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Showing posts from April, 2018

मांस भक्षण क्यो

श्रीराम।।      प्रायश्चित के लिये चान्द्रायण व्रत आदि क्यो करते है? व्रतोपवास क्यो किया जाता है? शाश्त्र अल्पाहार के लिये क्यो कहता है? भोजन की आवश्यकता क्यो है? आईये जानते है, इस बिषय मे  पं़राजेश मिश्र  "कण" के शाश्त्रीय लेख द्ववारा।  भोजन स्वाद के लिये नही, शरीर की रक्षा के लिये है। सुस्वादु भोजन व अत्यधिक भोजन शरीर को रुग्ण करते है। अतः अल्पाहार की बाते शाश्त्रो मे है। वनस्पति मे संवेदना नही इसलिये इसका आहार उचित व पशुओ मे संवेदना है इसलिये उसका आहार अनुचित है , यह तर्क पूरी तरह तो उचित नही। किंतु जीवन रक्षण हेतु अन्न,फल , दूग्धादि की प्रमुखता उपलब्धता के आधार पर है। यदि इनका प्रयोग न किया जाय तो यह अल्प काल मे नष्ट हो जाते है। अन्न का भोजनादि मे उतना ही प्रयोग किया जाना चाहिये, जिससे जीवन बचाया जा सके। न कि पूर्ण रुपेण पेट भरने व स्वाद के लिये।प्रथम तो वैसे फल जो बिना बीज के है, ही भोज्य है, तदुपरांत अन्नादि।  यदि अन्न का अभाव हो, तथा जीवन पर संकट हो,भोजन के बिना प्राण जाने का भय हो, तो मॉसांदि भक्षण मे दोष नही।( मनुस्मृति) । अनेक शाश्त्रो मे जी...

स्वप्नफल विचार, दुःस्वप्न निराकरण

प्रायः हमलोग स्वप्न देखते है, और उसका फल जानने की तीव्र इच्छा होती है। आज इस बिषय पर विस्तृत जानकारी उपलबध करायी जा रही है। शुभ स्वप्न स्वप्न मे- राजा, मंत्री, ब्राह्म्ण, देवता ,गुरु, श्वेतवस्त्र धारण किये स्त्री इनके दर्शन व आशीर्वाद मिलना, बडे य उचे मकान, पर्वत, घोडा, सिंह आदि का दर्शन य उसपर चढ़ना, खून, खून से स्नान, खून की वर्षा, अपने सिर का छेदन, अपना मरण, शैय्या ( bed ) का जलना, वेद ध्वनि का सुनना, फूल देखना, दर्पण मिलना, दही चावल का भोजन, जुआ, लडाई, विवाद मे अपनी जीत, इंद्र धनुष का देखना,  ये सभी धन सम्मान व ऐश्वर्य की वृद्धि, तथा कष्टो से मुक्ति कराने वाले है।      यदि स्वप्न मे फल पुष्प मे सफेद सर्प काटे तो जल्द ही विषेष धन की प्राप्ति हो।    स्वप्न मे सप्प य बिच्छू के काटने से रक्त निकले तो विपत्ति दूर होकर सुख होवे।     हाथ मे हथकडी पैरो मे जंजीर का बंधन,पुरुष य नारी के हाथ मे तलवार,जूता, खडाउ, देखना, श्वेतवस्त्रवाली स्त्री का स्नान करना, अपने पैर के मॉस को खाते देखना, सर्प दिखना,  पान मिलना, ऐसे स्वप्न लक्ष्मी प्राप्ति व ...

