत्।
शनैश्चर कृतांतर नूर
जिनकी कुंडली में शनि कमज़ोर हैं या शनि पीड़ित हैं उन्हें काले गाय का दान करना चाहिए। काला वस्त्र, उड़द की दाल, काला तिल, चमड़े का जूता, नमक, सरसों का तेल, लोहा, खेती योग्य भूमि, बर्तन और अनाज का दान। शनि से संबंधित रत्न का दान भी श्रेष्ठ होता है। शनि ग्रह की शांति के लिए दान देते समय ध्यान रखें कि संध्या काल हो और शनिवार का दिन हो और दान प्राप्त करने वाला व्यक्ति ग़रीब और वृद्ध हो।शनि के कोप से बचने के लिए व्यक्ति को शनिवार के दिन और शुक्रवार के दिन व्रत रखना चाहिए। लोहे के बर्तन में दही चावल और नमक सहित भिखारियों और कौओं को देना चाहिए। रोटी पर नमक और सरसों का तेल लगाकर कौआ को देना चाहिए। तिल और चावल पक्कर ब्राह्मण को खिलाना चाहिए। अपने भोजन में से काए के लिए एक हिस्सा निकालकर उसे दें। शनि ग्रह से पीड़ित व्यक्ति के लिए हनुमान चालीसा का पाठ, महामृत्युंजय मंत्र का जाप और शनिस्तोत्रम का पाठ भी बहुत लाभदायक होता है। शनि ग्रह के प्रभाव से बचाव के लिए कष्टदायक, वृद्ध और हानिकारकियो के प्रति अच्छा व्यवहार रखें। मोर पंख धारण करने से भी शनि के प्रभाव में कमी आती है।
शनिवार के दिन पीपल वृक्ष की जड़ पर तिल्ली के तेल का दीपक जलाएं।
शनिवार के दिन लोहा, चमड़ा, लकड़ी की वस्तुओं और किसी भी प्रकार का तेल नहीं खरीदना चाहिए।
शनिवार के दिन बाल एवं दाढ़ी-मूँछ नहीं कटवाने चाहिए।
भड्डरी को कड़वे तेल का दान करना चाहिए।
भिखारी को उड़द की दाल की कचौरी खिलानी चाहिए।
किसी दुःखी व्यक्ति के आँसू अपने हाथों से पोंछने चाहिए।
घर में काले पत्थर लगवाना चाहिए।
शनि के प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों के लिए शनिवार का दिन, शनि के नक्षत्र (पुष्य, अनुराधा, उत्तरा-भाद्रपद) और शनि की होरा में अधिक शुभ फल देता है।
क्या न?

जो व्यक्ति शनि ग्रह से पीड़ित हैं उन्हें गरीबों, वृद्धों और नौकरों के प्रति अपमान जनक व्यवहार नहीं करना चाहिए। नमक और नमकीन पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए, सरसों तेल से बने पदार्थ, तिल और मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। शनिवार के दिन सेविंग नहीं करना चाहिए और जमीन पर नहीं सोना चाहिए। शशि से पीड़ित व्यक्ति के लिए काले घोड़े की नाल और नाव की कांटी से बनी अंगूठी भी काफी सस्ती होती है, लेकिन इसे किसी अच्छे पंडित से सलाह और पूजा के पश्चात ही धारण करते हैं। चाहिए।
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कैसे करें राहु ग्रह की शांति
कई बार किसी समय-विशेष में कोई ग्रह अशुभ फल देती है, ऐसे में उसकी शांति शांति होती है। गृह शांति के लिए कुछ शास्त्रीय उपाय प्रस्तुत किए गए हैं। इनमें से किसी एक को भी करने से अशुभ पैरों में कमी आती है और शुभ पैरों में वृद्धि होती है।
योजनाओं के मंत्र की जप संख्या, द्रव्य दान की सूची आदि सभी जानकारी एकसाथ दी जा रही है। मंत्र जप स्वयं करें या किसी कर्मनिष्ठ ब्राह्मण से कराएं।