भूतलिपि साधना, यंत्र साधना, यंत्र कैसे काम करता है।

यंत्र निर्माणकर्ता को यंत्र की सिद्धि हेतु भूतलिपि की उपासना करनी चाहिये।इसकी सिद्धि किये बिना  यंत्र अपना चमत्कृत फल नही देते।      भूतलिपि- अं इं उं ऋं लृं एं ऐं ओं औं हं यं रं वं लं  डं. कं खं घं गं ञं चं छं झं जं णं टं ठं ढं डं नं तम धं दं मं पं फं भं बं शं षं सं   विनियोग- अस्याः भूतलिपेः दक्षिणामूर्तिऋषिः गायत्री छन्दः वर्णेश्वरी देवता ममाभीष्टसिद्धये जपे विनियोगः।    षडग्ंडन्यासः - हं यं रं वं लं हृदयाय नमः। डं. कं खं घं गं शिरसे स्वाहा। ञं चं छं झं जं शिखायै वषट। णं टं ठं ढं डं कवचाय हुम । नं तं थं धं दं नेत्र त्रयाय वौषट। मं पं फं भं बं अस्त्राय फट्। वर्णन्यास- ॐ अं नमः- गुदे। ॐ इं नमः- लिंगे। ॐ उ नमः - नाभौ। ॐऋ नमः- हृदि। ॐ लृ नमः- कण्ठे। ॐ एं नमः- भ्रूमध्ये। ॐ ऐं नमः- ललाटे। ॐ ओं नमः- शिरसि। ॐऔं नमः - ब्रह्मरन्ध्र। ॐ हं नमः - उर्ध्वमुखे। ॐ यं नमः- पूर्वमुखे। ॐ रं नमः - दक्षिणमुखे।ॐ वं नमः- उत्तरमुखे। ॐ लं नमः - पश्चिममुखे। ॐ डं़ नमः- दक्षहस्ताग्रे। ॐ कं नमः दक्ष हस्तमूले।  ॐ खं नमः - दक्षकूर्परे। ॐ घं नमः- दक्ष हस्ता...

मंत्र सिद्धि के उपाय व मंत्र सिद्धि के लक्षण

मंत्र सिद्यि के उपाय- यदि विधिवत मन्त्र का पुरश्चरण करने पर भी सिद्धि न मिले तो उस मंत्र का पुनः पुरश्चरण करना चाहिये। क्योकि अनेकानेक जन्मो के अर्जित पाप सिद्धि मे बाधक होते है। यदि ३ बार पुरश्चरण करने पर भी सिद्धि न मिले तो निम्न सात उपाय करने चाहिये।   भ्रामण- यंत्र पर एक वायुबीज ( यं) और एक मंत्राक्षर इस क्रम से पूरे मंत्र के अक्षरो को वायुबीज स् सम्पुटित कर शिलारस, कपूर, कुंकुम, खस, एवं चंदन को मिलाकर उसी से यंत्र पर पूरा मंत्र लिखना चाहिये।पुनः इस यंत्र को दूध, घी, मधु एवं जल मिलाकर उसी मे डाल दे और विधिवत पूजन जप हवन करे। इस क्रिया को भ्रामण कहा जाता है। ऐसा करके पुरश्चरण करने से शीघ्र सिद्धि मिलती है।   रोधन- वाग्बीज(ऐं) सेसम्पुटित मूल मंत्र का जप करना रोधन कहलाता है।   वशीकरण-आलता, लालचंदव,कूट,धतुरे के बीज एवं मैनशिल इस सब को मिलाकर उससे भोजपत्र पर मूल मंत्र लिखकर उसे गले मे धारण करना वशीकरण कहा जाता है।   पीडन- अधरोत्तर- योग से मंत्र का जप करते हुए अधरोत्तर- स्वरुपणी देवता की पूजी करनी चाहिये।पुनः अकवन के दूध से मंत्र लिखकर उसे पैर से दबाकर हवन करन...