दान द्रव्य सूची में पदार्थोंदिए पदार्थ को दान करने के अतिरिक्त उसमें लिखित रत्न-उपरत्न के अभाव में जड़ी को विधिवत स्वयं धारण करें, शांति होगी।
राहु के लिए: समय रात्रिकाल
भैरव पूजन या शिवपूजन करें। काल भैरव अष्टक का पाठ करें।
राहु मूल मंत्र का जप रात्रि में 18,000 बार 40 दिन में करें।
मंत्र: ': भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:'।
दान-द्रव्य: गोमेद, सोना, सीसा, तिल, सरसों का तेल, नीला कपड़ा, काला फूल, तलवार, कंबल, घोड़ा, सूप।
शनिवार का व्रत करना चाहिए। भैरव, शिव या पूजा की पूजा करें। 8 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। 

कुंडली में केतु के अशुभ प्रभाव में होने पर चर्म रोग, मानसिक तनाव, आर्थिक नुक्सान, स्वयं को ले कर मूर्फहमी, आपसी तालमेल में कमी, बात बात पर आपा खोना, वाणी का कठोर होना व युवती बोलना, जोड़ों का रोग या मूत्र और किडनी संबंधित बीमारी हो जाती है। संतान को पीड़ा होती है। वाहन दुर्घटना, उदर कस्ट, मस्तिस्क में दर्द आथवा दर्द रहना, अपयश की प्राप्ति, सम्बन्ध ख़राब होना, दिमागी संतुलन ठीक नहीं रहता है, शत्रुओं से मुश्किलें बढ़ने की संभावना बनी रहती है।

उपाय: दुर्गा, शिव व हनुमान की आराधना करे | तिल, जौ किसी हनुमान मंदिर में या किसी यज्ञ स्थान पर दान करे | कान पसवाएँ। सोते समय सर के पास किसी पत्र में जल भरने कर रक्खे और सुबह किसी पेड़ में दाल दे, यह प्रयोग 43 दिन का होता है इसके साथ हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुप्टष्टक, हनुमान बाहुक, सुंदरकांड का पाठ और का कें केतवे नमः का १०८ बार नित्य जाप करना लाभकारी होता है। अपने खाने में से कुत्ते, कौव्वे को भाग दें। तिल व कपिला गाय दान में दें। पक्षिंस कोलेट दे | चिटिओं के लिए भोजन की व्यस्त करना अति महत्व्यपूर्ण है |

कभी भी किसी भी उपाय को 43 दिन करना चहिए तब ही फल प्राप्ति संभव होती है। मंत्रो के जाप के लिए रुद्राक्ष की माला सबसे उचित मानी गई है | इन उपायों का गोचरवश प्रयोग करके कुंडली में अशुभ प्रभाव में स्थित योजनाओं को शुभ प्रभाव में लाया जा सकता है। सम्बंधित ग्रह के देवता की आराधना और उनके जाप, दान उनकी होरा, उनके नक्षत्र में अत्यधिक स्वास्थ्य होते हैं |
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राजेश मिश्र
भास्कर ज्योतिषी एंव तन्त्र अनुसंधान केन्द्र बरईपुर आजमगढ।

ग्रहदोष व शांति के उपाय, सूर्य, चंद्र,मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र

आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक, व्यापारिक परेशानीयो का कारण ग्रहजनित पीडा होती है। इससे राहत के लिये विभिन्न ग्रहो की शांति के उपाय दिये जा रहे है।
सूर्य ग्रह की शांति के सरल उपाय
जिस व्यक्ति की कुण्डली मे सूर्य २,७,१०,१२ भाव मे हो विशेश कर उनके लिये
कई बार किसी समय-विशेष में कोई ग्रह अशुभ फल देता है, ऐसे में उसकी शांति आवश्यक होती है। गृह शांति के लिए कुछ शास्त्रीय उपाय प्रस्तुत हैं। इनमें से किसी एक को भी करने से अशुभ फलों में कमी आती है और शुभ फलों में वृद्धि होती है।
ग्रहों के मंत्र की जप संख्या, द्रव्य दान की सूची आदि सभी जानकारी एकसाथ दी जा रही है। मंत्र जप स्वयं करें या किसी कर्मनिष्ठ ब्राह्मण से कराएं। दान द्रव्य सूची में ‍दिए पदार्थों को दान करने के अतिरिक्त उसमें लिखे रत्न-उपरत्न के अभाव में जड़ी को विधिवत् स्वयं धारण करें, शांति होगी।
सूर्य के ‍लिए : समय सूर्योदय
भगवान शिव की पूजा-अर्चना करें। आदित्य स्तोत्र या गायत्री मंत्र का प्रतिदिन पाठ करें। सूर्य के मूल मंत्र का जप करें।
मंत्र : 'ॐ ह्रां ह्रीं ह्रों सूर्याय नम:।'
40 दिन में 7,000 मंत्र का जप होना चाहिए। जप सूर्योदय काल में करें।
दान-द्रव्य : माणिक, सोना, तांबा, गेहूं, गुड़, घी, लाल कपड़ा, लाल फूल, केशर, मूंगा, लाल गाय, लाल चंदन।
दान का समय : सूर्योदय होना चाहिए। रविवार का व्रत करना चाहिए। रुद्राभिषेक करना चाहिए। एकमुखी या बारहमुखी रुद्राक्ष धारण करें।
चन्द्र ग्रह की शान्ति के उपाय-
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जिनकी कुण्डली मे चन्द्र कमजोर  नीच पाप ग्रह से युत दुःस्थान य किसी प्रकार से अनिष्टकारी हो
चन्द्र के लिए : समय संध्याकाल
शिव एवं पार्वती माता की पूजा करें। अन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ करें।
चंद्र के मूल मंत्र का11,000  जाप करें।
मंत्र : 'ॐ श्रां श्रीं श्रोक्तं चंद्रमसे नम:'।
दान द्रव्य : मोती, सोना, चांदी, चावल, मिश्री, दही, सफेद कपड़ा, सफेद फूल, शंख, कपूर, सफेद बैल, सफेद चंदन।
सोमवार का व्रत करें।सोमवार को देवी पूजन करें।
दोमुखी रुद्राक्ष धारण करें।
मंगल पीडा निवारण
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जिसकी कुण्डली मे मंगल अशुभ भाव (1,4,5,8,9,12 मे मंगल अमंगलकारी) हो, उसे मंगल की शान्ति हेतू निम्न उपाय करने चाहिये
 दान - मूंगा.सोना, तॉबा,मसूर, गुड, घी, लालवस्त्र,केशर ,कस्तुरी,लाल चन्दन (दान अपनी सामर्थ्य के अनसार ही करना चाहिये)
अन्नत मूल(सारिवा) की जड शरीर पर धारण करने से मंगलजनित दोष की शान्ति होती है|
मंगल मंत्र का 10,000 जप किया जाय तो शान्ति होती है  मंगल मंत्र-
एकाक्षरी बीजमंत्र- ऊँ अं अंगारकाय नमः|
तांत्रिक मंत्र- ऊँ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः |
मंगल जाप करनेवाले  जातक को चाहिये की वह अपनी सामर्थ्य अनुसार 4 से8 रत्ती मूगा की अंगूठी प्राणप्रतिष्ठा पूर्वक बनवा अपनी अनामिका उगली मे धारण करे और सामर्थ्य अनुसार सोने य ताबे पर निर्मित भौम यंत्र एवंभौम मूर्ति की स्थापना कर उत्तराभिमुख सूर्योदय के 1 घंटे बाद तक जप करे | जप की समाप्ति पर खैर की लकडी से हवन करे|
 मंगल का व्रत करे- मंगल को नमक न खाये।
बुध ग्रह कीशान्ति के लिये
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जिन मनुष्यो के जन्मपत्रमे बुध लग्न से ६,८,१२ भाव मे  से किसी मे हो नीच अस्त य नीचास्त होकर पीडित करता हो उन्हे निम्न उपाय करने से अवश्य ही लाभ होगा |
दान- पन्ना, सोना ,कांसा,घी,मूंग,हरावस्त्र, पंचरंग के फूल, हाथी दॉत, कपूर, शश्त्र और फल|
 बुध देवता स्वर्णदान से शीघ्र प्रसन्न होते है , दान अपनी सामर्थ्य अनुसार ही करना चाहिये , कर्ज लेकर नही |
बुध की शान्ति हेतू विधारा वृक्ष की जड बुधवार के दिन जबशुभ नक्षत्र हो अपने घर लाकर विधिपूर्वक पूजन करके धारण करे तो निश्चय ही बुध जनित पीडा से राहत मिलेगी|
बुध मंत्र का जाप 9000 करना चाहिये
विनियोग- उदबुध्य ईति मन्त्रस्य परमेष्ठी ऋषिः बुधे देवता त्रिष्टुपछन्दःसौम्यमंत्रजपे विनियोगः
एकाक्षरी बीज मंत्र-ॐ बुं बुधाय नमः|
 तांत्रिक बुध मंत्र- ॐ ब्रां ब्रीं, ब्रौं ,सः बुधाय नमः|

कॉसे के बर्तन मे देशी घी कपूर और शक्कर डालकर पानी मे बहा दे, बर्तन घर ले आये
कुमारी कन्याओ का पूजन करे
जन्मकुडंली मे स्थित गुरु भाव व दृष्टि के अनुसार शुभ व अशुभ फल का तीव्र कारक होता है शुभ भाव मे तो शुभ कारक है किन्तु अशुभ भाव मे होने पर शनि एवं मंगल से भी अधिक कष्टकर होता है, यह मेरा निजी अनुभव है|प्रायः गुरु लग्न व गोचर मे ३,६,८,१२ भावो मे अशुभ होता है|
 जिनकी कुन्डली मे गुरु ३,८,९,१२ भाव मे बैठा हो उन्हे गुरु को प्रसन्न करने का उपाय करना चाहिये|
गुरु प्रतिदान-पुखराज, सोना,चने की दाल,घी, पीला वस्त्र, हल्दी,. गीता की पुस्तक,पीले फल|
 धारण- पुखराज सोने मे य केले की जड,  य सारंगी की जड पीले कपडा य धागा मे|
गुरु स्तुति-
 देवमन्त्री विशालाक्षः सदा लोकहिते स्तः |
 अनेक शिवयैः सम्पूर्णः पीडा दहतु मे गुरुः||
 विनियोग
अस्य श्री वृहस्पतिमन्त्रस्यं गृत्समदऋषि ब्रह्मा देवता त्रिष्टुपछन्द बृहस्पति- मन्त्रजपे विनियोगः
सवीज वैदिक मन्त्र-ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः ॐ भूर्भुवः स्वः| ॐ बृहस्पतेअ्अतियर्ययो् अहदियुमद्विभाति वक्रतमज्जनेषु| यददीदयच्छवसअ्ॠतप्प्रजातु तदस्मासु द्रविणन्धेहि चित्रम् ॐ स्वः भूवः भूः ॐ सः ह्रौ, ह्री, ह्रां ॐ बृहस्पतये नमः|
एकाक्षरी बीज मन्त्र- ॐ बॄं बृहस्पतये नमः|
 तान्त्रिक गुरु मन्त्र- ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः|
 जपसंख्या- 19000
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जन्मकुडंली मे स्थित शुक्र भाव व दृष्टि के अनुसार शुभ व अशुभ दोनो फल का तीव्र कारक होता है शुभ भाव मे तो शुभ कारक है किन्तु अशुभ भाव मे धनहानि  व कलहप्रदायक है प्रायः शुक्र लग्न व गोचर मे ३,६,७,८,१२ भावो मे अशुभ होता है|
 जिनकी कुन्डली मे शुक्र ३,६,७,८,१२ भाव मे बैठा हो नीच अस्त य शत्रुक्षेत्री हो उन्हे शुक्र को प्रसन्न करने का उपाय करना चाहिये|
शुक्रप्रतिदान-हीरा, चॉदी,सोना, चावल,दूध सफेद वस्त्र, कपूर,कस्तुरी,सफेद चन्दन,सफेद मिठाई|
 धारण- हीरा सोने य चादी मे सरपुंखा (झोंझरु) की जड सफेद कपडा य धागा मे|
शुक्र स्तुति-
 दैत्यमन्त्री गुरुस्तेषां प्राणदश्च महाशुतिः |
 प्रभुस्ताराग्रहाणां च पीडां दहतु मे भृगुः||
 विनियोग
अन्नात्परिस्रुत इति मन्त्रस्य प्रजापति ऋषिः अश्विसरस्वतीन्द्रा देवता जगतीछन्दः शुक्र मन्त्रजपे विनियोगः|
सवीज वैदिक मन्त्र-ॐ  द्रां द्रीं द्रौं सः ॐ भूर्भुवः स्वः| ॐ अन्नात्परिस्रूतो रसम्ब्रह्मणा व्यपिवत्क्षत्रम्पयः सोमम्प्रजापतिः| ऋतेन सप्तमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्धसअ्इन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पयोमृतम्मधु ॐ स्वः भूवः भूः ॐ सः द्रौ, द्री, द्रां ॐ शुक्राय नमः|
एकाक्षरी बीज मन्त्र- ॐ शुं शुक्राय नमः|
 तान्त्रिक शुक्र मंत्र- द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः|
 जपसंख्या- 16000