पूजा पाठ जप तप करने वाले दुखी क्यो रहते है

प्रायः लोग कहा करते है कि मै वर्षो से पूजा, पाठ, जप, तप कर रहा हू, किंतु कोई लाभ नही मिलता मै परेशान रहता हू। फलाना व्यक्ति कोई पूजा पाठ नही करता वह बडा सुखी है। पूजा पाठ से कुछ नही होता। मेरा पूजा पाठ से विश्वास उठ रहा है। और प्रायः ऐसे लोगो को ईश्वर परीक्षा लेते है कहकर सांत्वना दी जाती है। लेकिन प्रायः यह सत्य नही होता। क्योकि इसके पीछे एक बडा राज यह है कि अधिकतर लोगो को पूजा जप तप मे मंत्र व साधन की सही जानकारी का अभाव होता है।प्रत्येक मंत्र अलग अलग व्यक्ति के लिये अलग अलग प्रभावकारी हो सकते है, जो यह जाने बिना जाप करता है  कि यह मंत्र उसके लिये लाभकारी नही है और वह जप करता है। और यही उनके दुख का कारण बनता है। यदि आप भी जानना चाहते है कि कौन सा मंत्र आपके लिये लाभकारी य हानिप्रद है तो हमारे ब्लाग के मुख पृष्ठ से जुडिये। मंत्र व साधन की जानकारी के लिये   यहॉ   दबाए। मंत्र तंत्र यंत्र एक ही शक्ति के तीन रुप है। व्यक्ति की शक्ति को  जगाकर उसमे गुरुतर शक्ति का संचार करने वाला गूढ़ रहस्य मंत्र कहलाता है। मन्त्र का ही चित्रात्मक रुप यंत्र है, तथा क्रियात्मक रु...

कलियुग मे शीघ्र सिद्ध देने वाले मंत्र

आईये जानते है, कि वे कौन से मंत्र है जो कलियुग मे शीघ्र फल देने वाले है। और कौन सा मंत्र आपके लिये होगा शीघ्र फलदायी  ऋण व धन शोधन प्रकार कलियुग मे जो सिद्धिदायक मंत्र है, उन्हे बतलाता हू।    नृसिंह का एकाक्षर मंत्र- क्ष्रौं नृसिंह का त्र्यक्षर मंत्र - ह्रीं क्ष्रौं ह्रीं नृसिंह का अनुष्टुप् मंत्र- उग्र वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नृसिंह भीषणं भद्र मृत्युं-मृत्युं नमाम्यहम।। कार्तवीर्यार्जुन का एकाक्षर मंत्र- क्रों कार्तवीर्यार्जुन का अनुष्टुप् मन्त्र-   कार्तवीर्यार्जुनो नाम राजा बाहुसहस्रवान्।   यस्य स्मरण मात्रेण गतं नष्टं च   लभ्यते।। हयग्रीव मंत्र- ह्ंसूं हयग्रीव का अनुष्टुप् मंत्र- उद्गिरद् प्रणवोद्गीथ सर्ववागीश्वरेश्वर। सर्व वेदमयाचिन्त्य सर्व बोधय बोधय।। चिन्तामणि मंत्र-क्ष्म्न्यों शाश्त्र वचन- अघोरा दक्षिणामूर्तिरुमामाहेश्वरो मनुः। हयग्रीवोवराहश्चलक्ष्मीनारायणस् तथा।। प्रणवाद्याश्चतुर्वर्णा वह्नेर्मंत्रास्तथावरवेः। प्रणवाद्योगणपतिर्हरिद्रागणना यकः।। सौरोष्टाक्षरमन्त्रश्चतथारा मषडक्षर। म...