कृपया यह लेख आपको कैसा लगा, अपने सुधाव य शिकायत कमेमट करे। हमारी साईट को फालो करे।
धन्यवाद।

काली रहस्य

काली माता के रुप का अर्थ- भगवती के मुख पर मुस्कान बनी रहती है, जिसका अर्थ है, कि वे नित्यानन्द स्वरुपा है।देवी के होठो से रक्त की धारा बहने का अर्थ है, देवी शुद्ध सत्वात्मिका है, तमोगुण व रजोगुण को निकाल रही है।
देवी के बाहर निकले दॉत जिससे जीभ को दबाए है, का भावार्थ रजोगुण तमोगुण रुपी जीभ को बाहर कर सतोगुण रुपी उज्जवल दॉतो से दबॉये है।
भगवती के स्तन तीनो लोको को आहार देकर पालन करने का प्रतीक है, तथा अपने भक्तो को मोक्षरुपी दुग्धपान कराने का प्रतीक है।
मुण्डमाला के पचास मुण्ड पचास मातृकावर्णो को धारण करने के कारण शब्दब्रह्म स्वरुपा है। उस शब्द गुण से रजोगुण का टपकना अर्थात सृष्टि का उत्पन्न होना ही, रक्तस्राव है
भगवती मायारुपी आवरण से आच्छादित नही है, माया उन्हे अपनी लपेट मे ले नही पाती, यह उनके दिग्म्बरा होने का भावार्थ है।
भगवती शवो के हाथ की करधनी पहने है- शव की भुजाए जीव के कर्म प्रधान हो ने का प्रतीक है, वे भुजाऐं देवी के गुप्तांग को ढॉके हुए है अर्थात नवीन कल्पारंभ होने तक देवी द्वारा सृष्टिकार्य स्थगित रहता है। कल्पान्त मे सभी जीव कर्म भोग पूर्णकर स्थूल शरीर त्यागकर सूक्ष्म शरीर के रुप मे कल्पारंभ पर्यंत जबतक कि उनका मोक्ष नही हो जाता, भगवती के कारण शरीर मे संलग्न रहते है।
देवी के बाए हाथ मे कृपाण वाममार्ग अर्थात शिवजी (शिवजी का एक नाम वामदेव) के बताए मार्ग पर चलने वाले निष्काम भक्तो के अज्ञान को नष्ट कर, उन्हे मुक्ति प्रदान करती है।
देवी के नीचे वाले बॉए हाथ मे कटा सिर वाममार्ग की निम्नतम मानीजाने वाली क्रियाओ मेभी रजोगुण रहित तत्वज्ञान केआधार मस्तक (शुद्धज्ञान) को धारण करने का प्रतीक है।
कालीरुप जिस प्रकार लाल पीला सफेद सभी रंग काले रंग मे समाहित हो जाते है उसी प्रकार सभी जीवो का लय काली मे ही होता है,
भगवती कानो मे बालको के शव पहनी है जो बाल स्वभाव निर्विकार भक्तो की   ओर कान लगाऐ रहती है अर्थात उनकू प्रत्येक कामना ध्यान से सुनती है,इसका प्रतीक है।