मंत्रो के ऋण व धन शोधन विधि

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पूर्व के लेख मे आपने पढा, अब आगे अब मंत्र के ऋण- धन शुद्धि की विधि बताते है।ऋणि- धनि चक्र की सहायता से मंत्र के वर्णो के स्वर व व्यञ्जंनो को अलग कर लेवे। फिर अक्षर के उपर वाले कोष्ठक से अंक लेने चाहिये। फिर समस्त स्वर व्यंञ्जन के अंको को जोडकर ८ का भाग देवे। जो शेष बचे वह मंत्र राशि है। इसी रीति से नाम के स्वर व व्यंञ्जन के लिये नीचे लिखे अंक लेकर उनका योग करे एवं ८ का भाग दे। शेष नाम राशि होगी।   दोनो शेष मे जो राशि अधिक होगी वह ऋणी एवं जो कम होगी वह धनी कहलाती है। यदि मंत्र ऋणी हो तो ही ग्रहण करना चाहिये धनी नही। उदाहरण : मान लिजिए  कि देवदत्त को ' ऐं नम: भगवति वद वद वाग्देवि स्वाहा' मंत्र लेना है।  नामाक्षर एवं अंक: देवदत्त  = द्=७ ए्=३ व्=७ अ=१० द्=७ अ=१०त्=८ त्=८अ=१० कुल संख्या का योग ७०है अत: ७०÷८=६ मंत्राक्षर एवं अंक ऐ=४ अँ=८ न्=५ अ=१४ म्=२ अः=९ व्=४ अ=१४ द्=४ अ=१४ व्=४ अ=१४ व्=४ आ=१४ ग्=२ द्=४ ए=६ व्=४ इ=२७ स=८ व्=४ आ=१४ ह्=९ आ=१४  कुल संख्याओ का योग =२२४  इसमे८ आठ का भाग देने पर ८ शेष बचता है। अत: नाम राशि ६ से मंत्रराशि ८ अधिक हो...

आयु और मंत्र के प्रकार कौन मंत्र किस आयु मे सिद्धि देते है

बीजमन्त्र, मन्त्र तथा मालामंत्र मंत्रो के यह तीन भेद बताया जाता है। एक से दश अक्षर तक के मंत्र बीजमंत्र, ग्यारह से बीस अक्षर तक के मंत्र, मंत्र तथा इक्कीस व उससे अधिक अक्षर के मंत्र मालामंत्र कहे जाते है। विविध आयु अवस्था मे सिद्धिदायक मंत्र    बीजमंत्र- उपासक की बाल्यवस्था मे बीज मंत्र सिद्ध होते है। मंत्र- युवावस्था मे मंत्र सिद्ध होते है। मालामंत्र- वृद्धावस्था मे मालामंत्र सिद्ध होते है। उक्त अवस्था से भिन्न अवस्था मे साधक को अपने अभीष्ट सिद्धि के लिये बीजमंत्र आदि को द्विगुणित जप करना चाहिये। 'वौषट' मंत्रो के तीन प्रकार- पुरुष, स्त्री एवं नपुंसक मंत्र- जिन मंत्रो के अन्त मे ' वषट्' या 'फट्' होता है वह पुरुष मंत्र कहलाते है। जिन मन्त्रो के अंत मे 'वौषट' एवं स्वाहा लगा हो वह स्त्री तथा जिनके अन्त मे ' हुं' एवं ' नमः' हो नपुसंक होते है। वश्य, उच्चाटन एवं स्तम्भन मे पुरुष मन्त्र सिद्धिदायक, क्षुद्रकर्म एवं रोगो के नाश मे स्त्री मंत्र शीघ्र सिद्धि प्रद होते है। अभिचार मे नपुंसक मंत्र सिद्धिदायक कहे गये है।  ...

सर्वसंकट हरण काली मंत्र व विधि

सर्वसिद्धिप्रद सौम्य श्मशान काली मंत्र जप विधि- गृह कलह, कर्ज, शत्रु पीडा,पदोन्नति मे बाधा, ग्रहबाधा, प्रेतबाधा, गृहदोष आदि समस्या के निवारण हेतु, यह अनुष्ठान परमोपयोगी है। सर्व प्रथम पवित्र होकर आचमन,शिखा बंधन, गुरुवंदन, संकल्प करे। पश्चात माता काली का यथासंभव षोडषोपचार, पूजन करे। रक्त पुष्प अर्पित करे। फिर निम्नानुसार- विनियोग:-अस्य श्मशानकाली मंत्रस्य भृगुऋषी: । त्रिवृच्छन्द: । श्मशानकाली देवता। ऐं बीजम । ह्रीं शक्ति: । क्लीं कीलकम । मम सर्वेअभीष्ट सिद्धये जपे विनियोग: । ध्यान:-अन्जनाद्रिनिभां देवी श्मशानालय वासीनीं ।रक्तनेत्रां मुक्तकेशीं शुष्कमांसातिभैरवां ॥पिंगलाक्षीं वामहस्तेन मद्दपूर्णा समांसकाम ।सद्द: कृ तं शिरो दक्ष हस्तेनदधतीं शिवाम ॥स्मितवक्त्रां सदा चाम मांसचर्वणतत्पराम ।नानालंकार भूशांगीनग्नाम मत्तां सदा शवै: ॥   हृदयादि षडंगन्यास:-ऐं हृदयाय नम: ।ह्रीं शिरसे स्वाहा: ।श्रीं शिखायै वषट ।क्लीं कवचाय हुं ।कालिके नेत्रत्रयाय वौषट ।ऐं श्रीं क्लीं कालिके ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं अस्त्राय फट।इति हृदयादि षडंगन्यास: ॥मंत्र:-॥ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं कालिके क्लीं श्...

सर्वसिद्धिप्रद कालिका मंत्र

साधक अपने नाम से सिद्धादिशोधन के पश्चात ही इस मंत्र का जप करे कालिका का यह अचूक मंत्र है।यदि विधि विधान से जप पूजादि किया जाय तो माता शीघ्र प्रसन्न होकर ऐच्छिक / मनोवांक्षित फल देती है। मंत्र  : ॐ नमो काली कंकाली महाकाली मुख सुन्दर जिह्वा वाली, चार वीर भैरों चौरासी, चार बत्ती पूजूं पान ए मिठाई,माता काली की दुहाई,शब्द सॉचा, पिण्ड कॉचा, फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा। इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप करने से आर्थिक लाभ व पारिवारिक सुख मिलता है। माता काली की कृपा से सब काम संभव हो जाते हैं। किसी भी मंगलवार या शुक्रवार के दिन, जब चतुर्थी य अष्टमी पडे, तो शुरु करे। काली माता को मीठा पान व मिठाई का भोग लगाते रहें। तथा मूर्ति य चित्र के समीप दीपक जलावें। लाल पुष्प अर्पण करे।   माता काली अपने भक्तों को सभी तरह की परेशानियों से बचाती हैं। १लंबे समय से चली आ रही बीमारी दूर हो जाती हैं। २ ऐसी बीमारियां जिनका इलाज संभव नहीं है, वह भी काली की पूजा से समाप्त हो जाती हैं। ३काली के पूजक पर काले जादू, टोने-टोटकों का प्रभाव नहीं पड़ता। ४हर तरह की बुरी आत्माओं भूत प्रेत, नजर द...

मंत्र शोधन के अपवाद

                              नास्ति मंत्र समो रिपु। मंत्र के समान कोई शत्रु नही, यह शाश्त्रो मे बार बार बताया गया है। एक ही मंत्र अलग अलग व्यक्तियो के लिये अलग अलग परिणाम दे सकते है।  मंत्रदीक्षा य जाप से पूर्व मंत्र शोधन य सिद्धादि शोधन परमावश्यक है।अन्यथा कल्याण के स्थान पर भारी हानि हो सकती है।   सिद्धादि शोधन विधि- इसके लिये अकथह चक्र य अकडम चक्र का प्रयोग किया जाता है। मंत्र के चार प्रकार है। १. सिद्ध- सिद्धमंत्र बतायी गयी संख्या का जप करने से सिद्ध होता है। २. साध्य- यह बतायी संख्या से दूना जाप करने से सिद्ध होता है। ३. सुसिद्ध- यह बतायी संख्या का मात्र आधा जप करने से सिद्ध हो जाता है। ४. अरिमंत्र- यह साधक का विनाश कर देता है। अकडमचक्र द्वारा सिद्धादि शोधन की विधि यह है कि साधक के नाम का प्रथमाक्षर जिस कोष्ठ मे हो वहा से मंत्र का प्रथमाक्षर किस कोष्ठ मे है, यह गिनने पर मंत्र की फलप्रद स्थिति का ज्ञान होता है। नाम के प्रथमाक्षर से मंत्र का प्रथमाक्षर १,५,९,१३वें कोष्ठक मे पडे तो सिद्ध, २,६,...