काली गायत्री मंत्र- कालिकायै विद्महे, श्मशानवासिन्ये धीमही, तन्नोदेवी प्रचोदयात्।
काली अर्थात काल ( शिव ) की पत्नी। माता काली के रुप-भेद अनेक है, किंतु  जिनमे महाकाली, भद्रकाली, श्मशान काली, दक्षिणा काली, चिन्तामणि काली, स्पर्शमणि काली, संततिप्रदा काली, सिद्धि काली, कामकला काली, हंस काली, गुह्य काली, प्रमुख ११ भेद है। काली के ये भेद वस्तुतः काम्य भेद है। येअनेकानेक भेद आभासी है। मूलतः सभी एक ही शक्ति के विविध रुप है। जो देवी के भक्तगण अपनी कामना के अनुरुप भासते है।और भगवती आद्यकाली, जो अजन्मा तथा निराकार है, अपने भक्तो पर कृपालु होकर उनके हृदयाकाश पर अभिलाषित रुप मे साकार हो जाती है। और इस प्रकार देवी भगवती निराकार होते हुए भी साकार है।

जो साधक सभी प्रकार की सिद्धि देनेवाली माता काली का ध्यान व मंत्रजप करता है, वह तीनो लोको को वश मे कर सकता है, इस संसार मे उसके लिये दुर्लभ कुछ नही। भगवती काली के मंत्र साधारण विधियो व अल्पश्रम से ही सिद्ध हो जाते है। और साधक को मनोवांछित फल प्रदान करते है।
   किसी भी मंत्र की सिद्धि के लिये गुरु से दीक्षित होना अनिवार्य है। गुरु की कृपा आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन के बिना कोई भी मंत्र सिद्ध नही हो पाता।

सर्व सिद्धिदायक काली मंत्र व विधि

रावण द्वारा शिवजी से प्राप्त सर्वसिद्धिप्रद काली कवच

यह काली कवच शिवजी ने अपने परम भक्त रावण को बताया था। इसके प्रयोग से शांति, पुष्टि, शत्रु मारण, उच्चाटन, स्तम्भन, वशीकरण आदि अति सुलभ है।
जब शत्रु का भय हो, सजा का डर हो, आर्थिक स्थिति कमजोर हो, किसी बुरी आत्मा का प्रकोप हो, घर मे आशांति हो, व्ययपार मे घाटा हो, मानसिक तनाव हो, गंभीर बिमारी हो, कही मन न लगता हो, किसी के द्वारा जादू टोना, किया कराया गया हो, तो इस काली कवच का पाठ अवश्य करना चाहिये।
साधक पवित्र हो, कार्य सिद्धि के अनुसार, आसन दिशा सामाग्री का चुनाव करे। फिर आचमन, संकल्प , गुरु गणेश की वंदना करे। फिर हाथ मे जल लेकर विनियोग करे।
विनियोग मंत्र-
ॐ अस्य श्री कालिका कवचस्य भैरव ऋषिः गायत्री छन्दःश्री कालिका देवता सः बैरी सन्धि नाशे विनियोगः।
  यह मंत्र पढ़कर जमीन पर जल छोड़ दे।
भयंकर रुप धारण किये काली का ध्यान, पूजन करे। फिर कवच का पाठ आरंभ करे।
कवचम्- 
ॐ कालीघोररुपा सर्व कामप्रदा शुभा।
सर्व देवस्तुता देवी शत्रु नाशं करोतु मे।।
ह्रीं ह्रीं ह्रूं रुपणी चैव ह्रां ह्रीं ह्रीं संगनी यथा।
श्रीं ह्रीं क्षौं स्वरुघायि सर्व शत्रु नाशनी।।
श्रीं ह्रीं ऐं रुपणी देवीभवबन्ध विमोचनी।
यथा शुम्भो हतो दैत्यो निशुम्भश्च महासुराः।।
बैरि नाशाय बन्दे तां कालिकां शंकर प्रियाम।
 ब्राह्मी शैवी वैष्णवी न वाराही नारसिंहिका।।
कौमाज्येन्द्री च चामुण्डा खादन्तु मम विद्विषः।
सुरेश्वरि घोरु रुपा चण्ड मुण्ड विनाशिनी ।।
मुण्डमाला वृतांगी च सर्वतः पातु मां सदा।
ह्रीं ह्रीं ह्रीं कालिके घोरे द्रष्ट्वैरुधिरप्रिये, रुधिरा।।
पूर्णचक्रे चरुविरेण बृत्तस्तनि, मम शत्रुन खादय खादय, हिंसय हिंसय, मारय मारय, भिंधि भिंधि, छिन्धि छिन्धि,उच्चाट्य, उच्चाट्य द्रावय द्रावय, शोषय शोषय, स्वाहा।यातुधानान चामुण्डे ह्रीं ह्रीं वां काली कार्ये सर्व शत्रुन समर्यप्यामि स्वाहा। ॐ जय विजय किरि किरि कटि कटि मर्दय मर्दय मोहय मोहय हर हर मम रिपून ध्वंसय ध्वंसय भक्षय भक्षय त्रोटय त्रोटय, यातुधानान चामुण्डे सर्वे सनान् राज्ञो राजपुरुषान् राजश्रियं मे देहि पूतन धान्य जवक्ष जवक्ष क्षां क्षों क्षें क्षौं क्षूं स्वाहा।
  यह दिव्य काली कवच रावण द्वारा शिवजी से प्राप्त किया गया है। इस कवच के भक्तिभाव से नित्य पाठ करने से शत्रुओ का नाश हो जाता है। इस कवच का १००० पाठ , १०० हवन तथा १० तर्पण १ मार्जन व एक ब्राहम्ण को भोजन कराने  से  सिद्ध हो जाता है।
 फिर इसके विविध प्रयोग भिन्न भिन्न कार्यो की सफलता के लिये करना चाहिये। सिद्धि के उपरांत इसके प्रयोग की विधि दुरुपयोग को रोकने के लिये नही दी जा रही है।
 सामान्य शांति के लिये गुरु गणेश की वंदना, माता काली का ध्यान व शोडषोपचार य पंचोपंचार, य मानसिक,पूजन करके मात्र पाठ करने से ही चमत्कारिक लाभ मिलता है। यह मेरे द्वारा परीक्षित है।
   


अपने नाम व शहर ग्राम के नाम से, निवास योग्य स्थान, भूमि परीक्षा, आय व्यय, द्वार दिशा निर्देश

ज्योतिष्य शाश्त्र मे वास्तु विद्या द्वारा रहने के स्थान, गृह निर्माण की विधि व स्थान के फल का निर्णय करते है।
हम जिस शहर/ नगर य ग्राम मे रहते है, वह स्थान हमारे लिये लाभप्रद है य नही। किस प्रकार का मकान उत्तम होता है ? किस दिशा का द्वार किसके लिये उत्तम है ? भूमि की परीक्षा कैसे करे ? घर के समीप कौन सा वृक्ष क्या फल देता है? आदि प्रश्नो के उत्तर इस लेख मे दिये जा रहे है।
  सर्व प्रथम जिस शहर य ग्राम मे निवास करते है य करना चाहते है, वह आय देने वाला है, य व्यय कराने वाला है। यह जानने के लिये संलग्न चित्र की सहायता लेते है।
चित्र मे अपने नाम का प्रथम अक्षर किस वर्ग मे है, यह देखे तथा जिस शहर य ग्राम मे रहना चाहते है उस शहर य ग्राम के नाम का प्रथम अक्षर किस वर्ग मे है यह देखे। जिस ग्राम य दिशा मे घर बनाना हो वह साध्य तथा जो बनवाने य रहने वाला है वह साधक कहा जाता है।
साध्य अंक के बाए साधक अंक लिखकर 8 से भाग देने पर शेष लाभ कहा जाता है तथा साधक अंक के बाए साध्य अंक लिखकर 8 से भाग देने पर शेष व्यय कहलाता है। यदि व्यय से लाभ अधिक हो तो वहॉ रहना लाभप्रद होता है, यदि लाभ से व्यय अधिक हो तो हानि होती है।
उदाहरण: मान लिजिए राजेश को बरईपुर ग्राम मे रहना है तो, साधक राजेश के प्रथम नाम का अक्षर  र  यवर्ग मे पड़ता है जिसकी संख्या 7 है, तथा साध्य बरईपुर का प्रथम अक्षर ब  पवर्ग मे पड़ता है, जो कि 6 अंक सूचित करता है।( देखिये संलग्न चित्र ) 
 अतः सूत्रानुसार :
साधक साध्य÷ 8 =  शेष लाभ
76÷8= 4 शेष
साध्य साधक÷8=शेष व्यय
67÷8=3 शेष
यहॉ व्यय से लाभ अधिक होने से यह स्थान लाभदायक है।
नोट- यदि भाग देने पर शून्य आये तो उसे 8 ही समझे।
इस तालिका के अनुसार अपने वर्ग से पॉचवा वर्ग बैरी होता है, अतः इसमे निवास उपयुक्त नही होता।
दूसरी विधि: 
~~~~~~ अपनी नाम राशि से नगर य ग्राम की राशि दूसरी, पॉचवी, नवी, दसवी, य ग्यारहवी हो तो  वह नगर / ग्राम निवास के लिये शुभ होती है। तथा यदि एक, य सातवी हो तो शत्रुता होती है।तीसरी य छठी हो तो हानि होती है। चौथी आठवी य बारहवी हो तो रोग होता है।