मंत्र सिद्धादिशोधन विधि, मंत्र का महत्व, मंत्र से हानि य लाभ

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     नास्ति मंत्र समो रिपु। मंत्र के समान कोई शत्रु नही, यह शाश्त्रो मे बार बार बताया गया है। एक ही मंत्र अलग अलग व्यक्तियो के लिये अलग अलग परिणाम दे सकते है।  मंत्रदीक्षा य जाप से पूर्व मंत्र शोधन य सिद्धादि शोधन परमावश्यक है।अन्यथा कल्याण के स्थान पर भारी हानि हो सकती है।   सिद्धादि शोधन विधि- इसके लिये अकथह चक्र य अकडम चक्र का प्रयोग किया जाता है। मंत्र के चार प्रकार है। १. सिद्ध- सिद्धमंत्र बतायी गयी संख्या का जप करने से सिद्ध होता है। २. साध्य- यह बतायी संख्या से दूना जाप करने से सिद्ध होता है। ३. सुसिद्ध- यह बतायी संख्या का मात्र आधा जप करने से सिद्ध हो जाता है। ४. अरिमंत्र- यह साधक का विनाश कर देता है। अकडमचक्र द्वारा सिद्धादि शोधन की विधि यह है कि साधक के नाम का प्रथमाक्षर जिस कोष्ठ मे हो वहा से मंत्र का प्रथमाक्षर किस कोष्ठ मे है, यह गिनने पर मंत्र की फलप्रद स्थिति का ज्ञान होता है। नाम के प्रथमाक्षर से मंत्र का प्रथमाक्षर १,५,९,१३वें कोष्ठक मे पडे तो सिद्ध, २,६,१०,१४ वे़ कोष्ठक मे पडे तो साध्य,३,७,११,१५ वे कोष्ठक मे पडे तो सुसिद्ध, तथा ८...

पूजा व मंत्र जप का सही तरीका

 मंत्रजप फलदायक न होकर नुकसान भी पहुचा सकते है,जाने क्यो? मन को केन्द्रित करने के अभ्यास को साधना कहा जाता है। सिद्धि के लिये किया जाने वाला प्रयत्न ही साधना है। तथा उसके उपयोगी उपकरणो को साधन कहते है। साधन के बिना साधना की ओर प्रवृत होना संभव ही नही है। अतः मंत्रसाधना की जानकारी के साथ साथ मंत्रसाधन का सम्यक ज्ञान परमावश्यक है।        जो मंत्र या क्रियाए कर्ता का अभीष्ट सिद्ध नही कर सकती य अनिष्ट करती है, उन्हे साधन नही कह सकते। यही कारण है कि मंत्रशाश्त्र मे सर्वप्रथम यह विचार किया गया है कि कोई मंत्र साधक का अभीष्ट सिद्ध करेगा य नही।         मंत्र व तंत्र शाश्त्र के ग्रंथो मे मंत्र को साधन य अभीष्टफलदायक बनाने के लिये निम्न लिखित बातो पर बिशेष ध्यान दिया गया है।     १ सिद्धादि शोधन २ मंत्रार्थ ३ मंत्रचैतन्य ४ मंत्रो की कुल्लुका ५ मंत्र सेतु ६ महासेतु ७ निर्वाण ८ मुखशोधन ९ प्राणयोग १० दीपनी ११ मंत्र के सूतक १२ मंत्र के दोष १३ मंत्र दोष निवृति के उपाय।       उपरोक्त बातो का ध्यान रखकर, उपयोग करने से मं...