अब जिस भूमि पर मकान का निर्माण करना है, उसके लिये भूमि की परीक्षा की विधि कहते है। सांयकाल गृह स्वामी के हाथ से, एक हाथ लम्बा एक हाथ चौडा तथा एक हाथ गहरा गड्ढा खोदकर पानी से भरवा दे। पुनः प्रातःकाल उठकर देखें, गड्ढे मे पानी दिखाई दे तो वृद्धिप्रद, केवल कीचड़ बचे तो मध्यम, तथा यदि दरार दिखाई दे तो अशुभ समझना चाहिये।
मकान की लम्बाई दक्षिण से उत्तर शुभ होती है।
  किस राशि के लिये किस दिशा का द्वार शुभ होता है, अब उसे कहते है।
कर्क, वृश्चिक, मीन-- पूर्व दिशा मे।
कन्या, मकर, मिथुन -- दक्षिण दिशा मे।
तुला, कुम्भ, वृष -- पश्चिम दिशा मे।
मेष, सिंह, धनु -- उत्तर दिशा मे।

अब घर के समीप स्थित वृक्ष का वास्तु जनित प्रभाव बताते है।
घर के समीपस्थ वृक्ष का वास्तुजनित प्रभाव- अश्वत्थं च कदम्बं च कदलीबीजपूरकम्|
गृहे यस्य प्ररोहन्ति स गृही न प्ररोहति||
पीपल कदम्ब केला बीजू नींबू ये जिस घर मे होते है, उसमे रहनेवाले की वंशवृद्धि नही होती| घर मे कॉटे वाले वृक्ष शत्रुका भय दूधवाले वृक्ष धन का नाश और फलवाले वृक्ष संतान का नाश करते है

अशोक, शमी, मौलसिरी,  चम्पा, अर्जुन , कटहल, केतकी, चमेली, नारियल, महुआ, वट, सेमल, बकुल , शाल आदि वृक्ष गृह व गौशाला के  समीप शुभ है|
 यदि निम्न क्रम से वृक्ष लगाये जाय तो अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे- पूर्व मे बरगद, दक्षिण मे गूलर, दक्षिण व नैऋत्य मे जामुन कदम्ब, पश्चिम मे पीपल, वायव्य मे बेल, आग्नेय मे अनार, उत्तर मे पाकड़, ईशान मे अॉवला, ईशान पूर्व मे कटहल व आम|
 उपरोक्तदिशा मे परिवर्तन से हानिकर है, वृक्षरोपण करते समय निम्न मंत्र पढे़- ॐ वसुधेति शीतेतिपुण्यदेति धरेति च| नमस्ते शुभगे देवि द्रुमोऽयं त्वयि रोप्यते||
 शुभ मुहुर्त मे लगाये|| शंका समाधान हेतु टिप्पणी मे संपर्क करे।
- नारद पुराण व अग्नि पुराण
 जय श्रीराम||

जीवित श्राद्ध प्रमाण संग्रह,

  प्रमाण-संग्रह (१) जीवच्छ्राद्धकी परिभाषा अपनी जीवितावस्थामें ही स्वयंके कल्याणके उद्देश्यसे किया जानेवाला श्राद्ध जीवच्छ्राद्ध कहलाता है- ...